एक प्यारा सा गांव, जिसमे पीपल छांव
छाव में आशिया था, एक छोटा मका था
छोड़ कर गांव को, उसी घनी छाव को
शहर के हो गए है, भीड़ में खो गये है
वो नदी का किनारा, जिस पर बचपन गुजारा
वो लड़कपन दीवाना, रोज पनघट पर जाना
क्या वो थी जवानी , बन गए हम कहानी
छोड़ कर गांव.......
एक प्यारा सा गांव.......
इतने गहरे थे रिश्ते, लोग थे फरिश्ते
एक टुकड़ा जमीन थी, अपनी जन्नत वही थी
हाय ये बदनसीबी ,नाम जिसका गरीबी
छोड़ कर गांव को....
एक प्यारा सा गांव.....
ये तो प्रदेश ठहरा ,देश फिर देश ठहरा
हादसों की बस्ती , कोई मेला न मस्ती
क्या यहाँ जिंदगी है हर कोई अजनबी है
छोड़ कर गांव को......
एक प्यारा सा गांव.......
रचना- - सुदर्शन फ़ाकिर
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