गुरुवार, 30 नवंबर 2023

आदमी में कैसा जो तुम्हारी याद में रो लेता हूँ- लव तिवारी

तेरी तस्वीर को दिल से लगाकर

रात की तन्हाइयों में तुम्हें अपना बनाकर


कई उलझे किस्सों को भी सुलझाकर

गैरो से छीन कर तुम्हें अपना बनाकर


मैं अक्सर तुम्हें सोचकर खुश हो लेता हूं

आदमी में कैसा जो तुम्हारी याद में रो लेता हूँ।

आदमी मैं कैसा...........


आदत कैसे सुधारू तुम्हारे अपना बनाकर

दिल की तड़प की हर हद में जाकर


इस दौर में कोई अपना दूर रहता है क्या

इस दर्द भरे बात को भी अपना मानकर


मेरी अमानत तू किसी गैर के पास आज भी है।

जहन में रखकर तुम्हारी तस्वीर को चूम लेता हूं।

आदमी में कैसा जो तुम्हारी याद में रो लेता हूँ।

आदमी में कैसा..........


कितने जन्मों से तुम्हे अपना बनाकर

ज़माने के दस्तूर से तुझे न अपनाकर


कई घाव जख्म अपने सीने में दबाकर

इस जमाने की हर बिगड़ी बात भुलाकर।


जिस भी परेशानियों से तुम मुझसे दूर रहते हो।

इस तकलीफ़ भरे घांव को भी संजो लेता हूं।

आदमी में कैसा जो तुम्हारी याद में रो लेता हूँ।

आदमी में कैसा..........


रचना लव तिवारी
ग़ाज़ीपुर उत्तरप्रदेश 



बलिया के प्रसिद्ध लेखक रचनाकार श्री सर्वेश कुमार तिवारी श्रीमुख जी के साथ गोपालगंज भोजपुरी महोत्सव में





प्यारी सुंदर मूरत की एक दिव्य प्रतिमा हो तुम। ना जाने कितनों के दिल की गरिमा हो तुम रचना लव तिवारी ग़ाज़ीपुर


प्यारी सुंदर मूरत की एक दिव्य प्रतिमा हो तुम।
ना जाने कितनों के दिल की गरिमा हो तुम।

खुदा रखे तुम्हें हर दम सलामत यही दुआएं है मेरी।
मेरा बनकर साथ रहो बस यही तम्मना हो तुम।।

कोई तुमको भी चाहे इससे हमें एतराज़ नही।
तुम बस मुझको ही चाहों बन जाओ विश्वास मेरी।।

कोई गम ना कोई पीड़ा तुमको न कभी तड़पाये।
तेरे हिस्से का दुःख- दर्द भी मेरे हिस्से में आये।

रहो खुश तुम सदा जीवन में, जहाँ रहो मेरी दिलरुबा।
तेरी ख़ुशी से में भी खुश रहू, यही हमारी है दुआ।।

रचना- लव तिवारी 
ग़ाज़ीपुर उत्तर प्रदेश



बुधवार, 29 नवंबर 2023

मुझमें डूब कर सवर जाने की बात कर- रचना लव तिवारी गाज़ीपुर उत्तर प्रदेश

मुझमें डूब कर सवर जाने की बात कर।

तुमसे क्या रिश्ता है मेरा, इसे सुलझाने की बात कर।


आदमी मैं बुरा नही मगर जमाने से शिकायत भी नही।

तुमको कैसा लगता हूँ ये बताने की बात कर।।


कौन कहता हूं कि मोहब्बत बुरी चीज़ है दुनिया में

मेरा मुझको मिल जाये, बस ये दुआओं की बात कर।।


तेरा साथ मिल जाये तो ज़माने की हर हसरत पा लू।

में भी तो तेरा ही हूँ, तो हक जताने की बात कर।।


कितनी तड़प है दिल में, अगर पास होते तो सुनते ।

दूर रहकर मेरे पास है तू, बस पास आने की बात कर।


तुम्हारी याद में रचना - लव तिवारी ग़ाज़ीपुर उत्तरप्रदेश








जुबां से झरता है अमृत उनके मगर वे दिल में ज़हर रखते हैं नीरज कुमार मिश्र बलिया

वे मुझसे आंखें मिलाते नहीं,
मगर मुझ पे तीरे नज़र रखते हैं

वे मुझसे मेरा हाल नहीं पूछते,
मगर वे मेरी हर ख़बर रखते हैं,

जुबां से झरता है अमृत उनके,
मगर वे दिल में ज़हर रखते हैं,

ज़माने की नज़र में वे 'पुष्कर' हैं,
मगर वो समंदर सा लहर रखते हैं,।"

पुष्कर - तालाब (तालाब से तात्पर्य ठहरा हुआ पानी)

नीरज कुमार मिश्र 
     बलिया


डरिये मत मुझसे प्यार कीजिये खूबसूरत जिंदगी का इजहार करिए- लव तिवारी ग़ाज़ीपुर।

डरिये मत मुझसे प्यार कीजिये।
खूबसूरत जिंदगी का इजहार करिए।

आदत बिगड़ गईं तो हम संभाल लेंगे।
मुझसे ही बस बेइन्तहा प्यार करिये।।

कोई क्या देगा किसी को इस जमाने में।
सुकून से बीत जाए एक पल इसका इंतेजार करिए।

जिंदगी बदली सी, सहमी सी और खामोश सी है मेरी।
मेरे दिल की धङकन बन मुझको गुलजार करिये।।

कब किसका भरोसा छोड़ दे इस प्यारे जहाँ को।
जो वक्त दिया है खुदा ने, उसका ऐतबार करिये।।

रचना लव तिवारी 
ग़ाज़ीपुर उत्तर प्रदेश


जीवन को तुम क्या रोकोगे- रचना डॉ एम डी सिंह सुप्रसिद्ध होम्योपैथिक चिकित्सक गाज़ीपुर उत्तर प्रदेश

जीवन को तुम क्या रोकोगे ?

