धन्य भूमि भारत जस देशा l
महिमा गुन अति रूचिर विशेषा ll
एहि ठहि गड़े धर्म ध्वज दंडा l
पावन सलिल मातु बह गंगा ll
रवितनया वागेश्वरी बेनी l
गंग संग मिल भई तिरवेनी ll
हिहां देव मुनि आयहु नर ज्ञानी l
तीर्थराज प्रयाग शुभ मानी ll
श्रेयस -महाकुम्भ गुण गावा l
बार बार एहि महि सिर नावा ll
©® राजेश 'श्रेयस'
वर्ष 1987 का नवंबर माह l धरती थी तत्कालीन इलाहाबाद यानि वर्तमान प्रयागराज l तीर्थराज प्रयागराज की पावन नगरी स्थित मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज इलाहाबाद में फार्मेसी संकाय मैं मेरा दाखिला हो चुका था l प्रयाग के पौराणिक एवं पुरातन इतिहास से मैं पूरी तरह से भिज्ञ था, क्योंकि मेरे मन के अंदर आस्था की सरिता बाल्यकाल से ही प्रवाहित हो रही थी l इस कारण तीर्थराज प्रयाग से मेरा प्रेम बढ़ता ही गया l सिविल लाइन स्थित हनुमान जी के दर्शन करने की उत्कंठा बराबर बनी रहती थी l प्रत्येक रविवार और कभी-कभी तो सप्ताह में दो-तीन बार हम सभी मित्र मंदिर जाया करते थे l
एक साल कैसे बीता कुछ पता नहीं चला l वर्ष 1988 समाप्ति की तरफ था l आगामी महाकुंभ मेला की घोषणा हो चुकी थी l
हम पांच मित्र हुआ करते थे l मैं, श्री जितेंद्र सिंह, श्री मारकंडेय सिंह श्री रमेश दुबे एवं श्री राम विनय राय जो अलग-अलग जनपदों एवं शहरों के थे, लेकिन हम पांचो में अगाध प्रेम था l शुरुआती दौर में हम सभी एक साथ पिक्चर देखने जाया करते थे l लेकिन महाकुंभ की शुरुआत से पहले ही गंगा स्नान करने की धुन हम पांचो मित्रों में आयी, वह रुकी नही l अब तो हम अक्सर गंगा स्नान करने जाया करते थे l हंसी मजाक मनो विनोद करते हुए हम पांचो संगम चले जाते थे l संगम की पावन त्रिवेणी में स्थान करते हैं l इसकी रज को माथे लगाते और पुन:अपने हॉस्टल वापस चले आते थे l गांव नगर से आने वाले परिवारजन को कुम्भ के दौरान ठहराना, उनका आव भगत करना, हमें अच्छा लगता था और अच्छा भी क्यों न लगे, क्योंकि ऐसा ही संस्कार परिवार द्वारा हमारे मन में विरोपित किए गए थे l
पूर्व कुंभ मेले में हुई कई हादसों का जिक्र बचपन में मेरे पिताजी क्या करते थे l जिसके चलते मन में काफी भय रहता था l
1988- 89 के कुंभ में पूर्व की इस कहानी से अच्छी व्यवस्था देखने को मिली l इसके बाद एक के बाद एक कुंभ स्नान आया और स्थिति में काफी सुधार होता गया l
2018-19 का अर्ध कुंभ, एक नये सूर्य का आगाज हुआ l ऐतिहासिक महाकुम्भ का भव्य व्यवस्था के संग आगाज हुआ l पूरा संगम क्षेत्र सुरम्य शहर के रूप में तब्दील हो गया l इस बार मैं पुनः सपत्निक पहुंचा l गंगा स्नान पर्व को बड़े ही आस्तिक ढंग और बेहद आस्था भाव से मनाया l व्यवस्था देखने लायक था l इस बार मुझे ठहरने के लिए एक टेंट हाउस प्राप्त हो गया था और ऐसे आवास में मेरे ठहरने का यह मेरा पहला अनुभव तीर्थ क्षेत्र कुंभ दूधिया लाइट से जगमगा रहा था l
सारी व्यवस्था चाक चौबंद थी l चिकित्सा व्यवस्था से लेकर सफाई व्यवस्था की तक देखने लायक थी l एक रात हम पति-पत्नी ने यहां की सफाई व्यवस्था की टेस्टिंग करने का मन बनाया l बस मन में यही आया कि इतनी सफाई व्यवस्था आखिर है क्यों? हमने एक लपेटे हुए कागज का गुम्मा सड़क के ऊपर डाल दिया l रात के 1:00 रहे थे और हम लोग दूर से देखना चाहते थे कि इस कागज के टुकड़े का होता क्या है l महज 4 से 5 मिनट समय बीता होगा कि एक सफाई कर्मी अपने टोकरी के साथ आया और इस कागज के गोल लपेटे को उठाकर आगे बढ़ गया l हमें यहां की सफाई व्यवस्था दुरुस्त होने का प्रमाण मिल गया था l
