"तुम्हारा गिफ्ट में ग़ुलाब देना!, बहुत याद आता है,
चिट्ठियां रखकर क़िताब देना, बहुत याद आता है,
अब जब ख़त्म हो गईं हैं इच्छाएं और मर गये स्वप्न,
तुम्हारा नयनों को ख़्वाब देना, बहुत याद आता है,
आज देखता हूं तुम्हें मौन रूप में नई नस्लों के समक्ष,
तुम्हारा हर किसी को ज़वाब देना, बहुत याद आता है,
यद्यपि आज तुम्हारी इन प्रेरक बातों का मोल नहीं रहा,
तुम्हारा जर्जर जिस्मों में शबाब देना, बहुत याद आता है,
आज संघर्ष के पथ पर चलने वालों का कोई पूछ नहीं है,
तुम्हारा हर क़दम पर खिताब देना, बहुत याद आता है।"
नीरज कुमार मिश्र
बलिया
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