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जुलाई 2022 ~ Lav Tiwari ( लव तिवारी )

Lav Tiwari On Mahuaa Chanel

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शुक्रवार, 29 जुलाई 2022

हुई स्वतंत्रता आज हमारी पूर्ण पचहत्तर वर्ष की चलो सुनाएं कथा विश्व को भारत के उत्कर्ष की- डॉ एम डी सिंह

यचहत्तर वर्ष स्वतंत्रता के :

हुई स्वतंत्रता आज हमारी पूर्ण पचहत्तर वर्ष की
चलो सुनाएं कथा विश्व को भारत के उत्कर्ष की

अब अतीत छोड़ पकड़ें नूतन विकास की डोर
चल पड़े राष्ट्र-जन में श्रृंखला गहन विमर्श की

मिलजुल चलो नाचे गाएं उत्सव सा इसे मनाएं
जगे याद स्वतंत्रता सेनानियों के अतुल संघर्ष की

जगह धरा पर कहां जहां गिरा वीरों का रक्त नहीं
बने मुर्ति यह मही उनके सकल जीवन आदर्श की

चलो मित्र ना सोचो कुछ भूलो झगड़े आपस के
हम कराएं दर्शन दुनिया को आहुति के निष्कर्ष की

डॉ एम डी सिंह






गुरुवार, 28 जुलाई 2022

रहें सावधान केवल 23 ₹ किलो की लागत आती है देसी घी बनाने में- प्रवीण तिवारी

23 ₹ किलो की लागत आती है देसी घी बनाने में

चमड़ा सिटी के नाम से मशहूर कानपुर में जाजमऊ से गंगा जी के किनारे किनारे 10 -12 किलोमीटर के दायरे में आप घूमने जाओ

तो आपको नाक बंद करनी पड़ेगी,

यहाँ सैंकड़ों की तादात में गंगा किनारे भट्टियां धधक रही होती हैं,

इन भट्टियों में जानवरों को काटने के बाद निकली चर्बी को गलाया जाता है,

इस चर्बी से मुख्यतः 3 चीजे बनती हैं।

1- एनामिल पेंट (जिसे हम अपने घरों की दीवारों पर लगाते हैं)

2- ग्लू (फेविकोल इत्यादि, जिन्हें हम कागज, लकड़ी जोड़ने के काम में लेते हैं)

3- और तीसरी जो सबसे महत्वपूर्ण चीज बनती है वो है "शुध्द देशी घी"

जी हाँ " शुध्द देशी घी"
यही देशी घी यहाँ थोक मंडियों में 120 से 150 रूपए किलो तक भरपूर बिकता है,

इसे बोलचाल की भाषा में "पूजा वाला घी" बोला जाता है,

इसका सबसे ज़्यादा प्रयोग भंडारे कराने वाले करते हैं। लोग 15 किलो वाला टीन खरीद कर मंदिरों में दान करके पूण्य कमा रहे हैं।

इस "शुध्द देशी घी" को आप बिलकुल नही पहचान सकते
बढ़िया रवे दार दिखने वाला ये ज़हर सुगंध में भी एसेंस की मदद से बेजोड़ होता है,

औधोगिक क्षेत्र में कोने कोने में फैली वनस्पति घी बनाने वाली फैक्टरियां भी इस ज़हर को बहुतायत में खरीदती हैं, गांव देहात में लोग इसी वनस्पति घी से बने लड्डू विवाह शादियों में मजे से खाते हैं। शादियों पार्टियों में इसी से सब्जी का तड़का लगता है। जो लोग जाने अनजाने खुद को शाकाहारी समझते हैं। जीवन भर मांस अंडा छूते भी नहीं। क्या जाने वो जिस शादी में चटपटी सब्जी का लुत्फ उठा रहे हैं उसमें आपके किसी पड़ोसी पशुपालक के कटड़े (भैंस का नर बच्चा) की ही चर्बी वाया कानपुर आपकी सब्जी तक आ पहुंची हो। शाकाहारी व व्रत करने वाले जीवन में कितना बच पाते होंगे अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है।

अब आप स्वयं सोच लो आप जो वनस्पति घी आदि खाते हो उसमे क्या मिलता होगा।

कोई बड़ी बात नही कि देशी घी बेंचने का दावा करने वाली कम्पनियाँ भी इसे प्रयोग करके अपनी जेब भर रही हैं।

इसलिए ये बहस बेमानी है कि कौन घी को कितने में बेच रहा है,

अगर शुध्द घी ही खाना है तो अपने घर में गाय पाल कर ही आप शुध्द खा सकते हो, या किसी गाय भैंस वाले के घर का घी लेकर खाएँ, यही बेहतर होगा ||
🙏


हे गोपाल राधा कृष्ण गोविंद गोविंद कृष्ण गोविंद गोविंद कृष्ण गोविंद गोविंद।।

हे गोपाल राधा कृष्ण गोविंद गोविंद,
कृष्ण गोविंद गोविंद,
कृष्ण गोविंद गोविंद।।

रसना पे जो तेरा नाम रहे,
जग में फिर नाम रहे ना,
मन मंदिर में मेरा श्याम रहे,
झुठा संसार रहे ना रहे,
झुठा संसार रहे ना रहे,
दिन रैन हरि का ध्यान रहे,
कोई ओर फिर ध्यान रहे ना रहे,
तेरी कृपा का अभिमान रहें,
कोई ओर अभिमान रहें ना रहे,
हे गोंपाल राधा कृष्ण गोविंद गोविंद
कृष्ण गोविंद गोविंद,
कृष्ण गोविंद गोविंद।।

मेरा यार नंद नंदन हो चुका है,
वो जा हो चुका है जिगर हो चुका है,
ये सच जानिए जो भी बतला रहा हूँ,
जो कुछ पास था सब नजर हो चुका है,
जगत की सभी खूबियाँ मेने छोडी,
जो दिल था इधर अब उधर हो चुका है,
वह उस मस्त की खुद ही लेता खबर है,
जो उसके लिए बेखबर हो चुका है,
हे गोंपाल राधा कृष्ण गोविंद गोविंद,
कृष्ण गोविंद गोविंद,
कृष्ण गोविंद गोविंद।।

हे गोपाल राधा कृष्ण गोविंद गोविंद,
कृष्ण गोविंद गोविंद,
कृष्ण गोविंद गोविंद




सोमवार, 18 जुलाई 2022

बरसत बरसत क़ईले बाड़ा पूरा बम्बई पानी पानी तनी बरसता यू० पी० में त हे भगवान हम तोहक़े मानी- कवि राजेश पाल,

बरसत बरसत क़ईले बाड़ा पूरा बम्बई पानी पानी….

बरसत बरसत क़ईले बाड़ा पूरा बम्बई पानी पानी;
तनी बरसता यू० पी० में त, हे भगवान हम तोहक़े मानी,

केहु के आस जगउले बाड़ा, कोई के प्यास बुझउले बाड़ा,
केहु पानी बिना मरल जात बा केतना घर जे बुड़उले बाड़ा,
अइसन भी का मोर जुलुम बा जे तू
बतावॉ हमहूँ जानी,
तनी बरसता यू० पी० में त, हे भगवान हम तोहक़े मानी,

केहु के खेतवा नाहीं भराइल, केहू पानी से उबियाइल,
जे तनिको बदरा लउके उपरा लगे कि आन्ही-पानी आइल,
अइसन भी का कोई बचल बा जेकर ना तू छवलॉ छानी,
तनी बरसता यू० पी० में त, हे भगवान हम तोहक़े जानी,

कहीं मनसुनवा एतना बरसे कहीं बा मनवा सुने सूना,
कहीं भरल बा ताल पोखरिया कहीं झुराइल कोने कोना,
कहीं गिरत बा काँच बखरिया, कहीं तपे कपार के चानी
तनी बरसता यू० पी० में त, हे भगवान हम तोहक़े जानी,

केहू पानी बिना झुराइल केहू पानी में उतराइल,
केहू छान के पानी पिए केहू पनिए में बॉ छनाइल,
तब बोला हम का लिक्ख़ि जब लिखीं नाहीं उल्टी बानी
तनी बरसता यू० पी० में त, हे भगवान हम तोहक़े जानी,


गुरुवार, 14 जुलाई 2022

पूज्य संत आदरणीय श्री युश जी महाराज के सानिध्य में गुरुपूर्णिमा के शुभ अवसर पर आशीर्वाद की प्राप्ति-

आज दिनांक 13 जुलाई 2022 को गुरु पूर्णिमा के त्यौहार पर श्री लखेश्वर ब्रह्म धाम,सोनहरिया,करण्डा, गाजीपुर मैं परम पूज्य आदरणीय संत श्री युश जी महाराज Yush Maharaj के सानिध्य में गुरु पूर्णिमा के पर्व का धूमधाम से आयोजन किया गया इस आयोजन में रेवतीपुर ग्राम की श्री रणधीर सिंह यादव जी को पर्यावरण क्षेत्र में उनकी उत्कृष्ट योगदान ( लगभग 4500 पौधों का वृक्षारोपण के साथ उनकी सुरक्षा ) के लिए विशेष सम्मान दिया गया इस कार्यक्रम में  समाजसेवियों के साथ दो महान संत श्री गोपाल दास व श्री राजनाथ जी को भी सम्मान दिया गया। कार्यक्रम के आकर्षण रूप में छोटे बच्चों के गीत संगीत नृत्य के कार्यक्रम के साथ शास्त्रीय गायन का भी क्षेत्र वासियों ने खूब आनन्द लिया।।
 

गुरु समान दाता नहीं, याचक शीष समान।
तीन लोक की सम्पदा, सो गुरु दीन्ही दान॥

गुरू को कीजै दंडवत, कोटि कोटि परनाम।
कीट न जानै भृंग को, गुरू करिले आप समान॥

दंडवत गोविंद गुरू, बन्दौं ‘अब जन’ सोय।
पहिले भये प्रनाम तिन, नमो जु आगे होय॥

गुरू गोविंद कर जानिये, रहिये शब्द समाय।
मिलै तो दंडवत बंदगी, नहिं पल पल ध्यान लगाय॥

गुरू गोविंद दोऊ खङे, किसके लागौं पाँय।
बलिहारी गुरू आपने, गोविंद दियो बताय॥

गुरू गोविंद दोउ एक हैं, दूजा सब आकार।
आपा मेटै हरि भजै, तब पावै दीदार॥

गुरू हैं बङे गोविंद ते, मन में देखु विचार।
हरि सिरजे ते वार हैं, गुरू सिरजे ते पार॥

गुरू तो गुरूआ मिला, ज्यौं आटे में लौन।
जाति पाँति कुल मिट गया, नाम धरेगा कौन॥

गुरू सों ज्ञान जु लीजिये, सीस दीजिये दान।
बहुतक भौंदू बहि गये, राखि जीव अभिमान॥

गुरू की आज्ञा आवई, गुरू की आज्ञा जाय।
कहै कबीर सो संत है, आवागवन नसाय॥

गुरू पारस गुरू पुरुष है, चंदन वास सुवास।
सतगुरू पारस जीव को, दीन्हा मुक्ति निवास॥

गुरू पारस को अन्तरो, जानत है सब सन्त।
वह लोहा कंचन करै, ये करि लेय महन्त॥

कुमति कीच चेला भरा, गुरू ज्ञान जल होय।
जनम जनम का मोरचा, पल में डारे धोय॥

गुरू धोबी सिष कापङा, साबू सिरजनहार।
सुरति सिला पर धोइये, निकसै जोति अपार॥

गुरू कुम्हार सिष कुंभ है, गढ़ि गढ़ि काढ़े खोट।
अन्तर हाथ सहार दै, बाहिर वाहै चोट॥

गुरू समान दाता नहीं, याचक सीष समान।
तीन लोक की संपदा, सो गुरू दीन्ही दान॥

पहिले दाता सिष भया, तन मन अरपा सीस।
पाछै दाता गुरू भये, नाम दिया बखसीस॥

गुरू जो बसै बनारसी, सीष समुंदर तीर।
एक पलक बिसरे नहीं, जो गुन होय सरीर॥

लच्छ कोस जो गुरू बसै, दीजै सुरति पठाय।
शब्द तुरी असवार ह्वै, छिन आवै छिन जाय॥

गुरू को सिर पर राखिये, चलिये आज्ञा मांहि।
कहे कबीर ता दास को, तीन लोक भय नाहिं॥

गुरू को मानुष जो गिनै, चरनामृत को पान।
ते नर नरके जायेंगे, जनम जनम ह्वै स्वान॥

गुरू को मानुष जानते, ते नर कहिये अंध।
होय दुखी संसार में, आगे जम का फ़ंद॥

गुरू बिन ज्ञान न ऊपजै, गुरू बिन मिलै न भेव।
गुरू बिन संशय ना मिटै, जय जय जय गुरूदेव॥

गुरू बिन ज्ञान न ऊपजै, गुरू बिन मिलै न मोष।
गुरू बिन लखै न सत्य को, गुरू बिन मिटै न दोष॥

गुरू नारायन रूप है, गुरू ज्ञान को घाट।
सतगुरू वचन प्रताप सों, मन के मिटे उचाट॥

गुरू महिमा गावत सदा, मन अति राखे मोद।
सो भव फ़िरि आवै नहीं, बैठे प्रभु की गोद॥

गुरू सेवा जन बंदगी, हरि सुमिरन वैराग।
ये चारों तबही मिले, पूरन होवै भाग॥

गुरू मुक्तावै जीव को, चौरासी बंद छोर।
मुक्त प्रवाना देहि गुरू, जम सों तिनुका तोर॥

गुरू सों प्रीति निबाहिये, जिहि तत निबहै संत।
प्रेम बिना ढिग दूर है, प्रेम निकट गुरू कंत॥

गुरू मारै गुरू झटकरै, गुरू बोरे गुरू तार।
गुरू सों प्रीति निबाहिये, गुरू हैं भव कङिहार॥

हिरदे ज्ञान न ऊपजे, मन परतीत न होय।
ताको सदगुरू कहा करै, घनघसि कुल्हरा न होय॥

घनघसिया जोई मिले, घन घसि काढ़े धार।
मूरख ते पंडित किया, करत न लागी वार॥

सिष पूजै गुरू आपना, गुरू पूजे सब साध।
कहै कबीर गुरू सीष का, मत है अगम अगाध॥

गुरू सोज ले सीष का, साधु संत को देत।
कहै कबीरा सौंज से, लागे हरि से हेत॥

सिष किरपन गुरू स्वारथी, मिले योग यह आय।
कीच कीच कै दाग को, कैसे सकै छुङाय॥

देस दिसन्तर मैं फ़िरूं, मानुष बङा सुकाल।
जा देखै सुख ऊपजै, वाका पङा दुकाल॥

सत को ढूंढ़त में फ़िरूं, सतिया मिलै न कोय।
जब सत कूं सतिया मिले, विष तजि अमृत होय॥

स्वामी सेवक होय के, मन ही में मिलि जाय।
चतुराई रीझै नहीं, रहिये मन के मांय॥

धन धन सिष की सुरति कूं, सतगुरू लिये समाय।
अन्तर चितवन करत है, तुरतहि ले पहुंचाय॥

गुरू विचारा क्या करै, बांस न ईंधन होय।
अमृत सींचै बहुत रे, बूंद रही नहि कोय॥

गुरू भया नहि सिष भया, हिरदे कपट न जाव।
आलो पालो दुख सहै, चढ़ि पाथर की नाव॥

चच्छु होय तो देखिये, जुक्ती जानै सोय।
दो अंधे को नाचनो, कहो काहि पर मोय॥

गुरू कीजै जानि कै, पानी पीजै छानि।
बिना विचारै गुरू करै, पङै चौरासी खानि॥

गुरू तो ऐसा चाहिये, सिष सों कछू न लेय।
सिष तो ऐसा चाहिये, गुरू को सब कुछ देय॥






मंगलवार, 12 जुलाई 2022

जब रात की तन्हाई दिल बनके धड़कती है यादों की दरीचों चिलमन सी सरकती है।।

जब रात की तन्हाई दिल बनके धड़कती है-२
यादों की दरीचों चिलमन सी सरकती है।।

यू प्यार नही छुपता पलको के झुकाने से-२
आखों के लिफाफों में तहरीर चमकती है
यादों की दरीचों..…...................
जब रात की तन्हाई

खुश रंग के परिंदो के लौटाने के दिन आये-२
बिछड़े हुए मिलते है जब बर्फ पिघलती है
यादों की दरीचों..…...................
जब रात की तन्हाई

शौहरत की बुलंदी भी पल भर का तमाशा है-२
जिस डाल पे बैठे हो वो टूट भी सकती है।
यादों की दरीचों..…...................
जब रात की तन्हाई


सोमवार, 11 जुलाई 2022

सलोना सा सजन है और मैं हूँ जिया में एक अगन है और मैं हूँ- आशा भोंसले गज़ल

सलोना सा सजन है और मैं हूँ
जिया में एक अगन है और मैं हूँ

तुम्हारी रुप की छाया में साजन-२
बड़ी ठंडी जलन है और मैं हूँ
जिया में एक अगन.........
सलोना सा सजन..........

चुराई चैन रातों को जगाये-२
पिया का ये चलन और मैं हूँ
जिया में एक अगन.........
सलोना सा सजन..........

पिया के सामने घूंघट उठा दे
बड़ी चंचल पवन है और मैं हूँ
जिया में एक अगन.........
सलोना सा सजन..........

रँचेंगी जब मेरी हांथो में मेंहदी
उसी दिन की लगन है और मैं हूँ
जिया में एक अगन.........
सलोना सा सजन..........


लोग मुझे पागल कहते हैं गलियों और बाजारों में मैंने प्यार किया है मुझकों चुनवा दो दीवारों में

लोग मुझे पागल कहते हैं गलियों और बाजारों में
मैंने प्यार किया है मुझकों चुनवा दो दीवारों में

हर पन घट पर मेरे फ़साने चौपालों में जिक्र मेरा
मेरी ही बातें होती है बस्ती में चौबारों में
लोग मुझे पागल कहते..................

दुनिया वालों कुछ दो मुझकों मेरी वफ़ा दाद मिले।
मैंने दिल के फूल खिलायें शोलो में अंगारो में
मैंने प्यार किया है मुझकों......................

गीत है या आगो का धुआं है नगमा है या दिल का तड़प
इतना दर्द कहाँ से आया साजों की झंकारों में
मैंने प्यार किया है मुझकों......................

गायक- आशा भोंसलेरचना- ख़य्याम




रविवार, 10 जुलाई 2022

दिल का लगाना खेल न जानों दिल का लगाना मुश्किल है जिस पर दिल आ जाये उसको दिल से भुलाना मुश्किल है-आशा भोंसले

दिल का लगाना खेल न जानों
दिल का लगाना मुश्किल है।

जिस पर दिल आ जाये उसको
दिल से भुलाना मुश्किल है।
दिल का लगाना..........

दिल दीवाना जाने किसका रस्ता तकता रहता है।
वो तो शायद ख़्वाब था उसका-२ लौट के आना मुश्किल है
दिल का लगाना खेल न जानों दिल का लगाना मुश्किल है।

पास था जब वो तन्हाई भी अक्सर अच्छी लगती थी-२
बिछड़ गये तो यू लगता है उसको भुलाना मुश्किल है
दिल का लगाना खेल न जानों दिल का लगाना मुश्किल है।

ग़ज़लों से गीतों से सबको बहलाना आसा है
हंस हस कर लेकिन महफ़िल में दर्द को गाना मुश्किल है।
दिल का लगाना खेल न जानों दिल का लगाना मुश्किल है।

दिल का लगाना खेल न जानों दिल का लगाना मुश्किल है।





शनिवार, 9 जुलाई 2022

लोग कहते है अज़नबी तुम हो अज़नबी मेरी जिंदगी तुम हो-आशा भोंसले ग़ज़ल

लोग कहते है अज़नबी तुम हो-२
अज़नबी मेरी जिंदगी तुम हो-२

दिल किसी और का न हो पाया-२
आरजू मेरी आज भी तुम हो-२
अज़नबी मेरी जिंदगी...........
लोग कहते है अज़नबी........

मुझको अपना सरीके गम कर लो-३
यू अकेले बहुत दुःखी तुम हो-२
अज़नबी मेरी जिंदगी...........
लोग कहते है अज़नबी........

दोस्तों से वफ़ा की उम्मीदों-२
किस ज़माने के आदमी तुम हो-२
अज़नबी मेरी जिंदगी...........
लोग कहते है अज़नबी........


आँखों को इंतज़ार था दे के हुनर चला गया, चाहा था एक शख्स को जाने किधर चला गया- आशा भोसले ग़ज़ल

आँखों को इंतज़ार था, दे के हुनर चला गया
चाहा था एक शख्स को जाने किधर चला गया
चाहा था एक शख्स ............
दिन की वो महफिले गयी, रातों के रत जगे गये-२
कोई समेट कर मेरे
कोई समेट कर मेरे, शानो सहर चला गया
चाहा था एक शख्स ............
झोंका हैं एक बहार का, रंगे ख़याल यार भी-२
हर्सू बिखर बिखर गयी
हर्सू बिखर बिखर गयी, खुश्बू जिधर चला गया
चाहा था एक शख्स ............
उसके ही दम से दिल मे आज, धूप भी चाँदनी भी हैं-२
दे के वो अपनी याद के
दे के वो अपनी याद के, शम्सो कमल चला गया
चाहा था एक शख्स..............

उछा बकुचा दर बदर, कब से भटक रहा है दिल-२
हुमको भुला के राह वो
हुमको भुला के राह वो, अपनी डगर चला गया
चाहा था एक शख्स............४




कुछ दूर हमारे साथ चलो हम दिल की कहानी कह देंगे।-गायक- आशा भोसले व हरिहरन जी

कुछ दूर हमारे साथ चलो हम दिल की कहानी कह देंगे।।
समझें न जिसे तुम आखों से वह बात ज़बानी कह देंगे।।
कुछ दूर हमारे........

फूलों की तरह जब होंठो पर एक सोख तब्बसुम बिखरेगा-२
धीरे से तुम्हारे कानों में एक बात पुरानी कह देंगे।
समझें न जिसे तुम आखों से वह बात ज़बानी कह देंगे।।
कुछ दूर हमारे........

इज़हारे वफ़ा तुम क्या समझो इकरार वफ़ा तुम क्या जाने-२
हम जिक्र करेंगे गैरो का और अपनी कहानी कह देंगे।।
समझें न जिसे तुम आखों से वह बात ज़बानी कह देंगे।।
कुछ दूर हमारे........

मौसम तो बड़ा ही ज़ालिम है तूफ़ान उठाता रहता है।-३
कुछ मगर इस हलचल को बदमस्त जवानी कह देंगे
समझें न जिसे तुम आखों से वह बात ज़बानी कह देंगे।।
कुछ दूर हमारे........
गायक- आशा भोसले व हरिहरन जी