मृत्यु रोक लो चाहे तुम सब
जीवन को तुम क्या रोकोगे
क्या बांधोगे क्या टोकोगे
किसी खूटी किसी बुर्ज पर
क्या टांगोगे क्या ठोकोगे

यह खर नहीं पतवार नहीं है
भुग चुका संसार नहीं है
जिसे जला दो जिसे ताप लो
सुखी पत्तों का अंबार नहीं है
सागर पी गए
हो चाहे अगस्त्य तुम
बह रहा निरंतर ब्रह्मांड फोड़
यह गागर में तेरे नहीं अंटेगा
इस जल को तुम क्या सोखोगे

मथ समुद्र को ऊपर आया
देख वासुकी भी थर्राया
गरल गले बन नील रह गया
जीवन एक भी न हर पाया
कहां नहीं है
पर्वत खाई हिम अनल में
मृग मरीचिका सागर तल में
पाक चमक बाहर निकलेगा
किसी भांड किसी भट्टी में
चाहे जितना तुम फूंकोगे
चाहे जितना तुम झोंकोगे
जीवन को तुम क्या रोकोगे ?

डाॅ एम डी सिंह
( 17 दिन तक मृत्यु की घेराबंदी में रहकर भी 41 मजदूर सकुशल जीवित बाहर आए। अनेक बाधाएं आईं एक भी जीवन यात्रा को रोक न सकीं। 2014 में लिखी गई और मेरे कविता संग्रह 'समय की नाव पर' में छपी यह कविता शायद इस दिन के लिए ही लिखी गई थी।)



मंगलवार, 28 नवंबर 2023

मन परिंदे को पंख मिल ही जाएगा मेहनत करने से अंक मिल ही जाएगा- रचना नीरज कुमार मिश्र बलिया

"मन परिंदे को पंख मिल ही जाएगा,
मेहनत करने से अंक मिल ही जाएगा,

रास्तों पर नीचे देखकर ही पैर रखना,
ध्यान हटने पर डंक मिल भी जाएगा,

ज़िंदगी के सफ़र में चलते-चलते हुए,
कभी राजा,कभी रंक मिल ही जाएगा,

ज़रूरी नहीं हमेशा हाथों को यश मिले,
कभी न कभी कलंक मिल ही जाएगा,

नभ में कौओं की झुंड से निराश मत हो,
धरती पर तुमको कंक मिल ही जाएगा,।"

नीरज कुमार मिश्र
बलिया



आंसू जब सूख जाते हैं तब मोम हृदय पत्थर बन जाता है नीरज कुमार मिश्र बलिया

आंसू, जब सूख जाते हैं, तब,
मोम 'हृदय' पत्थर बन जाता है,

भावनाएं रूपी लहरें उठती नहीं,
ठहरा हुआ समंदर बन जाता है,

कसक रूपी पत्ते झड़ जाते हैं,
पतझड़ का शजर बन जाता है,

उस पर पड़ जाते हैं रेत ईष्र्या के,
यह मरूधरा बंजर बन जाता है,

दफ़न हो जाती हैं संवेदनाएं इसमें,
मृत आत्मा का कबर बन जाता है,।"

नीरज कुमार मिश्र
बलिया



सोमवार, 27 नवंबर 2023

इश्क़ ये तो कोई भी आफ़त नहीं है दिल लगाने की पर इजाज़त नहीं है- ऋषिता सिंह

इश्क़ ये तो कोई भी आफ़त नहीं है
दिल लगाने की पर इजाज़त नहीं है

इस जहाँ में ये दिल न आबाद होगा
इस जहाँ की मुझको ज़रूरत नहीं है

तेरे बिन हम भी कर ही लेंगे गुज़ारा
पर तेरे बिन जीने की आदत नहीं है

अब मुक़द्दर में ही नहीं साथ तेरा
कुछ दुआओं में मेरी ताकत नहीं है

दिल कुशादा है अब भी उनकी ही ख़ातिर
दिल पे गुज़री कोई क़यामत नहीं है

दिल लगा ले अब और वो भी किसी से
अब लगाने की मुझको हिम्मत नहीं है

देख कर तुम भी ज़ख़्म मेरे हो हँसते
तुमसे हमदर्दी की भी हसरत नहीं है

तुम फ़साने इतने बनाते ही रहते
ये मुहब्बत है जाँ सियासत नहीं है

अब जो आओगे तुम भी मिलने तो हम से
हम मिलेंगे तुमसे वो हालत नहीं है

ऋषिता सिंह




रविवार, 26 नवंबर 2023

दूर चले जाते हैं लोग रचना नीरज कुमार मिश्र बलिया

हसीन ख़्वाब दिखाकर दूर चले जाते हैं लोग,
अपनी नीयत जताकर दूर चले जाते हैं लोग,

पहले मीठी बात करके चले आते हैं रूह तक,
मन की फितरत बताकर दूर चले जाते हैं लोग,

लगा देते हैं विश्वास का पर्दा दिल के दरवाज़े पर,
विदा होते वक्त उसे हटाकर दूर चले जाते हैं लोग,

श्रद्धा की चाक से लिखते हैं प्रेम मुहब्बत की बातें,
धोखे के डस्टर से मिटाकर दूर चले जाते हैं लोग,

जिसे पता नहीं होता, मुहब्बत का "म" अक्षर भी,
उसे भी प्रेम रोग लगाकर दूर चले जाते हैं लोग,।"

नीरज कुमार मिश्र
बलिया



शनिवार, 25 नवंबर 2023

कई जगह कई बार मिली है मुझको आप सौ बार मिली है रचना लव तिवारी

कई जगह कई बार मिली है।

मुझको आप सौ बार मिली है


फिर भी दिल को चैन नही है।

आते जाते हर बार मिली है।।


कभी सुकून से मिल लो साहब।

तुम दिल की धड़कन बन जाओ।।


आती-जाती सांसों पर मेरी।

अपना नाम तुम कर जाओ।।


शायरी- २


ऐसे साथ रहने से क्या फायदा

मिलकर न मिलने से क्या फायदा


खुदा वह दौर दे जिसमे सुकू हम को मिले

दिल मे लगीं आग पर घी गिराने से क्या फ़ायदा


शायरी -३ आप के प्यार में


हम तो नजरे बिछाए हैं आपकी प्यार में

दिल की दुनिया लुटाए हैं आपके प्यार मे


मतलबी जमाना यह दौर हमारे कहा साथ देते है

हम तो अपनी जान लुटाए हैं आपके प्यार में


मोहब्बत एक बंदिश है दो दिलों की मन्नतो की

दिल मे आपकी मूरत सजाये है तेरे प्यार में


शायरी - ४ आप पहले मिल जाती


आप पहले क्यों नही मिली मुझको

इस चाहत का एक दौर तो जी लिए होते।


नही जाने देते किसी और की बाहों में

हम आप को अपने दिल मे ही सी लेते



शुक्रवार, 24 नवंबर 2023

अथर्वा - लेखक प्रोफेसर आनंद सिंह एवं समीक्षा प्रसिद्ध चिकित्सक दार्शनिक एवं साहित्यकार डॉक्टर एम डी सिंह ग़ाज़ीपुर

अथर्वा 
एक अद्भुत प्रेम कथा एक यायावर कवि की : 

    कवि है आनंद कुमार सिंह,जिसने चुपके से न जाने कब अपना नाम बदलकर अथर्वा रख लिया है। शायद वह अपने और अपनी प्रेयसी को दुनिया की निगाहों से बचाए रखना चाहता था। तभी तो उसके इस अलौकिक प्रेम प्रसंग के चुनिंदा पात्र ही साक्षी बन सके हैं। एक अनिंद्य सुंदरी षोडशी कविता यौवन के प्रथम पड़ाव पर ही कब उससे आ चिपकी उसे पता ही नहीं चल सका। फिर तो कब 20 वर्ष बीत गए न कवि को पता चला न उसकी प्रेयसी कविता को। कविता भागती रही पृथ्वी के उद्भव से अंत तक, ग्रहों और आकाशगंगाओं का भ्रमण करती रही, कवि यायावर बना पीछे पीछे खिंचता रहा तंद्रागामी हो। 

  500 पृष्ठों में फैला यह कोई खंड काव्य नहीं अपितु दुनिया की संभवतः सबसे बड़ी एवं लौकिक-पारलौकिक सीमाओं को लांघती, अत्यंत रहस्यमयी एक ही कविता है। यदि ध्यान से इस कविता को पढ़े तो पाठक या तो सम्मोहित हो शब्दपाश में बंध जाएगा अथवा आखेटित हो धराशाई होते-होते बचेगा। सच पूछिए तो हजारों अबूझ शब्दों का पिटारा लिए यह कवितां प्रथम दृष्ट्या कवि के शब्द सामर्थ्य की प्रदर्शन प्रतीत होगी। किंतु जब हम उन शब्दों की अर्थवतता से गुजरेंगे तो चौकें बिना नहीं रह पाएंगे। कवि तो अपनी ओर से कुछ कर ही नहीं रहा है, वह तो कविता के सम्मोहन जाल में फंसा, प्रेम पगा, छेनी हथौड़ी लेकर जिधर कविता ले जा रही है पहाड़ तोड़ रास्ता बनाने में लगा है,बावरा। कविता को कवि ने खंंडो में नहीं बांटा बल्कि कविता ने ही कवि को आनंदित कर अपने 16 श्रृंगारों में बिखेर दिया है। वह बवला तो वही दुहरा रहा है जो कविता गा रही है।

अथर्वा ब्रह्मा का मानस पुत्र है जिसे ब्रह्मा ने नए मनुअस्तर के निर्माण की जिम्मेदारी सौंपी है। वही कविता का प्रथम जनक भी है। अपनी ही कृति पर मोहित कवि भी है और उसकी आत्मा भी। अथर्वा का ही मानस पुत्र है प्रोफेसर आनंद कुमार जो बहुत ही चतुराई से यह कहता हुआ कि 'मैंने
 नहीं रचा इस कविता को' स्वयं को न्योछावर कर देता है अपनी ही कविता पर। आनंदवल्ली आनंद की ही आत्मकथा है जिसमें उसने स्वयं को सजाया संंवारा है अपनी प्रेयसी कविता के लिए बड़े ही सम्मोहक अंदाज में। अथर्वा अपनी मोहिनी कविता का बखान करने अपने शिष्यों के साथ उसे लेकर कविता के ग्रह तातीनियम पर जाता है और ब्राह्मडीय कवियों के बीच अपने को सर्वोपरि सिद्ध करता है। 

   मनुअस्तर की घटनाओं और इतिहास को 16 पांडुलिपियों में दर्ज कर 16 मंजूषाओं में सुरक्षित रखा गया है।इनमे से 15 को तो विद्वानों ने पा लिया है। जिनमें विराजती है आनंद की कविता सदेह किंतु उसे खोडषी की आत्मा तो 16वीं पांडुलिपि में है जो रहस्य में ढंग से गायब हो गई है। या सच कहा जाय तो स्वयं कवि ने अपनी रूपसी को चुरा कर एक रहस्य लोक का निर्माण किया है, जिसे ढूंढने और पाने की लालसा लिए विश्व भर के खोजी निकल पड़े हैं। कवि ने प्रत्येक पांडुलिपि का परिचय एक लघु कथा के रूप में बहुत ही सुगढ़ ढंग से प्रस्तुत किया है जिससे होकर उसकी कविता आगामी पांडुलिपि में प्रवेश करती है। किंतु मजे की बात यह है की कथा और कविता संयुक्त होते हुए भी अपना अलग अस्तित्व बनाए रखने में सफल रहते और एक वन का निर्माण करते हैं, जो सघन से सघनतर होता चला गया है। कवि हठात कह पड़ता है "मैं वही वन हूं"। मुझे यह कहने में थोड़ा भी संकोच नहीं हो रहा कि पाठक उस वन में खो जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

एक बार मैं फिर कहूंगा कि कवि इस कविता के कठोर शब्दावली एवं गूढ़ दर्शन के लिए स्वयं जिम्मेदार नहीं है। जिम्मेदार है उसकी सहज आत्मलीनता इस कविता की आत्मा के साथ। वह मात्र एक पतंग है जिसकी डोर बहुत चतुराई और पारंगतता के साथ इस कविता ने पकड़ रखी है। इस कविता के साथ कथाओं की संगत कवि को दम लेने के लिए बन पाई है। इस कविता को पढ़ने के लिए इसके साथ एकात्म होना पड़ेगा। फिर न गूढ़ता रह जाएगी ना शब्दों की कठोरता, तिलिस्म पर्त दर पर्त खुलता चला जाएगा और पाठक उसमें से निकलने को मना कर देगा। मैंने एक बार प्रोफेसर आनंद से कहा था शब्दों की चिंता ना करें वे स्वतः अवतरित हुए हैं वे स्वयं अपना रहस्य खोलेंगे। ज्ञान विज्ञान के अनेक सतहों पर कुलाचें भारती यह कविता साहित्य की अनेक रूपों को सहजता के साथ धारण करते हुए दिखती है। प्रागऐतिहासिक, प्राचीन, मध्ययुगीन और वर्तमान आधुनिक इतिहास को पन्ना दर पन्ना समेटे यह एक इतिहास कथा सी दिखती है, तो कभी दुनिया का भ्रमण करते किसी महा यायावर की संगिनी सी, या फिर किसी गहरे रहस्य को ढूंढने निकले दुनिया भर के खोजियों की रहस्यमय रोचक स्पर्धा प्रतीत होती है।

   इस कविता को पढ़कर कम से कम एक बात तो पक्की हो जाती है कि कुछ कविताएं जनित नहीं अवतरित होती हैं। यह कविता भी उनमें से एक है जो अपना अस्तित्व स्वयं निर्मित करती हैं और अपना रचनाकार भी स्वयं चुुनती हैं। तथा अपने अनंत जीवन काल में अनेकानेक कवियों को कृत-कृत करती चलती हैं। यही कारण है कि ये किसी एक अथर्वा अथवा आनंद कुमार की लगतीं ही नहीं। यह भाषा और भूमि से मुक्त हो ब्रह्मांडीय चेतस पुरुषों के मनो- भूमि को वेदों की ऋचाओं की तरह स्वयं चुनकर व्यास बनाते चलती हैं और उगाती जाती हैं उपनिषदों का वन। आनंद की अथर्वा भी वही वन है। कल को यह मुनि देवेंद्र की भी होगी, गोरसिया की भी और किसी काफ्का और पैटर्शन की भी। किंतु यह इस मनुअस्तर इस देश काल में मूलतः कही जाएगी आनंद कुमार की ही, वाल्मीकि के रामायण की तरह। हां यह जरूर कहूंगा की बाल्मीकि रामायण की तरह यह भी सबके लिए नहीं है, आनंद ने उछाल दिया है व्योम में इसे कोई ना कोई तुलसी भी मिल जाएगा सर्व सुलभ कराने के लिए।

अनेकानेक संस्कृतियों, द्वीपों, महाद्वीपों, पर्वत, पठारों, घास के मैदान, रेगिस्तानों, समुद्रों, नदियों, तालाब, कूओं,बावलियों, वनों, उपवनों, ग्रह, उपग्रह, आकाशगंगाओं, विचारों विचारकों, बहुधर्मी देवी-देवताओं, युद्ध एवं प्रेम कथाओं, मनुष्यों, गंधर्वों, राक्षसों की जीवन गाथाओं, ऋषि-मुनियों,महात्माओं की भूमि, कवियों की प्रथा, राजा-रजवाणों के महल और जनसाधारण के संघर्ष एवं व्यथाओं अणुओं- परमाणुओं, प्रकाश और अंधकारों, निर्माण और विस्फोटों इत्यादि घटित-अघटित सबको सहेजे 16 मंजूषाओं में बंद यह पांडुलिपि किस ग्रह की, किस जम्बूद्वीप की, किस देश की, किस बुद्ध, किस अरविंद, किस ह्वेेसांग, किस वास्कोडिगामा की है इस बात की चर्चा चलती रहेगी। अनेकानेक तक्षशिलाएं इसको पढ़ती-पढ़ाती रहेंगी। 

   नहीं-नहीं मैं इसका महिमामंडन नहीं कर रहा। इसीने मुझे फंसा लिया है अपने रूप जाल में। कल यह मुझसे अपना भोजपुरी पोशाक बनवाकर लौट जाएगी आनंद कुमार के पास। जिसने इसकी आत्मा को चुरा लिया है। कल मैं यदि इस सुदर्शनी के लिए दर-दर यह विरह-गीत गाता फिरूं कि-

बोलै ना मोसे देखि मुह बिचकावै
जबुन भइल काजानी लगे ना आवै
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डाॅ एम डी सिंह



रविवार, 19 नवंबर 2023

चेहरा तुमसा जहाँ में कहा है मोहब्बत का ही तो रंगीन समा है रचना लव तिवारी

चेहरा तुमसा जहाँ में कहा है।
मोहब्बत का ही तो रंगीन समा है।

आदते न बिगड़ जाए मेरी तुमसे।
चाह कर भी नही करते जो मोहब्बत जवां है।।

मेरा दिल भी बस आपके एहसासों से धड़कता है
इसमें अब मेरी क्या खता है।।

आदमी मैं भी न था इतना बेचैन कभी
आप के मिलने से जमाना क्यों ख़फ़ा है।

तेरा चेहरा क्यो याद आता है मुझे हरपल।
क्या इसमें भी कोई आप की साजिश बया है।

गज़ल 2

रुख़सत गम की अब तन्हाई क्या करेंगी
आप का साथ है तो रुस्वाई क्या करेंगी

मेरा तो साथ है तुमसे जन्मों जन्मों तक
साथ हो तुम तो मौत की परछाई क्या करेंगी

आदमी किसको भला और बुरा कहु इस वक्त,
दोस्त ही साथ न दे तो दर्द की दवाई क्या करेंगी

तुम रहो मेहरबान मुझपर यही चाहत है मेरी
दुनियां की इस भीड़ रूपी लड़ाई हमपर क्या करेंगी।।



रुख़सत गम की अब तन्हाई क्या करेंगी आप का साथ है तो रुस्वाई क्या करेंगी- रचना लव तिवारी

रुख़सत गम की अब तन्हाई क्या करेंगी
आप का साथ है तो रुस्वाई क्या करेंगी

मेरा तो साथ है तुमसे जन्मों जन्मों तक
साथ हो तुम तो मौत की परछाई क्या करेंगी

आदमी किसको भला और बुरा कहु इस वक्त,
दोस्त ही साथ न दे तो दर्द की दवाई क्या करेंगी

तुम रहो मेहरबान मुझपर यही चाहत है मेरी
दुनियां की इस भीड़ रूपी लड़ाई हमपर क्या करेंगी।।



ग़ाज़ीपुर के महान लेखक कवि डॉ विवेकी राय संक्षिप्त परिचय - लेखक राम बहादुर राय

राम बहादुर राय (भरौली,बलिया,उत्तरप्रदेश):- स्व डॉ विवेकी राय जी काआज ही के दिन अर्थात दिनांक 19/11/1924 को हिन्दी एवं भोजपुरी साहित्य के मूर्धन्य विद्वान, साहित्यकार एवं स्नातकोत्तर महाविद्यालय गाजीपुर के पूर्व प्राध्यापक हमारे घर (भरौली,थाना-नरहीं,, बलिया, उत्तरप्रदेश) जन्में, गाजीपुर (सोनवानी गांव) के महान लेखक शारीरिक रूप से हमारे बीच भले ही नहीं हैं लेकिन वो हमारे करीब ही हैं,हम सबके आस पास में ही हैं।

आज ही के तारीख में अर्थात19 नवंबर सन् 1924 को हमारे घर भरौली (बलिया )जो डॉ साहब का ननिहाल है , जन्म हुआ था।

कुछ लोगों का कहना है कि डॉ साहब के ननिहाल में भी चांदी के चम्मच और दूध मयस्सर नहीं था तो सही बात है लेकिन उन महानुभाव को यह भी नहीं पता है जो सोने के पात्र में जन्म लेता है वह उतना बड़ा साहित्यकार हो ही नहीं सकता तो मैं कहना चाहूंगा कि लेखनी को जबरदस्ती धसोरना नहीं चाहिए।
उनके जैसे मसका मारने वालों को यह भी पता नहीं है कि जब तक सोना आग में तपता नहीं तब तक खरा नहीं होता।।

वियोगी होगा पहला कवि
आह से उपजा होगा गान....

मेरे परम् आदरणीय बड़े पिता जी के लिए दो शब्द पिरोने का एक प्रयास है आशा है आप लोग जरूर आशीर्वाद देंगे।
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नहीं   अब  कोई   ऐसा  गांव  ही होगा
नहीं   कोई  भी  वैसा  शहर  ही  होगा ।

लिखने   का   कोई   लाख  प्रयत्न करे
नहीं   कोई  "विवेकी राय" अब   होगा।

उनकी  लेखनी   जैसा  न  असर  होगा
युगों  में  जन्म लेते  हैं  आप  से विरले।

अब  नहीं  ऐसा  दिव्य  दर्शन  ही होगा
लिखने वालों की तो फेहरिस्त लम्बी है।

जिधर देखो  उधर  मायावी  कुटुम्बी हैं
समाज  की हकीकत  से  कोसों हैं दूर।

जोड़-तोड़  कर  लिखने  को हैं  मजबूर
आता-जाता  है  कुछ  भी तो नहीं उन्हें।

मक्खन मारके पुरस्कार पा लेते जरूर
श्वेत पत्र, बबूल,सोनामाटी रूपी दीक्षा।

मनबोध  मास्टर की  डायरी भी अब तो
हो गयी  हमसे "अकेला" भी  बहुत दूर।

जीवन में नहीं  है अब तो अमंगलकारी
उठ जाग मुसाफिर देखो उत्सव पुरूष।

सम्मान पुरस्कार से भी हो चले हैं उपर
चले भी तो गये हैं आसमां से भी ऊपर।

सच्ची श्रद्धांजलि तो तभी होगी उनकी
उनकी लेखनी को हम सब पढ़ें जरूर।
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राम बहादुर राय" अकेला"
भरौली,नरहीं, बलिया, उत्तरप्रदेश.
मोबाइल नंबर-9102331513


मंगलवार, 14 नवंबर 2023

मेरा वास्ता बस तुमसे से मेरी दिलरुबा ये बात हम अब दुनिया को बतलायेंगे- रचना लव तिवारी

एहसासों को दिल मे कब से दबाये थे
आप मुझ पर दिल कब से लुटाये थे।

पहले इज़हार हम करें की आप
इस बात से हम आप क्यो घबराए थे।

आदमी कितना भी बड़ा क्यो न हो जाये
उसे हम खुदा नही बनायेगे

मेरा वास्ता बस तुमसे से मेरी दिलरुबा
ये बात हम अब दुनिया को बतलायेंगे

ग़ज़ल- 2

दूर अब जमाना होगा
फ़ैसला नही पुराना होगा

आदत हमारी एक जैसी है
फिर क्यो घबराना होगी

दो जिस्म अब एक जान हैं हम
फिर नही शर्माना होगा

मुझको मिले तेरा साथ हरदम
हर बात में बस अफसाना होगा

रचना लव तिवारी गाज़ीपुर उत्तर प्रदेश

यह तस्वीर मालवीय सर की है जो एक केंद्रीय विद्यालय में संगीत की टीचर हैं उनकी बिटिया सारेगामा लिटिल चैंप में प्रतिभागी रही है इसे मिलकर बहुत अच्छा लगा था


बृद्ध पर हो रहे अत्याचार को अब सहना अच्छा नही लगता। रचना लव तिवारी ग़ाज़ीपुर


दर्द जानकर नाम पूछना अच्छा नही लगता
किसी की रुसवाई पर अब कुछ कहना अच्छा नही लगता।

आज के बत्तर हालात के लिये किसको दोषी समझा जाय।
बृद्ध पर हो रहे अत्याचार को अब सहना अच्छा नही लगता।

मेरा क्या है इस दुनिया में जिस पर मैं बहुत गुमान करू।
छोड़ कर चला जाऊंगा एकदिन धरा को कुछ अपना नही लगता।।

मुझको मेरे खून से सहारे की उम्मीद कैसे रखूं।
इस दौर की मतलबी दुनिया मे अब कोई अपना नही लगता।।

वृद्ध आश्रम पर मेरी लिखी गई कविता


रविवार, 12 नवंबर 2023

कितने दर्द छुपाये बैठे आज की इस तन्हाई में तुम न होतो तो कैसा होता अपना जीवन खाई में- लव तिवारी

कितने दर्द छुपाये बैठे आज की इस तन्हाई में
तुम न होतो तो कैसा होता अपना जीवन खाई में

क्या सोचा था जीवन को कैसे अब हालात मेरे
मेरा मुझको घर से बाहर करता है दीवाली में

बहुत सुकू है तेरे दर पर गैर भी अपने लगते है
सभी ने अपनों से दर्द सहा यही कहानी कहते है

सही कहते है जिसका कोई न है इस दुनियां में
उसका खुदा एक है सहारा रुख़सत और रुसवाई में

यह कविता धनतेरस 2030 में लंगरपुर छावनी लाइन ग़ाज़ीपुर  में स्थित वृद्ध आश्रम में परम आदरणीय बड़े भैया विजय प्रकाश दुबे जी की सहयोग से भजन एवं मिष्ठान की व्यवस्था करते समय उत्पन्न भाव द्वारा लिखी गई है। 

लेखक लव तिवारी गाज़ीपुर उत्तर प्रदेश








गुरुवार, 9 नवंबर 2023

ये रिश्ता क्या कहलाता है- लेखक श्री नीरज कुमार मिश्र बलिया

ये रिश्ता क्या कहलाता है!!
💞💕💕

सूनो न!,

जब फ़ोन पर तुम्हारे मुखारविंद से" हैलो नीरज!," मैं..... बोल रही हूं!,", फ़ोन पर श्रवण किये गये अक्षरों के मेल से शब्द, शब्दों के मेल से वाक्य प्रस्फुटित हुए न!, मैं भावनाओं के समंदर में डूब गया!, मुझे इक पल के लिए यह यकीं न हुआ कि यह आवाज़ उस ईश्वर की थी जिसे लोगों ने प्रेम कहते हैं, यह आवाज़ उसकी थी जिसको वर्षों पहले देखने के लिए, बात करने के लिए, कुछ देर साथ रहने के लिए मैं तड़पता था!, उसकी एक झलक पाने की ललक हर पल दिलो दिमाग में बनी रहती थी!,

तुम मेरी चाहत की प्रथम पाठशाला थी!, मुझे आनंद के नशे में पहली बार मदमस्त करने वाली मधुशाला थी!, परिस्थितियां बदलीं!, लोग बदले!, फिज़ा बदली!,‌ वक़्त बदला!, मगर जो चीज़ नहीं बदला वह थी मेरी तुम्हारे प्रति चाहत!, मैं चाहे किसी भी परिस्थिति में रहा, तुम्हें याद करता रहा!, मैं चाहे जहां भी रहा, तुम्हारे बारे में पता करता रहा!, कभी तुम्हारे कुशलता की ख़बर पाकर मैं प्रसन्न होता तो कभी तुम्हारे दुःख की ख़बर पाकर मुझे कष्ट की अनुभूति होती!,
अब सबकुछ बदल चुका है! भाव प्रकट करने के तरीके बदल चुके हैं!, पत्र लिखने के लिए कलम और कागज नहीं, बल्कि स्मार्ट फोन, लैपटॉप है! कुछ भी सोचने के लिए दिमाग का नहीं, बल्कि गूगल का सहारा है। पता है!, अब तुम्हें उपहार के रूप में फ़ूल देने के लिए मुझे फूलवारी में नहीं जाना है!, गुगल से सर्च करके तुम्हारा मन चाहा फ़ूल ख़ोज कर डिजिटल रूप में प्रस्तुत कर सकता हूं!, अब तुम्हें पत्र देने के लिए मुझे तुम्हारे घर चाचा चाची, और मुहल्ले के मुस्टंडों से डरने की जरूरत नहीं है। मैं तुम्हें वाट्स अप, फेसबुक इंस्टाग्राम पर अपनी मन की बात कह सकता हूं। बचपन में एक पत्र देते हुए तुम्हारे पहलवान चाचा ने मेरी धुलाई ऐसे कर दी थी जैसे सर्फ एक्सल कपड़ों करता है। उसके बाद मेरे मन से चाहत का कीड़ा उसी दिन मूर्च्छित हो गया था जैसे सर्फ एक्सल से धुलाई के बाद कपड़े से कीटाणु!,उस समय तो तुमसे मिलने की तुमसे बहुत सारी बातें करने की तम्मन्ना पूरी नहीं हो पाई थी! शायद अब मेरी इच्छाएं पूर्ति हो जाएं!!,

