मेरे सामने बैठे हुए प्यार को मैं अपना नहीं सकता।
इस दुनिया झुठी रिवाज़ से मैं टकरा नही सकता।।
अब तो यही रह गया है इस जमाने की फ़ितरत में ।
पास रखी अपनी ही वस्तु को भी कोई पा नहीं सकता।।
जिसको जो चाहे मिल जाए ऐसा ख़ुदा क्यों नहीं करता।
हर प्यार करने वाला अपने दर्द को ठुकरा नहीं सकता।
एक तुम ही तो हो जो मेरे दिल दिमाग जहन में बैठे हो।
क्या कोई अपने दिल की धड़कनों को धड़का नहीं सकता।।
किस्मत मेरी निक्कमी है जो महबूब के प्यार को पा ना सकूं।
मेरा दर्द क्या है यह मैं दुनिया को दिखला नहीं सकता।।
एक दिन वह दौर आएगा जब तुम मेरी और मैं तेरा रहूंगा।
इस बात की गंभीरता को कोई अब झुठला नहीं सकता।।
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