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युवा ज्योति के दिव्य रूप स्वामी विवेकानन्द जी लेखक राजेश कुमार सिंह श्रेयस ~ Lav Tiwari ( लव तिवारी )

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रविवार, 12 जनवरी 2025

युवा ज्योति के दिव्य रूप स्वामी विवेकानन्द जी लेखक राजेश कुमार सिंह श्रेयस

युवा ज्योति के दिव्य रूप स्वामी विवेकानन्द जी
( स्वामी विवेकानंद जी की जयंती पर विशेष )

विवेकवान व्यक्ति का विवेक ही यह तय करता है, उसके जीवन की गति कैसी होगी l उसकी दिशा क्या होगी, और वह समाज के लिए कौन सी दिशा देने वाला है l उसके विचारों का दयारा कितना व्यापक है l उसके भीतर विचारों के संप्रेषण की क्षमता कितनी है l
इतना तो तय है कि प्रत्येक विवेकी व्यक्ति के अपने कुछ नीति नियम और उसके निर्णय होते हैं l उसके मन में कुछ सात्विक विचार होते हैं l सात्विक विचार का अर्थ ऐसे सकारात्मक विचार से है जो स्वयं के अतिरिक्त आमजन मानस के लिए भी हितकर होते हैं l
विवेक के विषय में बात करें तो मानस में लिखा है कि बिन सत्संग विवेक न होइ l आता ऐसे विवेक की व्यक्तियों को साधु व्यक्तियों का सानिध्य प्राप्त होता है, जो किसी रूप में ईश्वरी प्रेरणा एवं कृपा का प्रतिफल होता है l
ऐसे ऐसे ही विवेक की प्रतिमूर्ति, माँ भारती के आत्मतत्व युवा ज्योति के दिव्य रूप स्वामी विवेकानंद जी के रूप में दिव्य प्रकाशपुंज 12 जनवरी 1862 को भारत की पावन धरा पर उदित होता है जिसकी ज्ञान ज्योति से यह धरती आलोकित हो उठती है l भारतीय सनातन संस्कृति के इस प्रणेता की जीवन की यात्रा न सिर्फ भारतीय संस्कृति का दर्शन करती है, बल्कि भारतीय दर्शन को भी व्याख्यायित करती है l
भारतीय अध्यात्म की शक्ति कितनी प्रबल और सर्वग्राह्य है, इसका वैचारिक स्वरूप कितना व्यापक निर्मल और उज्जवल है , इसको लिखने के लिए इसको समझने के लिए स्वामी विवेकानंद के मुख से निकले एक-एक शब्दों को बड़े ध्यान से श्रवण करना होगा और उसे पर विचार करना होगा l इस युवा आध्यात्मिक संत द्वारा 11 सितंबर 1893 को शिकागो की धर्म सभा मे किया गया उद्घोष, प्रेषित विचार आज भी पूरे विश्व में गूंजते हैं -

इस युवा नायक का प्रथम संबोधन मेरे प्यारे अमेरिका निवासी भगिनी एवं भ्रातृगण इतना प्रभावशाली हुआ कि इस सभा में बैठा जन समुदाय कि उसका प्रभाव आज तक विद्वान है l

अपने संबोधन के अंतिम भाग में स्वामी विवेकानंद जी गीता का उद्धरण देते हुए कहते हैं-

" विश्व का सबसे महान ग्रंथ गीता इस बात का साक्षी है कि संसार में जब तक एकत्व नहीं तब तक संसार में कुछ नहीं l भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हैं - हरि अर्जुन चाहे कोई व्यक्ति किसी प्रकार का भी हो? उसमें चाहे मेरे प्रति श्रद्धा हो अथवा ना हो या वह मेरा विरोध करता हो सादाबरी वह जाने अथवा अनजाने में मेरे पास आए तो मैं उसको अपने में मिला लेता हूँ l गीता का यह उपदेश इस बात को याद दिलाता है-
ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाभ्यहम् l
मम वत्मार्नुवर्तन्ते मनुष्या: पार्थ सर्वश: ll
जो मेरी और आगमन करता है चाहे वह किसी प्रकार से हो मैं उसको प्राप्त होता हूं लोग भिन्न-भिन्न मार्ग द्वारा प्रयत्न करने के बाद मुझे ही प्राप्त होते हैं l"

युवा ज्योति के दिव्य रूप स्वामी विवेकानंद के रूप में स्थापित इस इस देव प्रतिभा का एक-एक शब्द भारतीय युवाओं के लिए किसी प्रेरणा से कम नही है l

स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि-
"उत्साह से हृदय भर लो और सब जगह फैल जाओ l काम करो l काम करो l पचास सदियाँ तुम्हारी और ताक रही है l भारत का भविष्य तुम पर निर्भर है l काम करते जाओ l "
यहां स्वामी विवेकानंद ने कर्म की प्रधानता और कर्म करने पर जोर दिया है जो की गीता में भी कहा गया है l
स्वामी जी आगे कहते हैं कि इस संसार में हाथ पैर हाथ भर कर चुपचाप बैठने से काम नहीं चलेगा l उन्नति के लिए निरंतर प्रयत्न करो l एक ने एक दिन अवश्य सफलता प्राप्त करोगे l
मनुष्य को अपने जीवन में किस हद तक जाकर सक्रिय रहना है, इस पर स्वामी जी के विचार कुछ इस प्रकार है -

