कुछ बात करो
आओ बैठो पास मिरे कुछ बात करो
साझा मुझसे अपने तुम जज़्बात करो
हो जाए बदनाम हमारी दोस्ती
तुम पैदा ऐसे ना कोई हालात करो।
रख दिया खोलकर मन जब आप के सामने
अब मन के घावों पर नहीं आघात करो
तुम कहते हो मैं हूं सूखा फलहीन शजर
तो अलाव में उपयोग डार और पात करो
कह दूं अलविदा मैं आप की महफ़िल को
तुम बार आखिरी हंसकर तो मुलाकात करो।
स्वरचित रचना
बीना राय
गाज़ीपुर, उत्तर प्रदेश
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