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प्रेमचंद जयंती पर पाॅंच नवगीत - डॉ अक्षय पाण्डेय ग़ाज़ीपुर उत्तर प्रदेश ~ Lav Tiwari ( लव तिवारी )

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शुक्रवार, 8 सितंबर 2023

प्रेमचंद जयंती पर पाॅंच नवगीत - डॉ अक्षय पाण्डेय ग़ाज़ीपुर उत्तर प्रदेश

  प्रेमचंद-जयंती पर पाॅंच नवगीत - अक्षय पाण्डेय

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(1)
प्रेमचंद के उपन्यास-सा
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पर्त-पर्त सच्चाई जिसकी
खोल रहा 'गोदान',
प्रेमचंद के उपन्यास-सा
पूरा हिन्दुस्तान।
देख महल को, झोपड़ियों के
रंग लजाते हैं,
ऑंसू के संग ऑंखों के
सपने बह जाते हैं,
कभी नहीं पूरा होता है
होरी का अरमान।
ऊपर से दिखता है केवल
चेहरा धुला-धुला,
पलड़े में पासंग बाॅंध कर
बैठी यहाॅं तुला,
मक्कारी से रहा हारता
होरी का ईमान।
ख़ुद जल कर सबके सपनों को
रखता हरा-भरा,
बोझ कर्ज़ का ढोता हर पल
रहता डरा-डरा,
जितना तब था, उतना अब भी
होरी है हलकान।
आती-जाती सरकारों के
झूठे वादों से,
घायल है मन, इनके शातिर
छद्म इरादों से,
कब देखेंगे ये होरी में
दुखिया मरा किसान।
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(2)
होरी की रामकहानी
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अच्छे दिन की सबसे बड़ी
यही हैरानी है ,
होरी की पहले जैसी ही
रामकहानी है ।
भूख उदासी कुण्ठा का
सन्ताप मिला हक में ,
मरी हुई उम्मीदों का
अभिशाप मिला हक में ,
बंजर में नित सपना बोये ;
रोज़ सुहागिन धनिया रोये ;
"भारत अपना देश और
दिल्ली राजधानी है" ।
काँधे पर हल ढोने की
मजबूरी संग लिए ,
जीता है हर पल अन्तस् में
दुक्ख अभंग लिए ,
रोज़ नया सूरज गढ़ता है ;
फिर भी अँधियारा बढ़ता है ;
दरवाज़े पर अशुभ रच रही
कुतिया कानी है ,
तन्मय रहता है हरदम
मर्यादा ढोने में ,
टूटे मन को रख देता है
घर के कोने में ,
कच्ची दीवारों - सा गिरता ;
रेत सरीखा बहता - थिरता ;
आज समय के किस मुकाम पर
ठहरा पानी है ?
ooo
(3)
प्रेमचन्द के कथा-समय में
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प्रेमचन्द के कथा-समय में
जीती है अम्मा ।
माँ की आँखें ढूँढ़ रहीं हैं
होरी वाला गाँव ,
झूरी के दो बैल कहाँ
पंचों का कहाँ नियाँव ,
गये समय से नये समय को
सीती है अम्मा ।
ठाकुर का वह कुआँ
जहाँ मानवता मरती है ,
और भगत के महामन्त्र से
खुशियाँ झरतीं हैं ,
अनबोले रिश्तों की पीड़ा
पीती है अम्मा ।
घर में एक सुभागी जैसी
बिटिया चाह रही ,
बुधिया को ना मिला कफ़न
मन में घन आह रही ,
इसीलिए सबकी प्यारी
मनचीती है अम्मा ।
ईदगाह में हामिद की
वत्सलता मोल रही ,
बूढ़ी काकी से अपने
सपनों को तोल रही ,
कितनी भरी हुई है
कितनी रीती है अम्मा ।
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(4)
दो बैलों की कथा
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प्रेमचंद ना होते तो
ये कथा न होती ,
झूरी के दो बैल
बैल थे हीरा-मोती ।
तोड़ गुलामी की दीवारें
बाहर आये ,
खुली फ़िज़ा में आज़ादी के
नग़मे गाये ,
उतरी अंतस् में विमुक्ति की
मंगल 'जोती'।
विविध उंगलियों से मिलकर
मुट्ठी बनती है ,
और सहज ही
महा ऐक्य-बल को जनती है ,
तनती है अरियों पर जब
तब जनता सोती ।
अपने भीतर के पशुत्व में
भरें चेतना ,
राष्ट्रप्रेम के लिए बनें हम
दीप्त आइना ,
तभी उड़ेगी मुक्त गगन में
श्वेत कपोती ।
ooo
(5)
पंच परमेश्वर
——————
इस कथा को आँख से ना
हृदय-तल से देख ,
एक अलगू चौधरी थे
एक जुम्मन शेख ।
सूर्य-सी समदर्शिता थी
आईने-सा मन ,
था सततगामी नदी-सा
लहरता जीवन ,
ज़िन्दगी की यह कथा है
सत्य का अनुरेख ।
पंच की वाणी
ख़ुदा की ज़ुबाँ होती थी ,
पंच के हाथों में
सत की तुला होती थी ,
पंच ईश्वर की क़लम थे
न्याय का आलेख ।
हर तराजू आज ले
पासंग बैठा है ,
सामने ईमान लेकर
भंग बैठा है ,
चोर है अंतःकरण में
संत का है 'भेख' ।
ooo
- अक्षय पाण्डेय