बुधवार, 20 दिसंबर 2023

मेरे जीवन के विरानियों में सुंदर बगिया की बहार हो तुम- रचना लव तिवारी

ताजमहल की सुंदरता लिए एक अनुपम उपहार हो तुम।
मेरे जीवन के विरानियों में सुंदर बगिया की बहार हो तुम।।

देख कर तुमको आहे भरता औऱ तड़पता तुम्हारी यादों में।
ईश्वर रूपी एक फरिस्ता बन अदभुत पहचान हो तुम।।

एक तम्मना लिए खुदा से मांगता हूं दिन रात तुम्हें।
हो जाती तुम मेरी साजना अमृत घड़ा की प्यास हो तुम।

तुमको पाने की उम्मीद में कैसे कटते है दिन रात मेरे।
ख़ुदा तुमको हमें सौंप दे इस दुनियां की सौगात हो तुम।।




मंगलवार, 19 दिसंबर 2023

तुम्हें पाकर खोने को कुछ नही जिंदगी एक ख़्वाब साजोंने को कुछ नही- रचना लव तिवारी

तुम्हें पाकर खोने को कुछ नही
जिंदगी एक ख़्वाब साजोंने को कुछ नही।

आदमी में भला क्या मांगू ख़ुदा से
मुझको सब मिल गया पाने को कुछ नही।

एक हसरत लिए अब भी बैचेन सा होता है
भर दु मांग तेरा अब पछताने को कुछ नही।

बन के रहना तुम मेरी यही तम्मना है मेरी।
दुनिया मेरी मुस्कुराती रहें अब आज़माने को कुछ नही

दूसरा- ग़ज़ल

कुछ नहीं बस तू ही है जिंदगी मेरे नाम की,
आते जाते ख्वाबों में बस गई एक जान सी।

मुझको मिल गया जो चाहा और ख़ुदा से क्या चाहु।
हसरते पूरी हुई जो ख़्वाब थी अरमान की।

मुझसे करना न फरेब बनकर रहना मेरी दुल्हन।
तुम पर शुरू हुई हैं ख्वाईश जब तक रहे ये प्राण भी।

मुझको और कुछ नही चाहिए तेरे सिवा कुछ और भी।
बन गई हो दिल की धङकन रहना मेरे साथ ही।।




शादीशुदा स्त्री अक्सर कर बैठती है इश्क- अज्ञात

शादीशुदा स्त्री अक्सर कर बैठती है इश्क
मांग में सिंदूर होने के बाबजूद
जुड़ जाती है किसी के अहसासो से
कह देती है उससे कुछ अनकही बाते
ऐसा नहीं कि बो बदचलन है
या उसके चरित्र पर दाग है..
तो फिर वो क्या है जो वो खोजती है
सोचा कभी स्त्री क्या सोचती है
तन से वो हो जाती है शादीशुदा
पर मन कुंवारा ही रह जाता है
किसी ने मन को छुआ ही नहीं
कोई मन तक पहुंचा ही नहीं
बस वो रीती सी रह जाती है
 और जब कोई मिलता है उसके जैसा
 जो उसके मन को पढ़ने लगता है
 तो वो खुली किताब बन जाती है
 खोल देती है अपनी सारी गिरहें
 और नतमस्तक हो जाती है उसके सम्मुख
 स्त्री अपना सबकुछ न्यौछावर कर देती है
 जहां वो वोल सके खुद की बोली
 जी सके सुख के दो पल
 बता सकें बिना रोक टोक अपनी बातें
 हंस सके एक बेखौफ हंसी
 हां लोग इसे ही इश्क कहते हैं
 पर स्त्री तो दूर करती है
 अपने मन का कुंवारापन..!!


तकलीफ़ दुनिया मे कम कहा है किसके आगे रोया जाए- रचना लव तिवारी

तकलीफ़ दुनिया मे कम कहा है।
किसके आगे रोया जाए।

हम सल्तनत के राजा नहीँ
कैसे किसी को ढोया जाय।

सत्ता जिसकी है वो बेख़बर है
नेता और अधिकारी जन

मेरा आंसू कौन पोछेगा
किसको हमदर्द कहा जाये।।

इस दुनिया मे जो भी आया
सब कुछ न कुछ दर्द लिए है।

मेरी हालत ऐसी है कि
सबके दर्द को को न सहा जाए

मेरे मालिक तेरी दुनिया मे ऐसा क्यों अन्याय है।
जो तेरा है वही दुःखी है किस किस से निपटा जाय।।

ताजमहल सी खूबसूरत एक फ़रमान हो तुम। मेरे पवित्र प्यार की उमीद वफ़ा यार हो तुम।।रचना लव तिवारी

ताजमहल सी खूबसूरत एक फ़रमान हो तुम।
मेरे पवित्र प्यार की उमीद वफ़ा यार हो तुम।।

रहो सलामत हरदम जले तुम्हारे दुश्मन सब।
आती जाती ठंडी हवा की एक बयार हो तुम।।

मुझपर बस एहसान कर मेरी हो जाओ तुम।
और कुछ नही चाहिये खुदा से मेरी प्राण हो तुम।।

ख़ुद से ज्यादा भरोसा करते है दिन रात तुम्ही पर।
और किसी मत हो जाना मेरी जान हो तुम।।

2- शेर

दिन रात तुझे में देखु बस यही तम्मना सौ बार मेरी।
तुम भी मुझकों देखा करना दिल का है अरमान यही।।