मुझको तो वर्षों पहले से पता है कि तुमसे मेरा क्या रिश्ता है!!! यदि तुम्हें नहीं पता कि तुमसे मेरा क्या रिश्ता है तो ये लेख गूगल पर कापी करके पेस्ट कर देना, तुम्हें पता चल जाएगा!!
सूनो न!, थोड़ा गूगल पर पर लिखकर सर्च करो न!,
ये रिश्ता क्या कहलाता है!,
💞💕💕

नीरज कुमार मिश्र
बलिया


बुधवार, 8 नवंबर 2023

अब नादानियां नहीं सहता कोई मीठी वाणीयां नहीं बोलता कोई- श्री नीरज कुमार मिश्र बलिया

अब नादानियां नहीं सहता कोई,
मीठी वाणीयां नहीं बोलता कोई,

बच्चे भी सम्भल कर बोलने लगे हैं,
बातें, बचकानियां नहीं करता कोई,

लोग स्मार्ट फोन, लैपटॉप में लगे हैं,
मौखिक, कहानियां नहीं कहता कोई,

फ्लैट्स में दुबक कर बैठे हैं नौनिहाल,
मुहल्ले में शैतानियां नहीं करता कोई,

लोगों को खुशियां ही सुनना पसंद है,
दुःख दर्द परेशानियां नहीं सुनता कोई,

एहसान करने वालों का दौर बीत गया,
मदद औ मेहरबानियां नहीं करता कोई,

ढ़ाई आखर प्रेम सिर्फ दिखावा हो गया है,
एक दूजे हेतु कुर्बानियां नहीं करता कोई,।"

नीरज कुमार मिश्र
बलिया



मंगलवार, 7 नवंबर 2023

गाजीपुर की कवियत्री श्रीमती सब्या तिवारी जी का संक्षिप्त परिचय एवं उनकी रचनाएं

नाम- सब्या तिवारी
जन्म तिथि - 30 .12 .1984
माता का नाम - श्रीमती रमंती मिश्रा
पिता का नाम - श्री कृष्णदेव नारायण मिश्रा
पता- ग्राम पोस्ट युवराजपुर थाना सुहवल तहसील जमानिया जिला गाजीपुर उत्तर प्रदेश  २३२३३२

शैक्षिक योग्यता - M.A( Hindi, Home Science, Sciology), B.Ed

संप्रति (पेशा) - शिक्षिका
विधाएं - कविता , कहानी
साहित्यिक गतिविधियां - जिला स्तर पर आयोजित काव्य गोष्ठी में भाग लेना एवं सामाजिक कार्यों के प्रति दायित्व का निर्वहन करना।
प्रकाशित कृतियां - कोई नही

पुरस्कार/सम्मान (प्रदेश स्तरीय)- कोई नही

सम्पर्क सूत्र - 9648486060 
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 *नारी*

समय का पहिया चलने दो
नारी को संभलने दो
सत्ता आजायेगी हाथ में
तुम चलोगे साथ में
नारी शक्ति थी, शक्ति है, शक्ति रहेगी
उसमे कुट - कुट देश भक्ति रहेगी
वो माँ के नाम पर परीक्षा देने को तैयार है, 
हरिश्चंद्र की तारा बनकर। 
पत्नि की परीक्षा देने को तैयार है, 
राम की सीता बनकर । 
देश भक्ति की परीक्षा देने के लिए तैयार है, 
झाँसी की रानी बनकर । 
एक सेविका (दासी) की परीक्षा देने को तैयार है, 
धाय माँ पन्ना बनकर। 
समझ सको तो समझ लो
नारी की महिमा को
चार चाँद लगा देगी
आपके गरिमा को
प्यार और स्नेह की मूर्ति है नारी
हर एक घर की खूबसूरती है नारी
ना अर्पण है, ना दर्पण है नारी
दुसरो के लिए समर्पण है नारी
पाला है पोसा है बड़ा किया है
सवाल पुछने के लिए पुरषों को खड़ा किया है, 
मन किया तो अबला बना दिया, 
मान प्रतिष्ठा के लिए सबला बना दिया।।

*समय के साथ*

कर लो कदर वक्त की
वक्त निकल ही जायेगा
रह जाओगे तुम....
अफसोस हमेशा आयेगा
समझ सको तो समझ लो
समय के साथ - साथ
ये कालचक्र में मत फसो 
ये कालचक्र बहलायेगा
जीना है तो आज (अभी) में जियो
कल कभी न आयेगा। 
समझ सको तो खुद को समझो
जीवन सरल सुगम बन जायेगा
ये समय है, समय तो
बदल ही जायेगा
बदल लो खुद को
 इतिहास के पन्नों में कहीं न कहीं तो नाम आयेगा
वक्त सिखाता है सिख लो
समय के साथ - साथ 
वरना बारिश के पानी सा
ठहर जाओगे आप  ।।  

