हमने भी जिंदगी में क्या हासिल किया
अपने ही ग़म में लोगों को शामिल किया
देवता हो न जाए यहाँ हम भी फिर
इस दफ़ा हमने पत्थर को भी दिल किया
मैं तो कमज़र्फ़ हूँ और तू है ज़की
लोगों ने मेरा सच फिर तो बातिल किया
बाख़बर थी मैं भी इश्क़ की चाल से
और फिर इश्क़ ने तेरे ग़ाफ़िल किया
आए भी तुम थे तो चोर दरवाज़े से
ये मिरी ही ख़ता तुमको दाख़िल किया
रचना- ऋषिता सिंह
युवराजपुर गाज़ीपुर उत्तर प्रदेश
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