आ जाओ पास मेरे दुनिया के सारे रिश्ते को तोड़कर।
बन जाओ बस मेरी सजाना लेकर हर अरमान यही।



शुक्रवार, 15 दिसंबर 2023

मेरा दर्द क्या है यह मैं दुनिया को दिखला नहीं सकता- रचना लव तिवारी

मेरे सामने बैठे हुए प्यार को मैं अपना नहीं सकता।
इस दुनिया झुठी रिवाज़ से मैं टकरा नही सकता।।

अब तो यही रह गया है इस जमाने की फ़ितरत में ।
पास रखी अपनी ही वस्तु को भी कोई पा नहीं सकता।।

जिसको जो चाहे मिल जाए ऐसा ख़ुदा क्यों नहीं करता।
हर प्यार करने वाला अपने दर्द को ठुकरा नहीं सकता।

एक तुम ही तो हो जो मेरे दिल दिमाग जहन में बैठे हो।
क्या कोई अपने दिल की धड़कनों को धड़का नहीं सकता।।

किस्मत मेरी निक्कमी है जो महबूब के प्यार को पा ना सकूं।
मेरा दर्द क्या है यह मैं दुनिया को दिखला नहीं सकता।।

एक दिन वह दौर आएगा जब तुम मेरी और मैं तेरा रहूंगा।
इस बात की गंभीरता को कोई अब झुठला नहीं सकता।।




बुधवार, 13 दिसंबर 2023

मैं जानता हूं कि तुम मेरी नहीं हो फिर भी तुमको पाने को दिल करता है रचना- लव तिवारी ग़ाज़ीपुर

ये आंखें ये होंठ और सादगी भरा चेहरा इसमें डूब जाने को दिल करता है।
मैं जानता हूं कि तुम मेरी नहीं हो फिर भी तुमको पाने को दिल करता है।।।

यह जमाने के दस्तूर और नियम हमारे लिए नहीं है
ये सब जानकर फिर भी तुमसे दिल लगाने को जी करता है।

तुम मेरी हो कर रहोगी इस बात का यक़ीन मुझे भी है।
फिर भी तुम्हारे याद में दिल को धड़काने का जी करता है।

खुदा तुम्हें हर शोहरत हर ना चीज से नवाजे इस जमाने में
जो तेरे दुश्मन है उनको रास्तों से हटाने को जी करता है।

आदमी में भी बुरा कहां हूं जो बस तुम्हारे बारे में सोचता हूँ।
अब दिल आ ही गया है तुमपर तो साथ मुस्कुराने जी करता है।।



मंगलवार, 12 दिसंबर 2023

देखते देखते सो जाते हैं इन खूबसूरत चेहरे को। रचना लव तिवारी

देखते देखते सो जाते हैं इन खूबसूरत चेहरे को।
मेरे दर्द को तुम क्या जानो नही सोचते किसी औरों को।

तुम ही मेरी दवा दुआए साथ हो मेरे हक़ीम भी।
नहीं समझोगे तो मर जाएंगे दर्द लिए इन जख्मों को।।

चाह के तुमको गुनाह किया हूं तड़प रहा हूं पल पल में
तुम भी मुझको वैसे ही चाहों जैसे चाहत हो वर्षो की

सपने मेरे सच कर जाओ आकर तुम मेरी बन जाओ
इस दुनिया में जो ना हो सका वो करके तुम दिखलाओ।

एक तम्मना हरदम मेरी, तुम्हारा परचम ही लहराये
जो तुम्हारा जानी दुश्मन है वो खाक में मिल जाये।।

रहो सलामत हरदम तुम, मेरी उम्र भी तुमको लग जाये।
करो राज दुनिया पर तुम साथ कोई आये या न आये।।



सोमवार, 11 दिसंबर 2023

आप की याद हमें अक्सर रुलाती है क्या करें आप भी कहा साथ निभाती है रचना लव तिवारी

आप की याद हमें अक्सर रुलाती है। क्या करें आप भी कहा साथ निभाती है। दिल मे रखकर दूर है इसका किसे ख़बर ये दर्द मेरा मुझको दिन रात तड़पाती है। मारा गया हूं तेरा प्यार का कोई दवा नही एक चेहरा तेरा देख लू तो सुकून की नींद आती है। जमाने की तरह तुम भी अब मतलबी न बन जाओ तुम भी तो मेरा दर्द समझो जिसे दुनिया सताती है।




