बर्षो की परंपरा को अनुसरण करते हुए हर वर्ष की भांति विजयदशमी के शुभ अवसर पर ग्राम युवराजपुर गाजीपुर में दंगल का विशेष आयोजन किया गया। कई दशकों से संरक्षक के रूप में इस दंगल को आगे ले जाने वाले परम आदरणीय गुरु जी श्री स्वर्गीय मुरलीधर सिंह जी के 2 अक्टूबर को स्वर्गवास के बाद उनको श्रद्धांजलि देते हुए उनके चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित करके क्षेत्रवासियों व ग्राम वासियों ने धूमधाम से दंगल का आयोजन किया।
कई साल बाद अपने बचपन के मेले में गया। वही पानीदार मटर वाला छोला, सरोसा, जलेबी, मुंगफली,केला खिलौना की दुकानें सजी थीं। तीन-चार भाई बहन का एक झुंड में छोला खाकर खुश हो रहे थे। जिसमें से कभी मैं भी था। खिलौने लिए बच्चों के चेहरे देखा तो अपने भाई-बहन और अपना चेहरा याद आ गया।
शुरुआती पढ़ाई भी युवराजपुर के संत रविदास स्कूल में हुई तो मेले में सभी दोस्तों से मिलना होता था। इस बार एक दो से भेट हुई। तब पूछते थे मेला देखने के लिए कितन मिला हैउस समय बाबा, चाचा, पापा से कुल मिलाकर अधिकतम 50-60 रुपये मिलते थे। भाई-बहनों के पैसे में ही मैनेज कर अपना बचाने की कोशिश रहती थी। ताकि आगे धीरे-धीरे खर्च कर सकूं। इसमें कई मेले में सफल भी हो जाता था।
दशहरा की उल्टी गिनती के साथ हर साल युवराजपुर के मेले का इंतजार रहता था। अगर 8-10 साल की अवस्था में पहली बार मेला गया होऊंगा तो 22-23 सालों की स्मृति है। कई रोचक यादें जुड़ी है। बचपन से ही कुश्ती देखने और कई बार लड़ने का मन होता था। लेकिन सिर्फ पचइयां में गांव के लड़कों संग लड़ा। कई दाव तो युवराजपुर के दंगल में देखकर जाना, सीखा।
धोबिया पछाड़, काला जंग, बकूड़ी और कई के नाम नहीं याद हैं। एक बार तो अपने गांव पटकनिया में धोबिया पछाड़ दाव को कड़ी मिट्टी पर एक लड़के पर लगा दिया। बेचारा मेरे कंधे से होता हुआ जमीन पर धड़ाम से गिरा। वह दो मिनट तक ठीक से सांस भी नहीं ले पा रहा था। आज भी वो मिलने पर हंसी-ठिठोली में बताता है।
बहरहाल, युवराजपुर में एक से बढ़कर एक कुश्ती देखी। गमछा भर इनाम पाते पहलवानों को भी देखा। देश के जाने-माने पहलवान मंगला राय का नाम दंगल में ही सुना। धन्य है पहलवानों की माटी। धन्य हैं दंगल, मेला की 90 साल की परंपरा को आगे बढ़ाने वालों में शम्मी सिंह, विकास सिंह और अन्य लोग।
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