आंसू, जब सूख जाते हैं, तब,
मोम 'हृदय' पत्थर बन जाता है,
भावनाएं रूपी लहरें उठती नहीं,
ठहरा हुआ समंदर बन जाता है,
कसक रूपी पत्ते झड़ जाते हैं,
पतझड़ का शजर बन जाता है,
उस पर पड़ जाते हैं रेत ईष्र्या के,
यह मरूधरा बंजर बन जाता है,
दफ़न हो जाती हैं संवेदनाएं इसमें,
मृत आत्मा का कबर बन जाता है,।"
नीरज कुमार मिश्र
बलिया
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