ख़ुदा का शुक्र देखिए कि आप हमको ही मिल गए रचना - लव तिवारी


नजर में बसते बसते कब दिल में बस गए।

आदमी थे आप गैर कब रूह में उतर गए।।


इतनी मोहब्ब्त किसी से मैंने की नही कभी

आप है जो खुशियों से दामन मेरा भर दिए।


कुछ लोग ने मुझसे आप के बारे में कुछ कहा।

तो फिर क्या है देखिए कि हम ज़माने से भीड़ गए।।


हर शख्स है पागल आप को पाने की चाह में।

ख़ुदा का शुक्र देखिए कि आप हमको ही मिल गए।।


मेरा वजूद बढ़ा है आप शख्शियत को पाने से

कुछ लोग मुझसे कहते है कि आप धन्य हो गए।।



रविवार, 10 दिसंबर 2023

मेरा हक अब किसी को न देना मेरी हो तो बस मेरी ही होना रचना - लव तिवारी

मेरा हक अब किसी को न देना।
मेरी हो तो बस मेरी ही होना।।

मेरी धङकन हो गयी हो जबसे तुम,
अब किसी से क्या लेना देना।।

मेरी अमानत हैं तेरा वो प्यारा दिल
अब किसी को इसे कभी मत देना।

ख़ुदा तुम्हें रखेगा सलामत
इस दुनिया से फिर क्या लेना।

सारी मुरादे हो आप की पूरी
दुनिया मे बस आप का होना

लव तुमको चाहेगा हरदम।
यही तम्मना मरते दम तक देना।।

रचना - लव तिवारी



शनिवार, 9 दिसंबर 2023

तुम्हारी याद ही मुझको हर पल हर वक्त क्यों सताती हैं- लव तिवारी

तुम्हारी याद ही मुझको हर पल हर वक्त क्यों सताती है।
ये दुनिया क्या कोई कम है निगाह तुम पर ही जाती है।

बड़ा दुष्वार है जीना इस दौर में तुम्हारे बिना।
मेरी दुनिया बस तुम हो ये क्यों नही समझ पाती हो।

ये जीवन तुम बिन मुझको बहुत सुना सा लगता है।
जमाने भर की खुशियां मुझे क्यो नही रास आती है।।

मैं मर जाऊँगा तुम बिन जब तुम मेरी हो न पाओगी।
दुनिया की कोई तकलीफ़ मुझे नही दर्द दे पाती है।

कभी आओ मेरी बाहों में लिपट कर अपने गम सारे दे दो।
जब तुम ख़ुश होते हो तभी तो मुझे नींद आती है।।

रचना - लव तिवारी


गुरुवार, 7 दिसंबर 2023

इतिहास गवाह बा क्षत्रिय बल से ना छल से मारल गईल बा -कुमार अजय सिंह गीतकार

🗡️✍️ क्षत्रिय के बलिदान ✍️🗡️

बीरवन के बीर गति होखल,ई इतिहास के बात पुरान बा
अत्याचार के विरोध करे में,क्षत्रिय के भइल बलिदान बा 

चाहे लड़ाई आजादी के होखे,चाहे बॉडर के सुरक्षा के
बीना क्षत्रिय के शस्त्र उठइले,वतन के,के करी रक्षा के 
क्षत्रिय वंश के त्याग तप के,जानत जगत हिन्दुस्तान बा
अत्याचार के विरोध करे में,क्षत्रीय के भइल बलिदान बा 

जब करवट सता लेला,चाहे लाज राखेके होला कानुन के
रणभूमी में कुद जाला,अपने हाथे तिलक लगाके खुन के 
ना डेराला लड़े मरे से,ई लिखले अपने हाथ से दास्तान बा
अत्याचार के विरोध करे में,क्षत्रीय के भइल बलिदान बा 
 
पीठ पर वार करे ना जाने,घोंपे भाला सोझा से छाती पर 
विश्वासघात ना करेला,ना हाथ लगावे दोसरा के थाती पर
आपन सब कुछ लुटाके,दोसरे के बचावे में ई परेशान बा 
अत्याचार के विरोध करे में,क्षत्रीय के भइल बलिदान बा  

कफन के आपन पोसाक समझेला,मृत्यु के जानेऽ इयारी
कुर्बानी हॅंस के देला,भारत माता के धरती के हऽ पुजारी  
ठोक देबे सोझा सोझी,ठोके ठोकाय में पहिला स्थान बा 
अत्याचार के विरोध करे में,क्षत्रीय के भइल बलिदान बा 

माथ पर पगरी डाड़ में लंगोटा,हाथ में राखे मोटहन सोटा
कटइब कगरी त पटक के रगरी,धके बांह कबार दी झोटा
रहस अजय अपना संस्कार में,ऐकरा पर बेसी ध्यान बा 
अत्याचार के विरोध करे में,क्षत्रीय के भइल बलिदान बा  

बीर सुखदेव सिंह गोगामेणी के शहादत,अमर कहानी बा
फिर रामचन्द्र महराणा के वंशज,लिखले नया कहानी बा 
खुन के धार से निकलल ज्वाला,धरती पर ई कृतिमान बा 
अत्याचार के विरोध करे में,क्षत्रीय के भइल बलिदान बा 

सर्वाधिकार सुरक्षित @@
कुमार अजय सिंह गीतकार 

------------------------------------------------------------
इतिहास गवाह बा क्षत्रिय बल से ना छल से मारल गईल बा !!
बीर शहिद क्षत्रिय के कफन भारत माता के दिहल लहु से खंघारल गईल बा !!

कुमार अजय सिंह गीतकार 
नमन एवं विनम्र श्रद्धांजली।          
 🙏🙏🙏🙏🙏


बुधवार, 6 दिसंबर 2023

तोहरा बीना कतहुं लागे नाही मन रनीया हऊ जिन्दगी के हमरा तुहीं धन रनीया - गीतकार कुमार अजय सिंह

✍️ जिन्दगी के धन हमार रानी ✍️

तोहरा बीना कतहुं लागे,नाही मन रनीया
हऊ जिन्दगी के हमरा,तुहीं धन रनीयाऽ

ओठ चटकार लाल,सुगनी के ठोर बा
चढ़ल जवानी भरल,रस पोरे पोर बा
रह दिल के भीतर इहे,बा खखन रनीया
हऊ जिन्दगी के हमरा,तुहीं धन रनीयाऽ