" उठो जागो जब तक तुम अपने अंतिम देर तक नहीं पहुंच जाते हो तब तक सक्रिय रहो और तब तक निश्चिन्त न हो '
त्याग से ही प्राप्ति संभव है ऐसा कहते हुए स्वामी जी कहते हैं-
"महान कार्य महान त्याग से ही संपन्न होते हैं l "
स्वामी विवेकानंद पूरे संसार के लिए करने की बात करते हैं -
" हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि हम सभी संसार के ऋणी हैं संसार हमारा कुछ नहीं चाहता l हम सबके लिए यह तो एक महान सौभाग्य है कि हमें संसार के लिए कुछ करने का अवसर मिले l संसार की भलाई करने में हम वास्तव में अपनी भलाई करते हैं l" 

  स्वामी विवेकानंद ने भारत के उत्तर से दक्षिण तक भ्रमण किया और उन्होंने हर एक स्थान से पहुंचकर कुछ न कुछ संदेश पूरे भारत को दिया l भारत के युवाओं को दिया l
 स्वामी जी का मानना था कि अगर हम अपनी विद्या और ज्ञान को लेकर अपने घरों में,अपने आश्रम में रहेंगे, तो हम संसार को क्या दे पाएंगे  l 
 इसका एक उदाहरण स्वामी जी की गाजीपुर यात्रा है l जनपद गाजीपुर जिला मुख्यालय से सटे हुए कुर्था नाम का एक गांव है जो की गंगा के किनारे बसा है l इस गांव में एक मंदिर है जो की परम संत पौहारी बाबा ( पवनहारी बाबा ) का समाधि स्थल भी है l इस गांव की एक विशेष विशेषता है कि आज भी यह गांव पूर्ण रूप से शाकाहारी गांव l इस गांव में पैदा होने वाला शिशु से लेकर बुजुर्ग तक मांसाहार का सेवन नहीं करता  l मैंने उसे मंदिर का भ्रमण किया है l वहां जाने के बाद जो अभिलेख मुझे प्राप्त होते हैं उसे ज्ञात होता है कि स्वामी विवेकानंद यहां भी आए थे और पूरे एक महीने यहां रुके l वह एक महीने सिर्फ इसलिए रुके कि उन्हें पोहारी बाबा से कुछ जानना था l 
 पौवारी बाबा उसमें ध्यान में थे, जब वह जगह तो स्वामी जी ने उनसे बस इतना ही कहा कि अगर आप जैसे संत इस तरह से समाधि एवं कंधराओं में रहेंगे तो भारत को क्या दे पाएंगे l आपको अपनी आध्यात्मिक शक्ति और अपना आध्यात्मिक ज्ञान इस देश की युवाओं को देना होगा l भारत आप जैसे संतों से बहुत सारी अपेक्षाएं कर रहा है l 

 विवेकानंद जी के साहित्य में भी पवनहारी बाबा का जिक्र आता है  l 
 स्वामी विवेकानंद  श्री हनुमान जी को  अपना आदर्श मानते हैं-
 स्वामी जी कहते हैं-

" अब तुम्हें महावीर के जीवन को अपना आदर्श बनना होगा l देखो वह कैसे श्री रामचंद्र की आज्ञा मात्र से विशाल सागर को लांघ गए l उन्हें जीवन या मृत्यु से कोई नाता न था l वे संपूर्ण रूप से इन्द्रियजित थे और उनकी प्रतिभा अद्भुत थी l अब तुम्हें अपना जीवन दास्य भक्ति से उसे महान आदर्श पर खड़ा करना होगा l उसके माध्यम से क्रमशः अन्य सारे आदर्श जीवन में प्रकाशित होंगे l गुरु की आज्ञा का सर्वतोभावेन पालन और अटूट ब्रह्मचर्य बस यही सफलता का रहस्य है l हनुमान एक और जिस प्रकार सेवा दश के प्रतीक है उसी प्रकार दूसरी ओर सिंह विक्रम के भी प्रतीक है l सारा संसार उनके सम्मुख श्रद्धा और भय से झुकाता है l

 युवाओं के इस प्रेरणा स्वरूप ने अपने ज्ञान का प्रचार और प्रसार पूरे भारत में या विश्व में किया l यद्यपि अत्यंत ही अल्पायु में 4 जुलाई 1902 इस महाविभूति का अवसान हो गया लेकिन उस दिव्य ज्योति का दिव्य प्रकाश आज भी भारत के कान-कान में समाया हुआ है l उन्नत भारत -  विकास उन्नमुख भारत अपने इस युवा आदर्श को आज याद करते हुए स्वामी विवेकानंद जी की जयंती को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाता है l 

   ©® राजेश कुमार सिंह 'श्रेयस' 
         लखनऊ, उप्र (भारत )