सबका सहयोग करने, समर्पित सहयोगी और संसाधनों को जुटाने के लिए आध्यात्मिक शक्तियों की आवश्यकता ::--
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आज के भौतिक चकाचौंध के समय में मनुष्य बेतहाशा संसाधनों को इकट्ठा करने के प्रयास में इतना दूर निकल जा रहा है कि थकान होने पर उसको अपने आस पास कोई नजर ही नहीं आता । कुछ लोग जो उसको साथ चलते प्रतीत हो रहे थे थकने पर उसे यह एहसास होता है कि ये सभी मात्र एक दौड़ का हिस्सा थे जिसमें गिरने और थकने पर साथ दौड़ने वाले और खुश ही होते हैं ।
परन्तु अब इंसान एक मात्र अकेलापन और उदासी के और कर भी क्या सकता है । चुँकि वह तो जीवन भर लोहा और मिट्टी की ढेर ही जुटाने में लगा रहा इसलिए अकेला होने पर उस इंसान का साथ देने के लिए मात्र यही लोहा और मिट्टी का ढेर रह जाता है ।
सड़कों पर लोग दौड़ते हुए से प्रतीत होते हैं । पता नहीं उनकी दौड़ कहाँ जाकर पूरी होती होगी ? आखिर इंसान भौतिकता के मद में इतना भावशून्य कयों होता जा रहा है ? अब तो सेवा मात्र कहानियों तक सिमट कर रह गई है । जबतक शरीर हट्टा कट्टा रहता है मनुष्य एक मद में रहता है इस दौरान उसका समय भी बहुत तेजी से बीतता चला जाता है ।
परंतु प्रत्येक मनुष्य के जीवन में एक समय ऐसा भी आता है जब शरीर शिथिलता की ओर बढ़ने लगता है और तब चारों ओर से वह उपेक्षित होने लगता है । ऐसे मनुष्य को अपना एक क्षण भी बहुत लंबा और उबाऊ लगता है, फिर लंबा समय तो कहिए भी मत कि बिताना कितना मुश्किल होता होगा ।
मित्रों हमें ऐसे लोगों के लिए भी खुद को उपलब्ध करवाना है । हमें ऐसे लोगों की तलाश करनी है जिनके भीतर सेवा भाव हो । हमें ऐसे लोगों की एक टीम बनानी है । हमारी टीम के लोग भनक लगते ही पीड़ितों के सेवा और सहयोग के लिए नि:स्वार्थ भाव से दौड़ पड़ें, हमें ऐसी टीम बनानी है ।
(((हम एक इंसान हैं दुनिया बड़ी है हम ऐसे लोगों को नहीं तलाश सकते इसके लिए हमें परमात्मा का सहयोग लेना होगा ।)))
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