वर दे, वीणावादिनि वर दे !
प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत-मंत्र नव
भारत में भर दे !
काट अंध-उर के बंधन-स्तर
बहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर;
कलुष-भेद-तम हर प्रकाश भर
जगमग जग कर दे !
नव गति, नव लय, ताल-छंद नव
नवल कंठ, नव जलद-मन्द्ररव;
नव नभ के नव विहग-वृंद को
नव पर, नव स्वर दे !
वर दे, वीणावादिनि वर दे।
ज्ञान विद्या वाणी वीणा संगीतसुधा व आचरण की देवी मां भगवती सरस्वती के जन्मदिवस व वसंतोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं।
सभी में सद् बुद्धि का संचार हो।
सभी में सद् बुद्धि का संचार हो।
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