रोज सुबह सायकिल से स्कूल जाया करते थे।
और पैडिल के सहारे रेस लगाया करते थे।।
सफर अपना देर लेकिन दुर्घटनाओं से परे था।
जेब खर्च के साथ सायकिल का खर्च भी खरे था।।
शरीर और जीवन से साइकिल की वफादारी थी।
आज कल की दुनिया से प्यारी वो जिंदगानी थी।।
मौज मस्ती में के साथ हम खूब सायकिल चलाया करते थे।
कभी दोस्तों के तो कभी पापा के संग गांव जाया करते थे
बड़ी गाड़ियों में बैठ कर उस दौर का अनुभव करते है।
देख जमाने की रफ़्तार अब स्वपन में साइकिल से चलते है।
रचना- लव तिवारी
युवराजपुर ग़ाज़ीपुर उत्तर प्रदेश
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