आप को देख कर देखता रह गया,
क्या कहूँ और कहने को क्या रह गया,
आते आते मेरा नाम सा रह गया,
उसके होठों पे कुछ कांपता रह गया,
वो मेरे सामने ही गया और मैं,
रास्ते की तरह देखता रह गया,
झूठ वाले कहीं से कहीं बढ गये,
और मैं था के सच बोलता रह गया,
आंधियों के इरादे तो अच्छे ना थे,
ये दिया कैसे जलता रह गया,
लेखक ___वसीम बरेलवी
गायक ___जगजीत सिंह
क्या कहूँ और कहने को क्या रह गया,
आते आते मेरा नाम सा रह गया,
उसके होठों पे कुछ कांपता रह गया,
वो मेरे सामने ही गया और मैं,
रास्ते की तरह देखता रह गया,
झूठ वाले कहीं से कहीं बढ गये,
और मैं था के सच बोलता रह गया,
आंधियों के इरादे तो अच्छे ना थे,
ये दिया कैसे जलता रह गया,
लेखक ___वसीम बरेलवी
गायक ___जगजीत सिंह
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