भारतीय आध्यात्मिक परम्परा में जाति
मेरे इष्ट भगवान श्रीकृष्ण हैं। मेरे गुरु परमहंस बाबा गंगारामदास जी हैं। मेरे दीक्षा गुरु भोला बाबा हैं। मेरे जीवन की शक्ति का स्रोत श्रीमद्भगवद्गीता, ब्रह्मसूत्र और उपनिषद हैं। मेरे गुरु के गुरु परमहंस राममंगल दास हैं। परमहंस राममंगल दास के सर्वाधिक प्रिय शिष्य और उनकी परम्परा को आगे ले जाने वाले परमहंस बाबा गंगारामदास हैं। बचपन से आज तक मैंने जातियों में विश्वास नहीं किया भले कुछ भी झेलना पड़े। लेकिन आज के वातावरण में मैं एक पाप करने जा रहा हूं ताकि जातियों पर विवाद करने वाले लोगों की बुद्धि शुद्ध हो।
वह पाप है अपनी गुरु परम्परा के पूर्वजों में से कुछ की जातियां उद्घाटित करने का। मेरे आदि गुरु संत रामानंद जन्म से ब्राह्मण थे। उन्होंने नारा दिया, जात पात पूछे नहिं कोई, हरि को भजे सो हरि का होई। उनके १२ महाभागवत शिष्य थे जिनमें संत कबीर दास जैसे अज्ञात जाति के महापुरुष और संत रविदास जैसे हरिजन जाति के महापुरुष थे। हमारे दादागुरु परमहंस राममंगल दास जी जन्मना ब्राह्मण थे। उनके सबसे प्रिय शिष्य परमहंस बाबा गंगारामदास जी जन्मना यादव थे। मुझे दीक्षा देने वाले भोला बाबा जन्मना यादव हैं और १४ वर्ष की अवस्था से आज ७० वर्ष की अवस्था तक नैष्ठिक संन्यासी हैं।
मुझे गर्व है अपनी भारतीय अध्यात्म परम्परा पर। मुझे गर्व है भोला बाबा पर जिनके जैसा सरल ब्रह्मनिष्ठ संत दुर्लभ है, जिनकी कृपा से मैंने सेवा और साधना की शक्ति का व्यक्तिगत अनुभव किया। मेरे गुरुदेव परमहंस बाबा गंगारामदास जी जैसा अवतारी पुरुष, न भूतो न भविष्यति। उनके जीवन को देखकर ही अध्यात्म के सभी विषयों का ज्ञान हो जाता है। उनके हजारों शिष्यों में अनेक जातियों के लोग हैं, ब्राह्मण भी हैं, मल्लाह भी हैं, और गंगा बाबा ने सभी से एकसमान प्रेम किया। हम सभी गुरु भाइयों में एक दूसरे से जाति पूछना तो दूर, इसे देखने का भीं साहस नहीं है। हम सभी एक साथ खाते हैं, बैठते है और एक दूसरे से अधिक नजदीकी हमारा कोई नहीं है।
गुरुदेव गंगा बाबा ने ११ वर्ष की अवस्था में मेरा हाथ पकड़कर मुझे मानव धर्म का कार्य करने के लिए कहा था। और सालों बाद जब मैं २०१४ जुलाई में कॉरपोरेट करियर छोड़कर भारत वापस आया, उस समय तक मुझे नहीं पता था कि मुझे किसने बुलाया है? आज मेरा रोम रोम अपने गुरु बाबा गंगारामदास की वाणी से उपकृत है। उनके बिना मेरा कोई अस्तित्व नहीं है। मैं कैसे मानव धर्म से और श्री गंगा आश्रम से जुड़ा, मुझे भी नहीं पता, लेकिन वृथा न होय देव ऋषि वाणी। बाबा गंगारामदास को कुछ लोगों ने गालियां दीं, उसी गांव से, लेकिन जब उनके शिष्यों ने प्रतिरोध करना चाहा तो बाबा ने कहा, सहो सहो सहो, मै गाली देने वालों में भी भगवान कृष्ण का साक्षात दर्शन करता हूं।
