शुक्रवार, 17 मार्च 2017

काश ये रोशनी के शहर नही होते - डा एम डी सिंह

काश  ये  रोशनी  के  शहर नहीं  होते
तो  फिर  ये  हादसों  के घर नहीं होते

अस्ल  तल्खियां  गुनहगार  हैं  वरना
यूं  खंजर  कभी  खूँ  से तर नहीं होते

है  इल्म  जो हम सब  को  डराती  है
वरना   इतने  कहीं  पे  डर नहीं  होते

फिक्र झूठ को सच करने की न होती
सच मुच  अफवाहों  के पर नहीं होते

खोल गर निगाहें चलते कहीं तुम भी
मौत के  इल्जाम इतने सर नहीं होते

़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़डॉ एम डी सिंह

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें