जानिए नोट वाले गांधी के बारे में
ये कोई सन्त,भगवान या फरिश्ता नही था बल्कि एक आम आदमी था.
इंग्लेंड मे पढ़ा एक बैरिस्टर अफ्रीका मे एक स्मगलार की केस लड़ने गया, जहाँ अपमानित होने पर बदले की भावना से धधकते हुए, बेबसी मे अहिंसक आंदोलन किया.उसने मूल अफ्रीकियों के खिलाफ "बोअर युद्ध" मे अंग्रेज सैनिकों की ओर से अश्वेत लोगों के खिलाफ "हिंसक युद्ध" मे भी भाग लिया.
उसके भाषण कौशल्य को देख कर अँग्रेज़ों ने उसे भारत मे, लोकमान्य तिलक द्वारा आम जनता मे जगाई हुई -"संपूर्ण स्वातन्त्र्य की धधकने लगी हुई आग" - को बुझाने के लिए सुपारी दी जिसको उसने बड़ी ही - "धूर्तता - कुशलता और असीम कुटिलता" से पूरा किया. उसने लोगों को दिल्ली वाले कंजर की तरह सत्ताधारी अंग्रेज़ो से मिलीभगत करके झुठेऔर दिखावटी आंदोलन करके "बाल गंगाधर तिलक" की सारी मेहनत और देशभक्ति की उर्जा को - जनता के मन से नष्ट कर दिया.
इसका सबसे बड़ा सबूत है कि, उसने कोई भी आंदोलन पूर्णता की ओर नही ले गया....
एक आदमी सारी दुनिया को बेवकूफ़ कैसे बना सकता है यह तो केवल इस "महात्मा(?)" ने ही साबित किया...
जब कांग्रेस अध्यक्ष के लिए चुनाव हो रहा था नेताजी सुभाष चंद्र बोस लड़ रहे थे और मोहनदास ने अपना उम्मीदवार "पट्टाभी सीतारमैया" को खड़ा किया था..
उसके उम्मीदवार -"पट्टाभी सीतारमैया" को मात्र दो मत मिले और सुभाष चंद्र बोस को 17 वोट मिले।
मोहन ने कहा कि -- "पट्टाभी सीतारामय्या" की हार मेरी हार है और मैं कांग्रेस से इस्तीफा देता हूं।"
यह सुनकर - सुभाष चंद्र बोस को बहुत दुख हुआ कि - मेरी जीत की वजह से चूतिया कांग्रेस से इस्तीफा दे रहा और खुद सुभाष चंद्र बोस ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया
और चूतिये से कहा कि आप कांग्रेस मत छोड़िए .
वो इस्लामियों" को बख़ूबी समझता था और उनसे डरता था
इसीलिए सदैव उनके पक्ष में खड़ा होता था चाहे "ख़िलाफ़त आंदोलन" हो, "मोपला के दंगे" हों या "अब्दुल रशीद" हो, हर जगह ये उनके पक्ष में खड़ा दिखा
कोई भी कोई एक उदाहरण देखने को नही मिलेगा जब ये हिन्दुओं के पक्ष में खड़ा हुआ हो।
अरे पक्ष छोड़िए, ये निष्पक्ष भी रहा हो तो कोई बात होती।
हम गोडसे जी के ऋणी हैं जो इस नटवरलाल से हमें मुक्ति दिला दी।
आज हमारे देश में उत्पन्न अधिकतर समस्याओं का बीजारोपण इसी का किया है।
ये “चंगू मंगू” आपस में मिले, एक इस देश का “बाप” बन बैठा और दूसरा “चाचा”
इसलिए गांधी को आजादी का "हीरो" कहना उन "सभी क्रान्तिकारियों का अपमान" है जिन्होंने देश की आजादी के लिए "अपना खून बहाया" था।
यदि "चरखों" की "आजादी की रक्षा" सम्भव होती है तो बार्डर पर टैंकों की जगह चरखे क्यों नहीं रखवा दिए जाते ...??...
🙏🏻🙏🏻🙏🏻
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें