उनसे इंकार तो हरगिज़ न गवारा होता
जान भी देते अगर उनका इशारा होता
कौन कहता है कि दिन रात मेरे नाम करो
एक लम्हा तो मेरे साथ गुजारा होता
जान भी ......
उनसे.........
तू मसीहा है मसीहा मसीहा लेकिन
बात तो जब भी थी दर्द का चारा होता
जान भी ....
उनसे......
एक हसरत है जो पलती है मेरे सीने में
काश इस शहर में तो कोई तो हमारा होता
जान भी.......…
गैर के हाथ से सागर भी न लगा न मुराद
तू अगर ज़हर भी देता तो गवारा होता
जान भी......
Visit- https://youtu.be/Lco4Xy6FoLg
गायक- जनाब चंदन दास
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