दिनवा तऽ ऐने ओने,घुम फिरके कटेला
रतिया में बीना तोहके,अंखियां ना सटेला
सट के सुतीले मन होला,टनाटन रनीया
हऊ जिन्दगी के हमरा,तुहीं धन रनीयाऽ

लवकुश तिवारी के,लेलऽ आशीर्वाद तु
गोलु साथे जीवन कटी,रहबु आबाद तु
"अजय" कहस बड़ा लागेलु निमन रनीया
हऊ जिन्दगी के हमरा,तुहीं धन रनीयाऽ

सर्वाधिकार सुरक्षित @@
कुमार अजय सिंह गीतकार

पत्नि भक्त गोलु जी के सेवा में सादर समर्पित भेंट संदेश द्वारा लवकुश तिवारी गाजीपुर उत्तर प्रदेश 🌹❤️🌹❤️🌹



शुक्रवार, 1 दिसंबर 2023

दिल के सच्चे लगते हो तभी तो अच्छे लगते हो आदत तुम्हारी इतनी प्यारी,तभी तो बच्चे लगते हो- रचना लव तिवारी


दिल के सच्चे लगते हो, तभी तो अच्छे लगते हो।
आदत तुम्हारी इतनी प्यारी, फिर क्यों बच्चे लगते हो।


मुझपर अपना प्यार लुटाकर, हमदर्दी की बात जताकर।
हर पल हर क्षण यादों में, अक्सर चलते रहते हो।।


मेरी दुनिया तुमसे है और तुम हो मेरी जाने तम्मना।
करू इबादत तुम्हारी ही बस, मुझकों ख़ुदा तुम लगते हो


सास का क्या कब थम जाये, जीवन अपना कब रुक जाए।
इस दुनिया की आपा धापी में, बस तुम ही सच्चें लगते हो।


गीता और कुरान की बातें, सब अपने जगह पर सब ठीक है।
बातें तुम्हारी खुश रखती है,और तुम मुझको अच्छे लगते हो।

रचना लव तिवारी
ग़ाज़ीपुर उत्तरप्रदेश 



हमने भी जिंदगी में क्या हासिल किया रचना ऋषिता सिंह

हमने भी जिंदगी में क्या हासिल किया
अपने ही ग़म में लोगों को शामिल किया

देवता हो न जाए यहाँ हम भी फिर
इस दफ़ा हमने पत्थर को भी दिल किया

मैं तो कमज़र्फ़ हूँ और तू है ज़की
लोगों ने मेरा सच फिर तो बातिल किया

बाख़बर थी मैं भी इश्क़ की चाल से
और फिर इश्क़ ने तेरे ग़ाफ़िल किया

आए भी तुम थे तो चोर दरवाज़े से
ये मिरी ही ख़ता तुमको दाख़िल किया

रचना- ऋषिता सिंह
युवराजपुर गाज़ीपुर उत्तर प्रदेश






बिना कुछ किये हुए कोई भी काम मुकम्मल नहीं होता- रचना नीरज कुमार मिश्रा बलिया ,

"बिना कुछ किये हुए कोई भी काम मुकम्मल नहीं होता,
बिना किसी प्रयास के किसी समस्या का हल नहीं होता,

ज़रूर उसने अटूट विश्वास किया होगा अपना समझकर,
नहीं तो बिना विश्वास किये किसी के साथ छल नहीं होता,

अगर मिली है ज़िंदगी तो किसी के परमार्थ कुछ अच्छा करो!,
मरणोपरांत जग में नाम नहीं होने पर जीवन सफ़ल नहीं होता,

तुम्हारी सफलताओं पर तुम्हारे कथित अपने ही ज़हर उगलेंगे,
आस्तीन के सांप से ज़्यादा किंग कोबरा में भी गरल नहीं होता,

अपने अधिकारों को पाने लिए तुमको स्वयं ही लड़ने पड़ेगा!,
ज़िंदगी का सफर बहुत मुश्किल होता है यह सरल नहीं होता।"

नीरज कुमार मिश्र
बलिया



गुरुवार, 30 नवंबर 2023

आदमी में कैसा जो तुम्हारी याद में रो लेता हूँ- लव तिवारी

तेरी तस्वीर को दिल से लगाकर

रात की तन्हाइयों में तुम्हें अपना बनाकर


कई उलझे किस्सों को भी सुलझाकर

गैरो से छीन कर तुम्हें अपना बनाकर


मैं अक्सर तुम्हें सोचकर खुश हो लेता हूं

आदमी में कैसा जो तुम्हारी याद में रो लेता हूँ।

आदमी मैं कैसा...........


आदत कैसे सुधारू तुम्हारे अपना बनाकर

दिल की तड़प की हर हद में जाकर


इस दौर में कोई अपना दूर रहता है क्या

इस दर्द भरे बात को भी अपना मानकर


मेरी अमानत तू किसी गैर के पास आज भी है।

जहन में रखकर तुम्हारी तस्वीर को चूम लेता हूं।

आदमी में कैसा जो तुम्हारी याद में रो लेता हूँ।

आदमी में कैसा..........


कितने जन्मों से तुम्हे अपना बनाकर

ज़माने के दस्तूर से तुझे न अपनाकर


कई घाव जख्म अपने सीने में दबाकर

इस जमाने की हर बिगड़ी बात भुलाकर।


जिस भी परेशानियों से तुम मुझसे दूर रहते हो।

इस तकलीफ़ भरे घांव को भी संजो लेता हूं।

आदमी में कैसा जो तुम्हारी याद में रो लेता हूँ।

आदमी में कैसा..........