भारतभूमि ने कभी भी संतों की जाति नहीं पूछी है, उल्टे उन्हें सिर माथे पर बैठाया है। इसलिए सावधान रहने की आवश्यकता है। जिनका एजेंडा जातियों की राजनीति करके लोगों में फूट डालना है और येन केन प्रकारेण सत्ता तक पहुंचना है, वे अब शुद्ध अध्यात्म के क्षेत्र में अनधिकार प्रवेश कर रहे हैं। समाज में अवैध संविधानविरुद्ध कृत्यों की पुरजोर आवाज में भर्त्सना करने की आवश्यकता है, चाहे वह आपके राजनैतिक एजेंडे को सूट करे या नहीं। हमारे गुरुदेव कहते थे कि, घर घर में आग लगी है, ईश्वर कृपा चाहिए तो इस आग को बुझाने के लिए एक बाल्टी पानी उठा लो। अन्यथा यह आग कर्म के सिद्धांत और न्यूटन के तीसरे नियम के अनुसार तो सबके घर पहुंचने वाली ही है, और उनके घर तो अवश्य जो इसके लिए उत्तरदायी हैं।
हम उस वाल्मीकि की रामायण को अपना आर्ष ग्रन्थ मानते हैं जो पूर्व आश्रम में डकैत थे, हम उस वेदव्यास के ग्रंथों का स्वाध्याय करते हैं जो मल्लाह थे, हम उस तुकाराम के अभंग गाते हैं जो बनिया थे, हम उस नन्हकू बाबा के भक्त हैं जो मल्लाह थे और गंगा बाबा के समकालीन थे और उसी गांव के थे, हम उस अंगुलिमाल को संत के रूप में स्वीकार कर गए जो हत्यारे थे लेकिन बुद्ध की कृपा छाया में आकर संतत्व को प्राप्त हो गए। बांटने वाली शक्तियों को समाप्त करने की आवश्यकता है, उनके झांसे में नहीं आना है। जातियों के पक्ष या विपक्ष में वक्तव्य देने से अच्छा है कि चुप रहें, और बोलना भी है तो मनुष्यता के पक्ष में बोलें।
इस समाज को न बोलना सीखने की जरूरत है, और बोलने की कला भी सीखने की जरूरत है। बोलना ही क्यों है यदि कुछ बोलने के लिए नहीं है। भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवद्गीता में बोलने के लिए चार अर्हताएं बतायीं जिनसे वाणी की तपस्या सिद्ध होती है: १. अनुद्वेगकर वाक्य: ऐसा कुछ मत कहिए जिससे किसी को उद्वेग हो। २. सत्य: मेरे गुरुदेव का महावाक्य है कि झूठ बोलने वाला कभी आगे नहीं बढ़ता है। ३. प्रिय: यदि पहली दो कसौटियां पूरी होती हैं लेकिन वह अप्रिय है, तो भी शांत रह जाइए, मत बोलिए। ४. हित: आप जो कह रहे हैं वह हितकारी है या नहीं। हमें अपनी साधना, सेवा, ज्ञान पर गर्व करना चाहिए, उस पर जो हमने खुद करके अर्जित किया है। उस थोथी जाति पर कैसा गर्व जिस में हम भाग्यवश पैदा हुए और जिसमें हमारा कोई हाथ नहीं!
२०१९ में मुझे एक राजनैतिक पार्टी ज्वाइन करने का ऑफर मिला था लेकिन तब तक गुरुदेव की कृपा से मुझे यह समझ में आ चुका था कि समाज में सकारात्मक संरचनात्मक परिवर्तन करने की शक्ति वर्तमान राजनीति में नहीं है जिसका एकमात्र उद्देश्य है किसी तरह सत्ता तक पहुंचना। इस विश्व को आवश्यकता है परमहंस बाबा गंगारामदास जी जैसे युगपुरुष की, परमहंस राममंगल दास जैसे महापुरुष की। मुझे गर्व है अपनी आध्यात्मिक परम्परा पर, भारत के महान ऋषियों और आचार्यों पर, भारत के महान अवतारों पर, उन शास्त्रों पर जिन्होंने जीवन को सरल बनाया, विशेषकर प्रस्थानत्रय, अपने गुरु आश्रम पर और अपने गुरुदेव पर। और आपको?
माधव कृष्ण, २६ जून २०२५, गाजीपुर
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