हुई राह मुश्किल तो क्या कर चले
कदम-दर-कदम हौसला कर चले... उबरते रहे हादसों से सदा गिरे, फिर उठे, मुस्कुरा कर चले... लिखा जिंदगी पर फ़साना कभी कभी मौत पर गुनगुना कर चले... वो आये जो महफ़िल में मेरी, मुझे नजर में सभी की खुदा कर चले... बनाया, सजाया, सँवारा जिन्हें वही लोग हमको मिटा कर चले... उन्हें रूठने की है आदत पड़ी हमारी भी जिद है, मना कर चले... जो कमबख्त होता था अपना कभी उसी दिल को हम आपका कर चले... |
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