तुम्हीं से हमने किया मुहब्बत, तुम्हीं से लेकिन बता न पाया।
चली गयी तुम कसम धराकर, कसम से मैं कसमसा न पाया।
लिखे थे तुमने लहू से अपने, चुभा-चुभाकर कलम नसों में।
जला चुका हूँ कई ख़तों को, तुम्हारे ख़त मैं जला न पाया।
हमारी हसरत रही अधूरी, हमारे सपने रहे अधूरे।
गुलाब लेकर खड़ा रहा पर, तुम्हारी ज़ुल्फ़ें सजा न पाया।
नहीं है तुम सा कोई नगीना, हमारी किस्मत में ख़ाक ही है।
तमाम कोशिश के बाद भी तो, मैं अपनी किस्मत जगा न पाया।
तुम्हारी ख़िदमत में सर झुकाना, न थी इबादत तो और क्या थी।
जो तुम न आयी हमारे हिस्से, समझ लो मैंने ख़ुदा न पाया।
हमारी ज़ानिब यही हुआ बस, न टूटी कसमें न टूटे वादे।
मलाल है अब किसे बताऊँ, वफ़ा किया पर वफ़ा न पाया।
ग़ज़ल लिखी थी हर एक सफ़हे पे, हरेक मक्ते में नाम तेरा।
'अमित' लिखा हो किसी सफ़हे पे, कोई भी ऐसा सफ़हा न पाया।
Anand Amit Hindi Shree: https://youtu.be/GXgKgZt9Jik
: ये गाना इसी धुन पर है
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