बहके जो एक पल को सम्हालना भी आ गया
शम्मा तुम्हारे इश्क में जलना भी आ गया
बांहों की हरारत का तेरी शुक्रिया बहुत
पत्थर था मगर मुझको पिघलना भी आ गया....
वो जो धरती पे भटकता रहा जुगनू बनकर,
कहीं आकाश मे होता तो सितारा होता.....
हज़ार निगाहों से गुजरी मगर कोई पढ़ न सका
साल भर खुली रही किताब-ए-ज़िंदगी मेरी...
ना जाने क्यूँ, गले से लिपट कर वो रोने लगी,
जाते हुए जिसने कहा था, के तुम जैसे हजारों मिलेंगे..
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