काश ये रोशनी के शहर नहीं होते
तो फिर ये हादसों के घर नहीं होते
तो फिर ये हादसों के घर नहीं होते
अस्ल तल्खियां गुनहगार हैं वरना
यूं खंजर कभी खूँ से तर नहीं होते
यूं खंजर कभी खूँ से तर नहीं होते
है इल्म जो हम सब को डराती है
वरना इतने कहीं पे डर नहीं होते
वरना इतने कहीं पे डर नहीं होते
फिक्र झूठ को सच करने की न होती
सच मुच अफवाहों के पर नहीं होते
सच मुच अफवाहों के पर नहीं होते
खोल गर निगाहें चलते कहीं तुम भी
मौत के इल्जाम इतने सर नहीं होते
मौत के इल्जाम इतने सर नहीं होते
़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़डॉ एम डी सिंह
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