"वह सितमगर, मुझे बेघर देखना चाहता है,
मुझको असहाय, दर-बदर देखना चाहता है,
सुब्ह-ओ-शाम जिसको मैं देवता समझता था,
वही मुझको आज बद-नज़र देखना चाहता है,
जिसकी लम्बी उम्र हेतु मेरे दोनों हाथ जुड़ते थे,
वह शख्स मेरे हाथों में ज़हर देखना चाहता है,
मेरी बदनामी की ख़बर आ जाए किसी रास्ते से,
इस इंतज़ार में वह हर चौराहा हर डगर देखता है,
मेरा समय ख़राब आ जाए और मैं बर्बाद हो जाऊं!,
बड़ी सिद्दत के साथ वह बदलता दहर देखता है,।"
नीरज कुमार मिश्र
बलिया
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