बुधवार, 27 सितंबर 2023

धरती मइया और गंगा किनारे मोरा गाँव की हिरोइन गौरी खुराना नहीं रहीं- मनोज भावुक

धरती मइया और गंगा किनारे मोरा गाँव की हिरोइन गौरी खुराना नहीं रहीं। नहीं रहीं अभिनेता कुणाल सिंह के साथ सुपरहिट जोड़ी रही गौरी। वह पिछले कई माह से बीमार चल रही थीं। चार बंगला, अंधेरी (वेस्ट) मुंबई स्थित अपने आवास 'सुमेरु' में उन्होंने अंतिम सांस ली।

भोजपुरी सिनेमा के पहले और दूसरे दौर में असीम कुमार-कुमकुम, सुजीत कुमार-प्रेमानारायन, राकेश पांडेय-पदमा खन्ना या भोजपुरी सिनेमा के नये दौर में निरहुआ-पाखी हेगड़े/ निरहुआ-आम्रपाली, खेसारी-काजल राघवानी की जोड़ी जिस ढंग से लोकप्रिय है और सुपरहिट फिल्में दे रही है, उसी तरह 80 के दशक में कुणाल-गौरी खुराना की जोड़ी थी।

2002 में जब मैं अपनी किताब ' भोजपुरी सिनेमा के संसार' के लिए कुणाल सिंह से बातचीत कर रहा था तो उन्होंने गौरी खुराना के चुलबुलापन और बिंदासपन की अनेक कहानियां सुनाईं थीं।

निर्माता अशोक चंद जैन गौरी को लक्की सिक्का मानते थे। इसलिए उन्होंने धरती मईया और गंगा किनारे मोरा गांव से प्रसिद्धि पाने और धन कमाने के बाद, बहुत दिन बाद ( लगभग 20 साल बाद ) गंगा के पार सइयां हमार में भी गौरी को शामिल किया था, भले वह अतिथि भूमिका थी। शायद यह गौरी की अंतिम फ़िल्म भी है।

वैसे तो दर्जनों भोजपुरी फिल्में हैं गौरी के खाते में मगर मुझे 'दूल्हा गंगा पार के' वाली गौरी सबसे अच्छी लगीं।
अच्छी लगीं यह कहते हुये कि ' काहे जिया जरवलs चल दिहलs हमें बिसार के/ एतना बता द ए दूल्हा गंगा पार के '

गौरी खुराना के भला के बिसार पाई। भोजपुरी सिनेमा के इतिहास में एगो सुपरहिट अभिनेत्री का रूप में उनकर नाव चमकत रही।

श्रद्धांजलि !

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मंगलवार, 26 सितंबर 2023

राजपूतों की बलदानी गाथा- लेखक लव तिवारी

कुँआ ठाकुर का था पर कभी लोग राजतंत्र में प्यासे नहीं मरे, खेत ठाकुर का पर कोई भूखा नहीं मरता था , बैल ठाकुर के हल ठाकुर का हल की मूठ पर हाथ हरवाह का पर हर-वाह आत्महत्या नही करते थे, उनकी हर ज़रूरत पूरी की ठाकुर ने उसके परिवार को पालने का एक मात्र साधन था ठाकुर के बैल और हल

गाँव ठाकुर के, शहर ठाकुर के, देश ठाकुर का, क्योकी मातृभूमि के लिए अपना और अपने बच्चों तक का खून बलिदान देने वाला ठाकुर अपने देश और जनता के लिए ही जीता था,आक्रांताओ के आगे खडा होकर,बलिदान देकर! जिसकी वजह से लोग उनको व उनकी आवाज़ को अपना लक्ष्य बना लेते थे l
जय राजपूताना🙏🚩

राजनीति के भृष्ट ठेकेदारों ने कभी राजपूतों के बलिदानों का जिक्र नहीं किया कि कैसे देश एवं अपनी मात्रभूमि की रक्षा के लिए वह अपने और अपने सुंदर वीर पुत्र का भी बलिदान दे देते थे।


सोमवार, 25 सितंबर 2023

तू तो करनी का फल ही पाओगे- लाख चाहोगें छुपाना उनसे उनकी नजरो से बच न पाओंगे

तू तो करनी का फल ही पाओगे-२
लाख चाहोगें छुपाना उनसे
उनकी नजरो से बच न पाओंगे
हां तू तो करनी का फल ही पाओगे

अपने हाथों से कुछ न दान किया
अपने ताकत ही अभिमान किया-२
ना रहेगा तेरा ये नामो निशां
इस तरह तुम मिटायें जाओगे
तू तो करनी का फल ही पाओगे-२
लाख चाहोगें छुपाना उनसे
उनकी नजरो से बच न पाओंगे

