चुप लोग ही तो बोलते हैं जनाब जोर से
भर देते हैं चुप रहकर भी दिमाग शोर से
खुशियां बटोर कर वे रख लेते हैं चुपचाप
गुस्सा भी तह कर रखते रहते हैं भोर से
सुनता है भला सोचिए कौन आपके सिवा
जब बोलती हैं कभी हड्डियां पोर-पोर से
महज आंसू नहीं दोस्त टपकते हैं हर घड़ी
कभी रक्त भी उबलते हैं आंखों की कोर से
मत सोचिए सिर्फ बर्फ ही जमेगी पहाड़ पर
निकलेगी फूट आग भी चोटी की ओर से
डाॅ एम डी सिंह
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