दिन प्रतिदिन समय बदलता गया और आस्था का यह महापर्व अपने नए कलेवर के साथ अंगड़ाइयां लेता गया और आज का महाकुंभ एक नवीन स्वरूप को प्राप्त कर रहा है l जैसा कि मुझे ज्ञात हो रहा है आज से एक विशाल महा जन सैलाब प्रयागराज की पुण्य भूमि पर त्रिवेणी में स्नान करने के लिए पहुंच रहा है l अनेक दिशाओं से आने वाले तीर्थयात्रियों का संगम, मां गंगा जमुना सरस्वती के संगम पर हो रहा है l जो स्वयं में एक नवीन इतिहास रच रहा है और एक नवीन स्वरूप को प्राप्त कर रहा था l
आज यह अवगत होते हुए बड़ा हर्ष हो रहा है की आस्था का विश्व प्रसिद्ध मेला विश्व के आधुनिकतम समारोहो में से एक हो गया l श्रद्धालुओं की इतनी बड़ी भीड़ शायद ही कभी किसी स्थान पर एक साथ जुटी होगी l यह सारी महिमा श्री राम जी की है l ऐसा मेरा मानना है l
त्रेता में भगवान राम वन गमन के समय इसी प्रयाग की धरती पर आए थे l उनका इस धरती पर आना, निषाद राज से उनकी मुलाकात l महर्षि भारद्वाज के आश्रम में ठहरना,यह सब पुनर्जवित जीवंत हो रहा है -
मानस में गोस्वामी जी तीर्थराज प्रयाग के विषय में कैसे बखान करते हैं -
तब गनपति सिव सुमिरि प्रभु नाइ सुरसरिहि माथ।
सखा अनुज सिय सहित बन गवनु कीन्ह रघुनाथ॥
तेहि दिन भयउ बिटप तर बासू। लखन सखाँ सब कीन्ह सुपासू l
प्रात प्रातकृत करि रघुराई। तीरथराजु दीख प्रभु जाई॥
सचिव सत्य श्रद्धा प्रिय नारी। माधव सरिस मीतु हितकारी॥
चारि पदारथ भरा भँडारू।पुन्य प्रदेस देस अति चारू॥
छेत्रु अगम गढ़ु गाढ़ सुहावा। सपनेहुँ नहिं प्रतिपच्छिन्ह पावा॥
सेन सकल तीरथ बर बीरा। कलुष अनीक दलन रनधीरा॥
संगमु सिंहासनु सुठि सोहा। छत्रु अखयबटु मुनि मनु मोहा॥चवँर जमुन अरु गंग तरंगा। देखि होहिं दुख दारिद भंगा॥
दो० - सेवहिं सुकृती साधु सुचि पावहिं सब मनकाम।
बंदी बेद पुरान गन कहहिं बिमल गुन ग्राम॥
को कहि सकइ प्रयाग प्रभाऊ। कलुष पुंज कुंजर मृगराऊ॥
अस तीरथपति देखि सुहावा। सुख सागर रघुबर सुखु पावा॥कहि सिय लखनहि सखहि सुनाई। श्री मुख तीरथराज बड़ाई॥करि प्रनामु देखत बन बागा। कहत महातम अति अनुरागा॥
एहि बिधि आइ बिलोकी बेनी। सुमिरत सकल सुमंगल देनी॥मुदित नहाइ कीन्हि सिव सेवा। पूजि जथाबिधि तीरथ देवा॥
आज मकर संक्रांति का पावन पर्व है l इसकी महिमा का भी वर्णन गोस्वामी तुलसीदास कृत श्री राम चरित मानस में आया है-
माघ मकरगत रबि जब होई।
तीरथपतिहिं आव सब कोई।।
पूजहिं माधव पद जलजाता।
परसि अखय बटु हरषहिं गाता।।
सुनि समुझहिं जन मुदित मन, मज्जहिं अति अनुराग।
लहहिं चारि फल अछत तनु, साधु समाज प्रयाग ।।
माँ गंगा और अमृत धार माँ यमुना के साथ, अदृश्य सरस्वती के पावन संगम, समुद्र मन्थन से निकले अमृत से सिंचित क्षेत्र तीर्थराज प्रयाग में,पौष पूर्णिमा, एवं मकर संक्रांति स्नान पर्व के साथ महाकुंभ का आगाज हो गया है l
इस भव्य दिव्य महाकुंभ का पवन त्रिवेदी तट पर दर्शन करें l
प्रयागराज के त्रिवेणी तीर्थ से विकासोन्नमुख एवं समृद्ध भारत भारत के आध्यात्मिक,पौराणिक भव्य एवं विराट स्वरूप दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त करें l
राजेश कुमार सिंह 'श्रेयस'
लखनऊ, उप्र, भारत
14-01-2025
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