आपको पीड़ित मानवता ने पुकारा है ::--
******************************
हमारी पाँच ज्ञान इंद्रियाँ हमें ऐसा नाच नचाती हैं कि जीवनपर्यंत हम इनको ही संतुष्ट करने में लगे रहते हैं फिर भी इनकी भूख शांत नहीं होती । इसी का देन है कि धरती पर इंसानों की संख्या तो बढ़ती जा रही है परन्तु इंसानियत विरलों में, लाखों में किसी एक में ही है । जिसका परिणाम यह है चारों ओर प्रदूषण का अंबार लगा हुआ है । आज शायद ही कोई अपनी मौत मरता है । चारों ओर लूटपाट, दुर्घटना, हवशीपन बढ़ता ही जा रहा है । आज का इंसान कैसे भी करके मात्र खुद को बचाने में लगा है ।
चुँकि लोगों का प्यार संसाधनों से बढ़ता जा रहा है इसलिए लोग लोगों से दूर होते चले जा रहे हैं । अब इंसान मात्र फोन तक सिमटकर रह गया है ।
हम सबका जीवन दौड़ की प्रतियोगिता में शामिल लोगों जैसा हो गया हैं जहाँ सभी जीतने के लिए दौड़ते हैं । यहाँ गिरने वाले को कोई सहारा देने वाला नहीं होता बल्कि लोग उसको कुचलते हुए मंजिल की ओर बढ़ चलते हैं ।
बचपन से हमें संस्कार भी बड़ा आदमी बनने का ही दिया जाता है यहाँ बड़ा का मतलब धन से बड़ा है । इस तरह का संस्कार लोगों को अपनों से दूर करता चला जा रहा है । आज इसी का परिणाम है कि सभी उदासी का जीवन, अकेले का जीवन जी रहे हैं ।
आप धन खूब कमाइए पर उसका एक छोटा सा अंश पीड़ित मानवता के लिए अवश्य निकालिए ।
गीता के तीसरे अध्याय के बारहवें और तेरहवें श्लोक में तो स्पष्ट लिखा है कि " देवताओं के द्वारा दिए भोगों को जो पुरुष उनको दिए स्वयं भोगता है वह चोर है ।" तथा " जो पापी लोग अपना शरीर पोषण करने के लिए अन्न पकाते हैं, वे तो पाप खाते हैं ।"
हम भगवान राम और कृष्ण के जीवन से देखते हैं कि इनका जीवन गरीबों के लिए समर्पित था ।
हम आप सभी का आह्वान करते हैं आइए हमलोग मिलजुल कर पीड़ितों के जीवन स्तर को बढ़िया बनाते हैं । आपको पीड़ित मानवता ने पुकारा है ।
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें