शादीशुदा स्त्री अक्सर कर बैठती है इश्क
मांग में सिंदूर होने के बाबजूद
जुड़ जाती है किसी के अहसासो से
कह देती है उससे कुछ अनकही बाते
ऐसा नहीं कि बो बदचलन है
या उसके चरित्र पर दाग है..
तो फिर वो क्या है जो वो खोजती है
सोचा कभी स्त्री क्या सोचती है
तन से वो हो जाती है शादीशुदा
पर मन कुंवारा ही रह जाता है
किसी ने मन को छुआ ही नहीं
कोई मन तक पहुंचा ही नहीं
बस वो रीती सी रह जाती है
और जब कोई मिलता है उसके जैसा
जो उसके मन को पढ़ने लगता है
तो वो खुली किताब बन जाती है
खोल देती है अपनी सारी गिरहें
और नतमस्तक हो जाती है उसके सम्मुख
स्त्री अपना सबकुछ न्यौछावर कर देती है
जहां वो वोल सके खुद की बोली
जी सके सुख के दो पल
बता सकें बिना रोक टोक अपनी बातें
हंस सके एक बेखौफ हंसी
हां लोग इसे ही इश्क कहते हैं
पर स्त्री तो दूर करती है
अपने मन का कुंवारापन..!!
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