कैसा अबीर क्या है गुलाल
अब रंग और रोली कैसी?
जब तुम भूले प्रिय तो कह दो,
उल्लास कहाँ होली कैसी?
वे बोल खो गए कभी जिन्हें,
सुनने को समय ठहरता था।
तो भौंरे का गुंजन कैसा,
फिर कोयल की बोली कैसी?
वीणा पर बजते वसंत सा,
मनहर तेरा वह हास नहीं।
तब फ़ाग सुहाएगा किसको,
हुरियारों की टोली कैसी?
सब जलीं लालसाएँ मन की,
तेरे वियोग की होली में।
अब 'त्यागी' का मधुमास कहाँ,
सपनों की रंगोली कैसी??
-संजीव कुमार त्यागी
ग्राम पोस्ट- लठूडीह जिला ग़ाज़ीपुर
उत्तर प्रदेश
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