हिंदी हिन्दू और हिंदुस्तान का जिक्र करते हुए अपनी कहानी लिख रहा हूँ , हिन्दू और हिंदुस्तान की बात इस लिए है कई बाबाओ ने हिन्दू रीति रिवाज को इस हिंदुस्तान में बर्बाद कर रखा है, यही कारण भी हिन्दू धर्म में लोगो की आस्था दिन पर दिन खत्म होती जा रही है , सेक्टर 15 स्थित अपने आवास के पास एक नाई की दुकान है उस दुकान का मालिक ने जल्द में ही ईसाई धर्म को धारण कर लिया , मैंने पूछा कि ऐसा क्यों किया तो बोला मेरी धर्म पत्नी हमेशा बीमार रहती थी और जैसे मैने ईसाई धर्म को धारण किया मेरे पत्नी को पहले से बेहतर है।
अपनी कहानी पर आते है हम दो भाइयों लव और कुश तिवारी का जन्म 11 अगस्त 1987 को उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ीपुर के युवराजपुर के ग्राम में हुआ था बचपन की पढ़ाई लिखाई गांव में हुई और बाद की पढ़ाई हाइस्कूल और इंटरमिडियड की पढ़ाई शहर के सरकारी स्कूल राजकीय सिटी इंटर कॉलेज में हुई। पढ़ाई के साथ साथ इस स्कूल में अपना एक अलग बर्चस्व था, इसका मुख्य कारण हम दोनों भाइयों को संगीत के प्रति रुचि और कॉलेज के हर सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बढ़ चढ़ के भागीदारी, राजकीय सिटी कॉलेज में पढ़ाई के बाद आगे की स्नातक तक कि पढ़ाई स्नाकोत्तर महाविद्यालय ग़ाज़ीपुर में पूरी हुई , स्नाकोत्तर की पढ़ाई के हम दोनों भाइयों को अलग अलग शहर जाना पड़ा मुझे प्रबंधन में पोस्ट ग्रेजुएट के लिए ग्रेटर नोएडा गौतम बुद्ध नगर उत्तर प्रदेश आना पड़ा और वही मेरे भाई को कंप्यूटर में पोस्ट ग्रेजुएट के लिए काशी बनारस आना पढ़ा, पढ़ाई पूरा होने के एक साल तक सब कुछ ठीक चल रहा था फिर एक दिन भाई को लगा कि मेरा शरीर दिन पर दिन कमजोर होता जा रहा है फिर उसने इस बात की जिक्र पिता जी से की , यही कोई दिसंबर 2012 में पिता जी ने उसे नोएडा से वाराणसी में बुला लिया, वही सारे परीक्षण के बाद पता चला कि हम दोनों भाइयो को मुस्कुलर डिस्ट्रॉफी नाम की भयानक बीमारी है इसकी बात की पुष्टि के वाराणसी के बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय हॉस्पिटल ने हम दोनों भाइयों को अखिल भारतीय आयुवेर्दिक संस्थान जिसे एम्स दिल्ली कहा जाता है वहाँ के लिए भेजा, और वहाँ इस बात की पूर्ण पुष्टि हुई ।
यही से इस पूरे लेखन का शीर्षक कई निराशाओं में व्यथित मन ढूढे एक आशा, कई विशेष जानकारों का यह मानना है कि इस रोग का कोई इलाज संभव नही और किसी के द्वारा यह भी सुनने को मिलता है कि भारत के आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में ही एक इलाज संभव है, अब इस बात की पुष्टि और रोग के सही उचार के लिए देश के विभिन्न प्रदेशों के आयुर्वेद के चिकित्सक के पास आना जाना हुआ लेकिन कोई कारीगर इलाज नही मिला , इस बीच कई लोगो द्वारा ये सुझाव दिए गए दवा के साथ दुआ की भी जरूरत होती है फिर यहीं से शुरू हुई लूट खसोट की कहानी और फिर हिंदू धर्म के प्रपंच का अनोखा किस्सा , मरता क्या न करता हिंदुस्तान के इन पापी ब्राम्हणों ने बहुत रुपये तक चुना लगाया और फिर भी बात नही बनी, यही पर उस नाई की बात में सच्चाई नजर आई, उसको भी हिन्दू धर्म के इन ढोंगी बाबाओं भी लूटा होगा और बाद में बेचारा थक हार कर ईसाई धर्म को मानने के लिए मजबूर होना पड़ा होगा।
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