रचना लव तिवारी
ग़ाज़ीपुर उत्तरप्रदेश 



बलिया के प्रसिद्ध लेखक रचनाकार श्री सर्वेश कुमार तिवारी श्रीमुख जी के साथ गोपालगंज भोजपुरी महोत्सव में





प्यारी सुंदर मूरत की एक दिव्य प्रतिमा हो तुम। ना जाने कितनों के दिल की गरिमा हो तुम रचना लव तिवारी ग़ाज़ीपुर


प्यारी सुंदर मूरत की एक दिव्य प्रतिमा हो तुम।
ना जाने कितनों के दिल की गरिमा हो तुम।

खुदा रखे तुम्हें हर दम सलामत यही दुआएं है मेरी।
मेरा बनकर साथ रहो बस यही तम्मना हो तुम।।

कोई तुमको भी चाहे इससे हमें एतराज़ नही।
तुम बस मुझको ही चाहों बन जाओ विश्वास मेरी।।

कोई गम ना कोई पीड़ा तुमको न कभी तड़पाये।
तेरे हिस्से का दुःख- दर्द भी मेरे हिस्से में आये।

रहो खुश तुम सदा जीवन में, जहाँ रहो मेरी दिलरुबा।
तेरी ख़ुशी से में भी खुश रहू, यही हमारी है दुआ।।

रचना- लव तिवारी 
ग़ाज़ीपुर उत्तर प्रदेश



बुधवार, 29 नवंबर 2023

मुझमें डूब कर सवर जाने की बात कर- रचना लव तिवारी गाज़ीपुर उत्तर प्रदेश

मुझमें डूब कर सवर जाने की बात कर।

तुमसे क्या रिश्ता है मेरा, इसे सुलझाने की बात कर।


आदमी मैं बुरा नही मगर जमाने से शिकायत भी नही।

तुमको कैसा लगता हूँ ये बताने की बात कर।।


कौन कहता हूं कि मोहब्बत बुरी चीज़ है दुनिया में

मेरा मुझको मिल जाये, बस ये दुआओं की बात कर।।


तेरा साथ मिल जाये तो ज़माने की हर हसरत पा लू।

में भी तो तेरा ही हूँ, तो हक जताने की बात कर।।


कितनी तड़प है दिल में, अगर पास होते तो सुनते ।

दूर रहकर मेरे पास है तू, बस पास आने की बात कर।


तुम्हारी याद में रचना - लव तिवारी ग़ाज़ीपुर उत्तरप्रदेश








जुबां से झरता है अमृत उनके मगर वे दिल में ज़हर रखते हैं नीरज कुमार मिश्र बलिया

वे मुझसे आंखें मिलाते नहीं,
मगर मुझ पे तीरे नज़र रखते हैं

वे मुझसे मेरा हाल नहीं पूछते,
मगर वे मेरी हर ख़बर रखते हैं,

जुबां से झरता है अमृत उनके,
मगर वे दिल में ज़हर रखते हैं,

ज़माने की नज़र में वे 'पुष्कर' हैं,
मगर वो समंदर सा लहर रखते हैं,।"

पुष्कर - तालाब (तालाब से तात्पर्य ठहरा हुआ पानी)

नीरज कुमार मिश्र 
     बलिया


डरिये मत मुझसे प्यार कीजिये खूबसूरत जिंदगी का इजहार करिए- लव तिवारी ग़ाज़ीपुर।

डरिये मत मुझसे प्यार कीजिये।
खूबसूरत जिंदगी का इजहार करिए।

आदत बिगड़ गईं तो हम संभाल लेंगे।
मुझसे ही बस बेइन्तहा प्यार करिये।।

कोई क्या देगा किसी को इस जमाने में।
सुकून से बीत जाए एक पल इसका इंतेजार करिए।

जिंदगी बदली सी, सहमी सी और खामोश सी है मेरी।
मेरे दिल की धङकन बन मुझको गुलजार करिये।।

कब किसका भरोसा छोड़ दे इस प्यारे जहाँ को।
जो वक्त दिया है खुदा ने, उसका ऐतबार करिये।।

रचना लव तिवारी 
ग़ाज़ीपुर उत्तर प्रदेश


जीवन को तुम क्या रोकोगे- रचना डॉ एम डी सिंह सुप्रसिद्ध होम्योपैथिक चिकित्सक गाज़ीपुर उत्तर प्रदेश

जीवन को तुम क्या रोकोगे ?

मृत्यु रोक लो चाहे तुम सब
जीवन को तुम क्या रोकोगे
क्या बांधोगे क्या टोकोगे
किसी खूटी किसी बुर्ज पर
क्या टांगोगे क्या ठोकोगे

यह खर नहीं पतवार नहीं है
भुग चुका संसार नहीं है
जिसे जला दो जिसे ताप लो
सुखी पत्तों का अंबार नहीं है
सागर पी गए
हो चाहे अगस्त्य तुम
बह रहा निरंतर ब्रह्मांड फोड़
यह गागर में तेरे नहीं अंटेगा
इस जल को तुम क्या सोखोगे

मथ समुद्र को ऊपर आया
देख वासुकी भी थर्राया
गरल गले बन नील रह गया
जीवन एक भी न हर पाया
कहां नहीं है
पर्वत खाई हिम अनल में
मृग मरीचिका सागर तल में
पाक चमक बाहर निकलेगा
किसी भांड किसी भट्टी में
चाहे जितना तुम फूंकोगे
चाहे जितना तुम झोंकोगे
जीवन को तुम क्या रोकोगे ?

डाॅ एम डी सिंह
( 17 दिन तक मृत्यु की घेराबंदी में रहकर भी 41 मजदूर सकुशल जीवित बाहर आए। अनेक बाधाएं आईं एक भी जीवन यात्रा को रोक न सकीं। 2014 में लिखी गई और मेरे कविता संग्रह 'समय की नाव पर' में छपी यह कविता शायद इस दिन के लिए ही लिखी गई थी।)



मंगलवार, 28 नवंबर 2023

मन परिंदे को पंख मिल ही जाएगा मेहनत करने से अंक मिल ही जाएगा- रचना नीरज कुमार मिश्र बलिया

"मन परिंदे को पंख मिल ही जाएगा,
मेहनत करने से अंक मिल ही जाएगा,

रास्तों पर नीचे देखकर ही पैर रखना,
ध्यान हटने पर डंक मिल भी जाएगा,

ज़िंदगी के सफ़र में चलते-चलते हुए,
कभी राजा,कभी रंक मिल ही जाएगा,

ज़रूरी नहीं हमेशा हाथों को यश मिले,
कभी न कभी कलंक मिल ही जाएगा,

नभ में कौओं की झुंड से निराश मत हो,
धरती पर तुमको कंक मिल ही जाएगा,।"

नीरज कुमार मिश्र
बलिया



आंसू जब सूख जाते हैं तब मोम हृदय पत्थर बन जाता है नीरज कुमार मिश्र बलिया

आंसू, जब सूख जाते हैं, तब,
मोम 'हृदय' पत्थर बन जाता है,

भावनाएं रूपी लहरें उठती नहीं,
ठहरा हुआ समंदर बन जाता है,

कसक रूपी पत्ते झड़ जाते हैं,
पतझड़ का शजर बन जाता है,

उस पर पड़ जाते हैं रेत ईष्र्या के,
यह मरूधरा बंजर बन जाता है,

दफ़न हो जाती हैं संवेदनाएं इसमें,
मृत आत्मा का कबर बन जाता है,।"

नीरज कुमार मिश्र
बलिया



सोमवार, 27 नवंबर 2023

इश्क़ ये तो कोई भी आफ़त नहीं है दिल लगाने की पर इजाज़त नहीं है- ऋषिता सिंह

इश्क़ ये तो कोई भी आफ़त नहीं है
दिल लगाने की पर इजाज़त नहीं है

इस जहाँ में ये दिल न आबाद होगा
इस जहाँ की मुझको ज़रूरत नहीं है

तेरे बिन हम भी कर ही लेंगे गुज़ारा
पर तेरे बिन जीने की आदत नहीं है

अब मुक़द्दर में ही नहीं साथ तेरा
कुछ दुआओं में मेरी ताकत नहीं है

दिल कुशादा है अब भी उनकी ही ख़ातिर
दिल पे गुज़री कोई क़यामत नहीं है

दिल लगा ले अब और वो भी किसी से
अब लगाने की मुझको हिम्मत नहीं है

देख कर तुम भी ज़ख़्म मेरे हो हँसते
तुमसे हमदर्दी की भी हसरत नहीं है

तुम फ़साने इतने बनाते ही रहते
ये मुहब्बत है जाँ सियासत नहीं है

अब जो आओगे तुम भी मिलने तो हम से
हम मिलेंगे तुमसे वो हालत नहीं है

ऋषिता सिंह




रविवार, 26 नवंबर 2023

दूर चले जाते हैं लोग रचना नीरज कुमार मिश्र बलिया

हसीन ख़्वाब दिखाकर दूर चले जाते हैं लोग,
अपनी नीयत जताकर दूर चले जाते हैं लोग,

पहले मीठी बात करके चले आते हैं रूह तक,
मन की फितरत बताकर दूर चले जाते हैं लोग,

लगा देते हैं विश्वास का पर्दा दिल के दरवाज़े पर,
विदा होते वक्त उसे हटाकर दूर चले जाते हैं लोग,

श्रद्धा की चाक से लिखते हैं प्रेम मुहब्बत की बातें,
धोखे के डस्टर से मिटाकर दूर चले जाते हैं लोग,

जिसे पता नहीं होता, मुहब्बत का "म" अक्षर भी,
उसे भी प्रेम रोग लगाकर दूर चले जाते हैं लोग,।"

