मंगलवार, 27 अगस्त 2013

तेरी इस दुनिया में ये मंज़र क्यों है ? कहीं ज़ख्म तो कहिं पीठ में खंजर क्यों है



तेरी इस दुनिया में ये मंज़र क्यों है ?

कहीं ज़ख्म तो कहिं पीठ में खंजर क्यों है ?

सुना है कि तू हर ज़र्रे में है रहता,

तो फिर ज़मी पर कही मस्जिद और कही मंदिर क्यों है ?

जब रहने वाले इस दुनिया के है तेरे ही बन्दे ,

तो फिर कोई किसी का दोस्त और कोई दुश्मन क्यों है

तू ही लिखता है सब लोगो का मुकद्दर

तो फिर कोई बदनसीब और कोई मुकद्दर का सिकंदर क्यों है ???

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें