मंगलवार, 7 जनवरी 2014

आप को देख कर देखता रह गया, क्या कहूँ और कहने को क्या रह गया,

आप को देख कर देखता रह गया,
क्या कहूँ और कहने को क्या रह गया,

आते आते मेरा नाम सा रह गया,
उसके होठों पे कुछ कांपता रह गया,

वो मेरे सामने ही गया और मैं,
रास्ते की तरह देखता रह गया,

झूठ वाले कहीं से कहीं बढ गये,
और मैं था के सच बोलता रह गया,

आंधियों के इरादे तो अच्छे ना थे,
ये दिया कैसे जलता रह गया,

लेखक ___वसीम बरेलवी

गायक ___जगजीत सिंह

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