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ऐ मुसाफिर जिंदगी से अपना यही वास्ता रखना- रचना श्री नीरज कुमार मिश्र बलिया

"ऐ मुसाफिर ! जिंदगी से अपना यही वास्ता रखना,
फलक तक पहुंचेगा तू,बस एक यही रास्ता रखना,

लड़खड़ा न जाए तुम्हारे कदम मंजिल ए सफर में,
साथ चल रहे हमराहियों से थोड़ा फासला रखना,

जीत होती है कछुए की और हार जाता है खरगोश,
इसलिए चलते वक्त रफ्तार थोड़ा आहिस्ता रखना,

शोहरत मिलने के बाद बदल जाते हैं लोग अक्सर,
इन सभी से अलग अपने व्यवहार में साईस्ता रखना,

बहुत ख्वाहिशें हैं तुम्हारे अपनों की तुमसे "नीरज"
चाहे रहना कहीं भी इस जहाँ में, उनसे राब्ता रखना,। "

(साईस्ता - नम्र, शिष्ट।
राब्ता - रिश्ता, सम्बंध।)

नीरज कुमार मिश्र
बलिया



सोमवार, 6 नवंबर 2023

किस्मत- रचना नीरज कुमार मिश्र बलिया

"किस्मत"

"रूठ जाती है किस्मत अक्सर,
फूट जाती है किस्मत अक्सर,

सुकर्म से सम्मान नहीं करोगे तो,
ऊठ जाती है किस्मत अक्सर,

वक्त रहते हुए यदि नहीं पकड़े तो,
छूट जाती है किस्मत अक्सर,

इसे हमेशा मत कोसते रहो, क्योंकि,
टूट जाती है किस्मत अक्सर,

तुम्हारी सही है तो सम्भालो!, वरना,
लूट जाती है किस्मत अक्सर,।"

नीरज कुमार मिश्र
बलिया


रविवार, 5 नवंबर 2023

वह सितमगर, मुझे बेघर देखना चाहता है- नीरज कुमार मिश्र बलिया

"वह सितमगर, मुझे बेघर देखना चाहता है,
मुझको असहाय, दर-बदर देखना चाहता है,

सुब्ह-ओ-शाम जिसको मैं देवता समझता था,
वही मुझको आज बद-नज़र देखना चाहता है,

जिसकी लम्बी उम्र हेतु मेरे दोनों हाथ जुड़ते थे,
वह शख्स मेरे हाथों में ज़हर देखना चाहता है,

मेरी बदनामी की ख़बर आ जाए किसी रास्ते से,
इस इंतज़ार में वह हर चौराहा हर डगर देखता है,

मेरा समय ख़राब आ जाए और मैं बर्बाद हो जाऊं!,
बड़ी सिद्दत के साथ वह बदलता दहर देखता है,।"

नीरज कुमार मिश्र
बलिया


शनिवार, 4 नवंबर 2023

हमहु नदान रहली तूहऊ नदान (कजरी गीत )- गीतकार : योगेश विक्रांत

 हमहु नदान रहली तूहऊ  नदान  (कजरी गीत )


हमहु नदान  रहली तूहऊ  नदान
गोरिया मिलते नज़रिया तूफान हो गईल -  2

**   ओही रे असॅढ्वा मे घेरले  बदरवा
        घूमडी  घूमडी  के बरसे पजरवा
        घसिया झुरान रहली मॅटीया झुरान
        गोरिया छ्न भर मे गम गम सिवान हो गईल - 2
        गोरिया मिलते नज़रिया तूफान हो गईल........................

**  ओही रे  बॅरिखवा  मे  तूहउ  ढ़ेकउलू
       बरिया  गझिनकी मे जाई  ठाढ़ भईलू
       झूठही गुमान रहली गुम हो गुमान
       गोरिया चंदन बदनिया के नाम  हो गईल-2
       गोरिया मिलते नज़रिया तूफान हो गईल.......................

**   ओही रे  बागियवा  मे नेहिया उगवले
        हथवा  मे हाथ  धरि  गरवा  लगवले 
        पूरवा सुहान आईली दिनवा सुहान
        गोरी अगना मे कजरी जवान हो गईल -2
         गोरिया मिलते नज़रिया तूफान हो गईल.......................

        हमहु नादन  रहली तूहऊ  नादन

 गीतकार : योगेश विक्रांत




रही रही खूब हिलोरे गंगा जी क पनिया की सैईया मनवा डोले ला- गीतकार : योगेश विक्रांत

                 रही रही खूब हिलोरे गंगा जी क पनिया ..........................


रही रही खूब हिलोरे गंगा जी क पनिया
की सैईया मनवा डोले ला

बहे लहर लहर पुरवईया
जाले पाल लगावले नईया
मचले पोर पोर गदराईल चढ़ल जवनिया
की सैईया मनवा डोलेला........................

रेवा झेगुर बोले घरवा
घेरे कारे कारे बादरवा
हहरे हरसिगार  सनअलसाईल बदनिया
की सैईया मनवा डोलेला...................

बीजुरी  चमके  बदरी तड़के
मोरा हियवा अगिया भड़के
रहिया निरखत हमरो जीनगी भईल कहनिया
की सैईया मनवा डोलेला ....................

चंचल अखिया के काजरवा
सुखल केसिया के गाज़रवा
बेधे मागीया के सेनूरवा नेह निसनिया
की सैईया मनवा डोले ला ....................

साझे आईब सुन अगुतानी
चिठ्टीया लेले घुमत बानी
तोहरी  पतियॅन के अच्छरिया मे चदनिया
की सैईया मनवा डोले ला ....................

रही रही खूब हिलोरे गंगा जी क पनिया
की सैईया मनवा डोले ला

                                
   गीतकार : योगेश विक्रांत