एक मानव श्रृंखला बनायें आओ....
प्रेम के धागे में पिरोकर,एक मानव श्रृंखला बनायें,
मानवता का पंख लगाकर,इसको जन जन तक पहुँचायें
एक मानव श्रृंखला बनायें; आओ...
न जाति-पाति हो,ना राग द्वेष हो,
हों रंग-बिरंगे,पर एक भेष हो,
हो सबका साथ सबका विकास,
ना रह जाये भूखा, कोई आस-पास,
राह अलग हो सकती मंज़िल एक है यही बताएं,,,,,
एक मानव श्रृंखला बनायें,,,,आओ,,,
नफरत की एक चिंगारी,ना बन जाए ज्वाला,
विषयुक्त जुबाँ मत खोलो,घोलो अमृत का प्याला,
तकरार ना बस प्यार हो,व्यभिचार ना सदाचार हो,
तन मन में ये सँस्कार हो, परहित ही त्योहार हो,
गंगा यमुना और सरस्वती जैसा संगम बन जाये,,,आओ,
एक मानव श्रृंखला बनायें,,,,, आओ,,,
आओ सबजन मिलकर गायें,एक नया इतिहास बनायें,
उखड़ ना जायें कहीं धरा से,अंगद जैसा पाँव जमायें,
हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई,एक हो सबका नारा,
सौहार्द रहेगा क़ायम हरदम,यह संकल्प हमारा,
चारों दिशा से घिरा हुआ हम एक आँगन बन जायें,,आओ,...
एक मानव श्रृंखला बनायें,,,,, आओ,,,,,आओ
प्रेम के धागे,,,,,,,,,
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