एक सुंदर चिता बनायेगा
और उस पर तुझे सुलायेगा-२
जिस तरह जलती हर बरस होली
उस तरह तुम जलाये जाओगे
तू तो करनी का फल ही पाओगे-२ 
लाख चाहोगें छुपाना उनसे 
उनकी नजरो से बच न पाओंगे

तूने वादा किया था याद करो

तूने वादा जो किया था संसार के स्वामी से
कर दे ज़ुबान मीठी सुमिरन करु तुम्हारा
इकरार जो किया था संसार के स्वामी से

दुनिया के झन झट में हरगिज़ न मैं पडूंगा
स्वीकार जो किया था संसार के स्वामी से

तूने वादा किया था याद करो
कौल करके वहाँ से यहाँ से आये थे
जब वो पूछेंगे सारी बाते तो 
उनके आगे क्या मुँह दिखाओगे

तू तो करनी का फल ही पाओगे-२ 
लाख चाहोगें छुपाना उनसे 
उनकी नजरो से बच न पाओंगे

पा के नर तन कुछ ऐसा काम करो
सबका आशीष लो ऐसा नाम करो
तेरी करनी जो नेक होगी तो
सबकी आँखों को तुम रुलाओगे

तू तो करनी का फल ही पाओगे-२ 
लाख चाहोगें छुपाना उनसे 
उनकी नजरो से बच न पाओंगे


जोगावें कोई जोगिया जोग जती रे- व्यास जी मौर्या वाराणसी


जोगावें कोई जोगिया जोग जती रे-४
जोग जती रे जोग जती रे
जोगावें कोई जोगिया जोग जती रे-४

जैसे ब्रम्हा वेद जोगावें
वेद जोगावें हो वेद जोगावें
शिव को जोगावें पार्वती रे
जोगावें कोई जोगिया जोग जती रे-४

जैसे सोनरा सोना जोगावें
सोना जोगावें रामा सोना जोगावें
घट ही न पावें एको रति रे
जोगावें कोई जोगिया जोग जती रे-४

जैसे नारी पुरुष जोगावें
पुरुष जोगावें हो पुरुष जोगावें
जरत अगन में होत सती रे
जोगावें कोई जोगिया जोग जती रे-४

कहत कबीर सुनो भाई साधु
सुनो भाई साधो सुनो भाई साधो
कारा जागा छत्रपति रे।

जोगावें कोई जोगिया जोग जती रे-४
जोग जती रे जोग जती रे
जोगावें कोई जोगिया जोग जती रे-४

गायक श्री व्यास जी मौर्या जी
वाराणसी उत्तर प्रदेश


छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए ये मुनासिब नही आदमी के लिए

 कहा चला ए मेरे जोगी, जीवन से तू भाग के

किसी एक दिल के कारण यू सारी दुनिया त्याग के

छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए
ये मुनासिब नही आदमी के लिए
प्यार से भी जरुरी काम है
प्यार सबकुछ नही जिन्दगी के लिए

तन से तन का मिलन हो ना पाया तो क्या
मन से मन का मिलन कोइ कम तो नही
खुशबू आती रहे दूर ही से सही
सामने हो चमन कोइ कम तो नही
चांद मिलता नहीं, सब को संसार मे
है दिया ही बहोत रोशनी के लिए

कितनी हसरत से तकती ये कलिया तुम्हे
क्यो बहारो को फिर से बुलाते नही
एक दुनिया उजाड़ ही गयी है तो क्या
दूसरा तुम जहा क्यो बसाते नही
दिल ना चाहे भी तो साथ संसार के

चलना पड़ता है, सब की खुशी के लिए.



एक तिनके के जैसा बिखर जाएगा पाप करते हो जिस जिंदगी के लिए - अरुण दुबे ग़ाज़ीपुर

एक तिनके के जैसा बिखर जाएगा
पाप करते हो जिस जिंदगी के लिए
शाम होते ही सूरज ये ढल जाएगा
ऐसा नियम बना है सभी के लिए
एक तिनके के जैसा बिखर जाएगा

इतने दिन में तू इस मन को धो ना सका
अपने परमात्मा का तू हो ना सका-२
भक्ति का लो तू साबुन गुरु से अभी-२
मन में फैले हुई गंदगी के लिए
एक तिनके के जैसा बिखर जाएगा
पाप करते हो जिस जिंदगी के लिए

छोड़ सारे अहम को समर्पण करो
प्रेम से फूल के नेग अर्पण करो
हो कपट मन में तो पूजा लेते नहीं-२
मन को निर्मल करो बंदगी के लिए
एक तिनके के जैसा बिखर जाएगा
पाप करते हो जिस जिंदगी के लिए