नीरज कुमार मिश्र
बलिया



शनिवार, 25 नवंबर 2023

कई जगह कई बार मिली है मुझको आप सौ बार मिली है रचना लव तिवारी

कई जगह कई बार मिली है।

मुझको आप सौ बार मिली है


फिर भी दिल को चैन नही है।

आते जाते हर बार मिली है।।


कभी सुकून से मिल लो साहब।

तुम दिल की धड़कन बन जाओ।।


आती-जाती सांसों पर मेरी।

अपना नाम तुम कर जाओ।।


शायरी- २


ऐसे साथ रहने से क्या फायदा

मिलकर न मिलने से क्या फायदा


खुदा वह दौर दे जिसमे सुकू हम को मिले

दिल मे लगीं आग पर घी गिराने से क्या फ़ायदा


शायरी -३ आप के प्यार में


हम तो नजरे बिछाए हैं आपकी प्यार में

दिल की दुनिया लुटाए हैं आपके प्यार मे


मतलबी जमाना यह दौर हमारे कहा साथ देते है

हम तो अपनी जान लुटाए हैं आपके प्यार में


मोहब्बत एक बंदिश है दो दिलों की मन्नतो की

दिल मे आपकी मूरत सजाये है तेरे प्यार में


शायरी - ४ आप पहले मिल जाती


आप पहले क्यों नही मिली मुझको

इस चाहत का एक दौर तो जी लिए होते।


नही जाने देते किसी और की बाहों में

हम आप को अपने दिल मे ही सी लेते



शुक्रवार, 24 नवंबर 2023

अथर्वा - लेखक प्रोफेसर आनंद सिंह एवं समीक्षा प्रसिद्ध चिकित्सक दार्शनिक एवं साहित्यकार डॉक्टर एम डी सिंह ग़ाज़ीपुर

अथर्वा 
एक अद्भुत प्रेम कथा एक यायावर कवि की : 

    कवि है आनंद कुमार सिंह,जिसने चुपके से न जाने कब अपना नाम बदलकर अथर्वा रख लिया है। शायद वह अपने और अपनी प्रेयसी को दुनिया की निगाहों से बचाए रखना चाहता था। तभी तो उसके इस अलौकिक प्रेम प्रसंग के चुनिंदा पात्र ही साक्षी बन सके हैं। एक अनिंद्य सुंदरी षोडशी कविता यौवन के प्रथम पड़ाव पर ही कब उससे आ चिपकी उसे पता ही नहीं चल सका। फिर तो कब 20 वर्ष बीत गए न कवि को पता चला न उसकी प्रेयसी कविता को। कविता भागती रही पृथ्वी के उद्भव से अंत तक, ग्रहों और आकाशगंगाओं का भ्रमण करती रही, कवि यायावर बना पीछे पीछे खिंचता रहा तंद्रागामी हो। 

  500 पृष्ठों में फैला यह कोई खंड काव्य नहीं अपितु दुनिया की संभवतः सबसे बड़ी एवं लौकिक-पारलौकिक सीमाओं को लांघती, अत्यंत रहस्यमयी एक ही कविता है। यदि ध्यान से इस कविता को पढ़े तो पाठक या तो सम्मोहित हो शब्दपाश में बंध जाएगा अथवा आखेटित हो धराशाई होते-होते बचेगा। सच पूछिए तो हजारों अबूझ शब्दों का पिटारा लिए यह कवितां प्रथम दृष्ट्या कवि के शब्द सामर्थ्य की प्रदर्शन प्रतीत होगी। किंतु जब हम उन शब्दों की अर्थवतता से गुजरेंगे तो चौकें बिना नहीं रह पाएंगे। कवि तो अपनी ओर से कुछ कर ही नहीं रहा है, वह तो कविता के सम्मोहन जाल में फंसा, प्रेम पगा, छेनी हथौड़ी लेकर जिधर कविता ले जा रही है पहाड़ तोड़ रास्ता बनाने में लगा है,बावरा। कविता को कवि ने खंंडो में नहीं बांटा बल्कि कविता ने ही कवि को आनंदित कर अपने 16 श्रृंगारों में बिखेर दिया है। वह बवला तो वही दुहरा रहा है जो कविता गा रही है।

अथर्वा ब्रह्मा का मानस पुत्र है जिसे ब्रह्मा ने नए मनुअस्तर के निर्माण की जिम्मेदारी सौंपी है। वही कविता का प्रथम जनक भी है। अपनी ही कृति पर मोहित कवि भी है और उसकी आत्मा भी। अथर्वा का ही मानस पुत्र है प्रोफेसर आनंद कुमार जो बहुत ही चतुराई से यह कहता हुआ कि 'मैंने
 नहीं रचा इस कविता को' स्वयं को न्योछावर कर देता है अपनी ही कविता पर। आनंदवल्ली आनंद की ही आत्मकथा है जिसमें उसने स्वयं को सजाया संंवारा है अपनी प्रेयसी कविता के लिए बड़े ही सम्मोहक अंदाज में। अथर्वा अपनी मोहिनी कविता का बखान करने अपने शिष्यों के साथ उसे लेकर कविता के ग्रह तातीनियम पर जाता है और ब्राह्मडीय कवियों के बीच अपने को सर्वोपरि सिद्ध करता है। 

   मनुअस्तर की घटनाओं और इतिहास को 16 पांडुलिपियों में दर्ज कर 16 मंजूषाओं में सुरक्षित रखा गया है।इनमे से 15 को तो विद्वानों ने पा लिया है। जिनमें विराजती है आनंद की कविता सदेह किंतु उसे खोडषी की आत्मा तो 16वीं पांडुलिपि में है जो रहस्य में ढंग से गायब हो गई है। या सच कहा जाय तो स्वयं कवि ने अपनी रूपसी को चुरा कर एक रहस्य लोक का निर्माण किया है, जिसे ढूंढने और पाने की लालसा लिए विश्व भर के खोजी निकल पड़े हैं। कवि ने प्रत्येक पांडुलिपि का परिचय एक लघु कथा के रूप में बहुत ही सुगढ़ ढंग से प्रस्तुत किया है जिससे होकर उसकी कविता आगामी पांडुलिपि में प्रवेश करती है। किंतु मजे की बात यह है की कथा और कविता संयुक्त होते हुए भी अपना अलग अस्तित्व बनाए रखने में सफल रहते और एक वन का निर्माण करते हैं, जो सघन से सघनतर होता चला गया है। कवि हठात कह पड़ता है "मैं वही वन हूं"। मुझे यह कहने में थोड़ा भी संकोच नहीं हो रहा कि पाठक उस वन में खो जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

