1990 की घटना..
आसाम से दो सहेलियाँ रेलवे में भर्ती हेतु गुजरात रवाना हुई। रास्ते में एक स्टेशन पर गाडी बदलकर आगे का सफ़र उन्हें तय करना था लेकिन पहली गाड़ी में कुछ लड़को ने उनसे छेड़-छाड़ की, इस वजह से अगली गाड़ी में तो कम से कम सफ़र सुखद होगा ,यह आशा मन में रखकर भगवान से प्रार्थना करते हुए दोनों सहेलियाँ स्टेशन पर उतर गयी और भागते हुए रिजरवेशन चार्ट तक पहुची और चार्ट देखने लगी।चार्ट देख दोनों परेशान और भयभीत हो गयी क्यों की उनका रिजर्वेशन कन्फर्म नहीं हो पाया था ।
मायूस और न चाहते उन्होंने नज़दीक खड़े TC से गाड़ी में जगह देने के लिए विनती की TC ने भी गाड़ी आने पर कोशिश करने का आश्वासन दिया एक दूसरे को आस्वाशन देते हुए दोनों गाड़ी का इंतज़ार करने लगी , आख़िरकार गाड़ी आ ही गयी और दोनों जैसे तैसे कर गाड़ी में एक जगह बैठ गयी अब सामने देखा तो !
सामने दो पुरूष बैठे थे। पिछले सफ़र में हुई बदसलूकी कैसे भूल जाती लेकिन अब वहा बैठने के अलावा कोई चारा भी नहीं था क्यों की उस डिब्बे में कोई और जगह ख़ाली भी नहीं थी।गाडी निकल चुकी थी और दोनों की निगाहें TC को ढूंढ रही थी शायद कोई दूसरी जगह मिल जाये कुछ समय बाद TC वहा पहुँचा और कहने लगा कि कही जगह नहीं है और इस सीट का भी रिजर्वेशन अगले स्टेशन से हो चूका है कृपया आप अगले स्टेशन पर दूसरी जगह देख लीजिये । यह सुनते ही दोनों के पैरो तले से जैसे जमीन ही खिसक गयी क्यों की रात का सफ़र जो था । गाड़ी तेज़ी से आगे बढ़ने लगी ,जैसे जैसे अगला स्टेशन पास आने लगा दोनों परेशान होने लगी लेकिन सामने बैठे पुरूष उनके परेशानी के साथ भय की अवस्था बड़े बारीकी से देख रहे थे जैसे ही अगला स्टेशन आया दोनो पुरूष उठ कर ,चल दिये. अब दोनों लड़कियो ने उनकी जगह पकड़ ली और गाड़ी निकल पड़ी कुछ क्षणों बाद वो नौजवान वापस आये और कुछ कहे बिना निचे सो गए ।दोनों सहेलियाँ यह देख अचम्भित हो गयी और डर भी रही थी जिस प्रकार सुबह के सफ़र में हुआ उसे याद कर डरते सहमते सो गयी।
सुबह चाय वाले की आवाज़ सुन नींद खुली दोनों ने उन पुरूषों को धन्यवाद कहा तो उनमे से एक पुरूष ने कहा " बहन जी गुजरात में कोई मदद चाहिए हो तो जरुर बताना " अब दोनों सहेलियों का उनके बारे में मत बदल चूका था खुद को बिना रोके एक लड़की ने अपनी बुक निकाली और उनसे अपना नाम और संपर्क लिखने को कहा दोनों ने अपना नाम और पता बुक में लिखा और हमारा स्टेशन आ गया है" ऐसा कह उतर गए और भीड़ में कही गुम हो गए दोनों सहेलियों ने उस बुक में लिखे नाम पढ़े वो नाम थे नरेंद्र मोदी और शंकर सिंह वाघेला वह लेखिका फ़िलहाल General Manager of the center for railway information system Indian railway New Delhi में कार्यरत है और यह लेख
"The Hindu "इस अंग्रेजी पेपर में पेज नं 1 पर
"A train journey and two names to remember इस नाम से दिनांक 1 जुन 2014 को प्रकाशित हुआ तो क्या आप अब भी ये सोचते है की हमने गलत प्रधानमन्त्री चुना है?
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