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गाजीपुर के सुप्रसिद्ध रचनाकार अहकम गाजीपुरी जी का संक्षिप्त परिचय एवं रचनायें ~ Lav Tiwari ( लव तिवारी )

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सोमवार, 28 अगस्त 2023

गाजीपुर के सुप्रसिद्ध रचनाकार अहकम गाजीपुरी जी का संक्षिप्त परिचय एवं रचनायें

प्रारूप
नाम : अहकम गाजीपुरी
जन्मतिथि : 19-03-1964
माता का नाम : खोदेजा खातून
पिता का नाम : शहादत अली
जन्म स्थान : नवापुर यूसुफपुर मोहम्मदाबाद गाज़ीपुर उत्तर प्रदेश 233227
शैक्षिक योग्यता : हाईस्कूल
संप्रति (पेशा) : कवि, शायर
विधाएं : ग़ज़ल, गीत, हम्द, मुंकबत, दोहा, हाईको नात,
साहित्यिक गतिविधियां :
प्रकाशित कृतियां : फिक्र-ए बेकरां
पुरस्कार सम्मान : शाने अदब, फक्र मोहम्मदाबादी अवार्ड, खामोश ग़ाज़ीपुरी अवार्ड
संपर्क सूत्र : 8115712432, 7652092433
निवास- नवापुर यूसुफपुर तहसील मोहम्मदाबाद जिला गाजीपुर उत्तर प्रदेश
विशेष परिचय :

रचना-१

    आप हैं क्यों लबों रुख़सार में उल्झे उल्झे
लोग हैं गर्मी ए बाज़ार में उल्झे उल्झे

उम्र भर हम रहे नाकामी ए पेहम के शिकार
मिट गए गैसू ए ख़मदार में उल्झे उल्झे

बाग़बाँ तेरे करम तेरी नवाज़िश के तूफ़ैल
फूल मुरझाने लगे ख़ार में उल्झे उल्झे

ढूंढते कैसे गुलिस्तां की तबाही का सबब
रह गए सुर्खीए अख़बार में उल्झे उल्झे

कैसे पहुंचेंगे मेरी फ़िक्र की गहराई तक
लोग हैं मीर के अशआर में उल्झे उल्झे

गेसूए ज़ीस्त को सुलझाने की फ़ुर्सत न मिली
जिंदगी हम रहे मझधार में उल्झे उल्झे

कारवां मंज़िले मक़सूद पे पहुंचे कैसे
हैं सभी वक्त की रफ़्तार में उल्झे उल्झे

हाय अफ़सोस किसी को नहीं फ़िक्र ए ऊक़बा
सब सियासत के हैं बाज़ार में उल्झे उल्झे

जिनसे इंसाफ़ की उम्मीद हमें थी अहकम
वह भी है दिरहमो है दीनार में उल्झे उल्झे

रचना-२

तपने लगा है सहरा बड़ी तेज़ धूप है
अब ढूंढो कोई साया बड़ी तेज़ धूप है

दिल में मेरे जवान है मंजिल की आरज़ू
आता नहीं है चलना बड़ी तेज़ धूप है

घबरा के पी ना जाए कहीं लालची नज़र
बादल का एक टुकड़ा बड़ी तेज़ धूप है

अहसास में है रात की ठंडक छुपी हुई
उभरेगा क्या अंधेरा बड़ी तेज़ धूप है

हमको बचा लो धूप से अब तो किसी तरह
जलता है जिस्म सारा बड़ी तेज़ धूप है

किसकी बुझाऊँ प्यास किसे सायेबान दूँ
हर आदमी है प्यासा बड़ी तेज़ धूप है

अहकम में हौसले की कमी तो नहीं मगर
साथी न कोई साया बड़ी तेज़ धूप है

रचना-३

नज़र के एक इशारे पे तूर जल जाए
क़दम क़दम पे मोहब्बत का नूर जल जाए

लगा दे आग मगर सोच हश्र क्या होगा
अगर वतन में कोई बेक़सूर जल जाए

फ़साना ए ग़में जाना न सुन सका वॉइज़
वही मैं दार पे कह दूं तो हूर जल जाए

चमक उठे जो सितारों में नक़्शे पा तेरे
खुदा गवाह फ़लक का ग़रूर जल जाए

हर शुक्र अब कोई मूसा नहीं ज़माने में
दिखाओ जलवा की खुद कोहे तूर जल जाए

हमारे पास है अजदाद का सिला मुज़मीर
उसे जो तर्क करूँ तो शऊर जल जाए

वो हमको तोड़ के मंदिर बनाने वाले हैं
खुदा करे कि ये बएते फ़तूर जल जाए

मैं चाहता हूं कि सब फ़ायज़ुल माराम रहे
दिलों का बुग़्ज़ तबीयत का ज़ूर जल जाए

रहे ना बाकी शरारों की शोला सामानी
करो कुछ ऐसा कि संगे ज़हूर जल जाए

तुम्हारे साथ सरे बज़्म मुस्कुराते हुए
अगर वह देख ले मुझको ज़रूर जल जाए

हज़ार कोशिशें की अहले गुलसिताँ ऐ दोस्त
ख़िज़ाँ की निकहतें गुल का सरूर जल जाए

ये उनको फ़िक्र है दुश्मन का घर जले ना जले
मगर इस आग में अहकम ज़रूर जल जाए

रचना-4

तेरी तस्वीर रूबरू करके
चैन पाता हूँ गुफ़्तगू करके

गुल उम्मीदों के खिल नहीं पाये
रह गया दिल को बस नमू करके

तुझको पाकीज़गी से पढ़ता हूँ
आंसुओं से सदा वज़ू करके

सुब्ह क्या होगा ये ख़ुदा जाने
रात कटती है मैं व तू करके

हो गया चाक पैरहन दिल का
क्या मिला कोशिश रफ़ू करके

छोड़ दी हमने ख्वाहिशे दुनिया
जुस्तजू तेरी कू ब कू करके

गिर गया ख़ुद जहां की नज़रों से
वो मेरा शिकवा चार सू करके

सिर्फ़ रुस्वाइयां हुईं हासिल
बेवफ़ा तेरी आरज़ू करके

मुतमइन सब हुसैन वाले हैं
ज़ेरे खंजर रगे गुलू करके

रूठ कर वो चले गए अहकम
दिल की हसरत लहू लहू करके