एक बार मैं फिर कहूंगा कि कवि इस कविता के कठोर शब्दावली एवं गूढ़ दर्शन के लिए स्वयं जिम्मेदार नहीं है। जिम्मेदार है उसकी सहज आत्मलीनता इस कविता की आत्मा के साथ। वह मात्र एक पतंग है जिसकी डोर बहुत चतुराई और पारंगतता के साथ इस कविता ने पकड़ रखी है। इस कविता के साथ कथाओं की संगत कवि को दम लेने के लिए बन पाई है। इस कविता को पढ़ने के लिए इसके साथ एकात्म होना पड़ेगा। फिर न गूढ़ता रह जाएगी ना शब्दों की कठोरता, तिलिस्म पर्त दर पर्त खुलता चला जाएगा और पाठक उसमें से निकलने को मना कर देगा। मैंने एक बार प्रोफेसर आनंद से कहा था शब्दों की चिंता ना करें वे स्वतः अवतरित हुए हैं वे स्वयं अपना रहस्य खोलेंगे। ज्ञान विज्ञान के अनेक सतहों पर कुलाचें भारती यह कविता साहित्य की अनेक रूपों को सहजता के साथ धारण करते हुए दिखती है। प्रागऐतिहासिक, प्राचीन, मध्ययुगीन और वर्तमान आधुनिक इतिहास को पन्ना दर पन्ना समेटे यह एक इतिहास कथा सी दिखती है, तो कभी दुनिया का भ्रमण करते किसी महा यायावर की संगिनी सी, या फिर किसी गहरे रहस्य को ढूंढने निकले दुनिया भर के खोजियों की रहस्यमय रोचक स्पर्धा प्रतीत होती है।

   इस कविता को पढ़कर कम से कम एक बात तो पक्की हो जाती है कि कुछ कविताएं जनित नहीं अवतरित होती हैं। यह कविता भी उनमें से एक है जो अपना अस्तित्व स्वयं निर्मित करती हैं और अपना रचनाकार भी स्वयं चुुनती हैं। तथा अपने अनंत जीवन काल में अनेकानेक कवियों को कृत-कृत करती चलती हैं। यही कारण है कि ये किसी एक अथर्वा अथवा आनंद कुमार की लगतीं ही नहीं। यह भाषा और भूमि से मुक्त हो ब्रह्मांडीय चेतस पुरुषों के मनो- भूमि को वेदों की ऋचाओं की तरह स्वयं चुनकर व्यास बनाते चलती हैं और उगाती जाती हैं उपनिषदों का वन। आनंद की अथर्वा भी वही वन है। कल को यह मुनि देवेंद्र की भी होगी, गोरसिया की भी और किसी काफ्का और पैटर्शन की भी। किंतु यह इस मनुअस्तर इस देश काल में मूलतः कही जाएगी आनंद कुमार की ही, वाल्मीकि के रामायण की तरह। हां यह जरूर कहूंगा की बाल्मीकि रामायण की तरह यह भी सबके लिए नहीं है, आनंद ने उछाल दिया है व्योम में इसे कोई ना कोई तुलसी भी मिल जाएगा सर्व सुलभ कराने के लिए।

अनेकानेक संस्कृतियों, द्वीपों, महाद्वीपों, पर्वत, पठारों, घास के मैदान, रेगिस्तानों, समुद्रों, नदियों, तालाब, कूओं,बावलियों, वनों, उपवनों, ग्रह, उपग्रह, आकाशगंगाओं, विचारों विचारकों, बहुधर्मी देवी-देवताओं, युद्ध एवं प्रेम कथाओं, मनुष्यों, गंधर्वों, राक्षसों की जीवन गाथाओं, ऋषि-मुनियों,महात्माओं की भूमि, कवियों की प्रथा, राजा-रजवाणों के महल और जनसाधारण के संघर्ष एवं व्यथाओं अणुओं- परमाणुओं, प्रकाश और अंधकारों, निर्माण और विस्फोटों इत्यादि घटित-अघटित सबको सहेजे 16 मंजूषाओं में बंद यह पांडुलिपि किस ग्रह की, किस जम्बूद्वीप की, किस देश की, किस बुद्ध, किस अरविंद, किस ह्वेेसांग, किस वास्कोडिगामा की है इस बात की चर्चा चलती रहेगी। अनेकानेक तक्षशिलाएं इसको पढ़ती-पढ़ाती रहेंगी। 

   नहीं-नहीं मैं इसका महिमामंडन नहीं कर रहा। इसीने मुझे फंसा लिया है अपने रूप जाल में। कल यह मुझसे अपना भोजपुरी पोशाक बनवाकर लौट जाएगी आनंद कुमार के पास। जिसने इसकी आत्मा को चुरा लिया है। कल मैं यदि इस सुदर्शनी के लिए दर-दर यह विरह-गीत गाता फिरूं कि-

बोलै ना मोसे देखि मुह बिचकावै
जबुन भइल काजानी लगे ना आवै
--------------

डाॅ एम डी सिंह