तेरी इस दुनिया में ये मंज़र क्यों है ?
कहीं ज़ख्म तो कहिं पीठ में खंजर क्यों है ?
सुना है कि तू हर ज़र्रे में है रहता,
तो फिर ज़मी पर कही मस्जिद और कही मंदिर क्यों है ?
जब रहने वाले इस दुनिया के है तेरे ही बन्दे ,
तो फिर कोई किसी का दोस्त और कोई दुश्मन क्यों है
तू ही लिखता है सब लोगो का मुकद्दर
तो फिर कोई बदनसीब और कोई मुकद्दर का सिकंदर क्यों है ???
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