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भुजंगासन को सर्पासन भी कहते हैं- डॉ एम डी सिंह ग़ाज़ीपुर उत्तर प्रदेश ~ Lav Tiwari ( लव तिवारी )

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गुरुवार, 6 जुलाई 2023

भुजंगासन को सर्पासन भी कहते हैं- डॉ एम डी सिंह ग़ाज़ीपुर उत्तर प्रदेश


भुजंगासन

प्रत्येक आसन का एक लक्ष्य होता है। उसे पा लेना ही समाधि है। जिस आसन में वह लक्ष्य सधे, वही उसका साधन हुआ और उसे साध लेना, साधना। परिस्थितियों का दास नहीं होता योगी, उनके सापेक्ष सहजता से ढल जाना ही योग है। प्रश्न उठता है कब,कहां,कौन सा योगासन करें?सीधा सा उत्तर है जब जहाँ जैसी जरूरत हो। योग समय से नहीं लक्ष्य से बंधा है।

योगासन, तपासन नहीं सम्मोहक मुद्रा है, जिसके द्वारा योगी विविध छद्म रूप धर अपनी अन्तर्निहित शक्तियों को सम्मोहित कर निश्चित लक्ष्य की ओर मोड़ समाधि को पा लेता है। आँख मूंद कर बैठना नहीं अपने को पा लेना समाधि है। यह आपकी अपनी ही आत्मा है जिसे पा लेना ही एकात्म होना है । यहाँ आ कर मन की चंचलता थम जाती है व्यक्ति लक्ष्य से जुड़ जाता है ।

साधक न समय से बंधा होता है ना उसकी सीमाओं से। समय की मांग योगासन को तय करती है, और उसकी सिद्धि समय की सीमा को।

भुजंगासन को सर्पासन भी कहते हैं। जब आपने किसी कार्य के लिए कमर कस लिया है, परिस्थितियां कठोर हैं और वातावरण में विष मिला हुआ है, तब कार्य को निकलते समय भुजंगासन कर लेना आपकी तंत्रिकाओं को सहजता के साथ अपार शक्ति प्रदान कर देगा ।

सर्प की शक्ति उसके मेरुदंड और उसकी विष धारणा में है।सर्पासन द्वारा हम उसके इन्हीं दो शक्तियों को प्राप्त करने की कामना करते हैं ।

सर्प की सारी क्रियाशीलता उसके मेरुदंड की ताकत पर निर्भर है एवं विष धारण करने के बाद भी विष का उसके शरीर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता यह उसकी सबसे बड़ी गुणवत्ता है।

इस योगासन को करते समय सर्प और उसकी शक्तियों एवं शक्ति-केंद्र मेरुदंड से जुड़ना आवश्यक है। एवं अपनी धारणा में विष को धारण करने की क्षमता को लाना भी जरूरी । जब हम इनसे जुड़ जाते हैं तो यह योग पूर्ण हो जाता है और इस क्रिया को पूरा होने में मात्र 2 से 3 मिनट ही प्रयाप्त हैं।

मेरुदंड की मजबूती हमें कभी थकने नहीं देगी एवं पर्यावरण एवं समाज के विष को सहने की क्षमता हमें कभी मरने नहीं देगी। विष धारण करने के बाद भी सर्प विष का प्रयोग अनिष्ट की अवस्था में ही करता है। कभी कोई सर्प अनावश्यक ही किसी को दौड़ाकर विष नहीं देता। यही भाव जब हमारे अंदर आ जाए तो समाज और पर्यावरण में फैला हुआ विष हमें कोई दुख नहीं दे पाएगा। और उसे धारण कर हम अनिष्ट की अवस्था में शस्त्र के रूप में उसका प्रयोग भी कर सकते हैं। विष धारणा हमें संयमित और गांभीर्य भी देती है विषैला नहीं बनाती।

पेट के बल लेट श्वास को अंदर खींचते हुए मेरुदंड की ताकत से कमर के पास से अपने धड़ को ऊपर उठा कर श्वास रहने तक उठाए रहना और सांस छोड़ते हुए पुनः नीचे आना इस योगासन की एक अवस्था हुई। भुजंगासन करते समय योगी के दोनों हाथ कुहनियों के पास से मुड़कर छाती के दोनों तरफ जमीन पर रखे रहेंगे परंतु उन पर शरीर का कोई भार नहीं रहेगा।

इस तरह इस योगासन का केन्द्र आप की मेरुदंड मूलतः कमर अर्थात लम्बर रीजन, प्रतीक सर्प एवं लक्ष्य चेतन एवं अचेतन दोनों को बलिष्ठ करना हुए ।

भुजंगासन कमर दर्द, पीठ दर्द, साइटिका, पैरों में दर्द, सुन्नपन, झनझनाहट एवं रीढ़
की हड्डी में अशक्तता की अवस्था में अत्यंत लाभकारी सिद्ध होगा।

इस योगासन के साथ जरूरत पड़ने पर होमियोपैथिक औषधियां नैजा टी, लैकेसिस,क्रोटेलस एच,वाइपेरा कास्टिकम, रस टॉक्स, पैरिस क्वैड आर्निका माण्ट, कैलकेरिया फास, कैलकेरिया फ्लोर आदि भी लक्षणानुसार अद्भुत लाभकारी सिद्ध हो सकती हैं।

(अपनी पुस्तक 'समग्र योग सिद्धांत एवं होमियोपैथिक दृष्टिकोण' से)

डॉ एम डी सिंह