अरुण दुबे ग्राम ब्रह्मानपुर पोस्ट करंडा गाज़ीपुर उत्तर प्रदेश
गाने का तर्ज- छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए



ओ पापी मन करले भजन मौका मिला हैं तो कर ले जतन- अरुण दुबे ग़ाज़ीपुर

ओ पापी मन करले भजन
मौका मिला हैं तो कर ले जतन
बाद में प्यारे पछतायेगा जब
पिंजरे से पंछी निकल जाएगा तब
तू हाथ मलता ही रह जाएगा।

क्यों करता है तेरा मेरा
ना कुछ तेरा ना कुछ मेरा
दो दिन का है ये जीवन तेरा
फिर क्या तेरा फिर क्या मेरा
हो....….........…...
क्या तू लेकर आया था क्या तू लेकर जाएगा
जैसा किया कर्म तूने वैसा ही फल पाएगा
बाद में प्यारे पछतायेगा
जब पिंजरे से पंछी निकल जाएगा तब
तू हाथ मलता ही रह जाएगा

भरी जवानी तू जी भर के सोया
आया बुढ़ापा तो देख के रोया
पायेगा तू अब वैसा ही प्यारे
जैसा भी था पहले तूने बोया
हो.................
प्रभु की नजर से तू बच नहीं पाएगा
आएगा बुढापा तो थर थर काँपेगा
बाद में प्यारे पछतायेगा जब
पिंजरे से पंछी निकल जाएगा तब
तुम हाथ मलता ही रह जाएगा

ओ पापी मन करले भजन
मौका मिला हैं तो कर ले जतन
बाद में प्यारे पछतायेगा जब
पिंजरे से पंछी निकल जाएगा तब
तू हाथ मलता ही रह जाएगा।



गुरुवार, 21 सितंबर 2023

हे अतिथि मेरा स्वागत स्वीकार कीजिए-

                                               हे अतिथि मेरा स्वागत स्वीकार कीजिए-2

अपने गले मे प्रेम का -2 ये हार लीजिए
हे अतिथि...............................-2

हम आप के स्वागत मे पलके बिच्छाए है-2
भगवान बनके आप मेरे घर मे आए है-2
कुछ भी नही भाव का उप हार लीजिए
हे अतिथि...............................-2


नही साग है बीदूर का, सेवरी का नही बेर-2
पंगु है कैसे आप ,का सत्कार हम करे-2
सब कुछ भुला के आप हमे प्यार दीजिए
हे अतिथि...............................-2


इस आगमन से आप के खुश है यहा के लोग-2
जॅन जॅन के मिलन का बना प्यारा मधुर सुयोग-2
ता उम्र इस मिलन का निर्वाह कीजिए..
हे अतिथि...............................-2





मैं अहिल्या नहीं बनूंगी- लेखिका ऋषिता सिंह ग़ाज़ीपुर

मैं अहिल्या नहीं बनूंगी
किसी इंद्र की वासनाओं पर
अपना तिरस्कार, नहीं सहूंगी
कल भी मैं शुद्ध, पुनीत, पवित्र थी
और मैं कल भी रहूंगी
कब तक किसी गौतम के श्राप से
यूंही पत्थर बनी रहूंगी
क्यों मैं अपने उद्धार के लिए
राम की प्रतिक्षा करूंगी
किसी के पद स्पर्श से
कैसे मैं खुद को शुद्ध कहूँगी
मैं अपनी निष्कलंकता के लिए
कब तक जग से लड़ूंगी
अब मैं अहिल्या नहीं बनूंगी

ऋषिता सिंह



सोमवार, 18 सितंबर 2023

तू नही तो तेरी याद सही यादो के सहारे जी लेगे- सोनू निगम

तू नही तो तेरी याद सही यादो के सहारे जी लेगे
हम ज़हर गमो का पी लेगे खुद चाक ग़रीबा सी लेगे..

यू मेरी तरह कोई ना उजड़े ना मीत किसी मन का बिछड़े
तोड़ा है मेरा दिल तूने मगर किसी और के मत करना टुकड़े...

इल्ज़ाम वफ़ा के हस कर हम सर देके ना हिलेगे
हम ज़हर गमो का पी लेगे खुद चाक ग़रीबा सी लेगे..

कभी तुझको चाँदनी रातो मे याद आए जो हम बरसातो मे
नफ़रत से ही लेना नाम मेरा कभी ज़िक्र मेरा हो बातो मे..

रोयेंगे सदा पर भूले से हम नाम ना तेरा कभी लेगे
हम ज़हर गमो का पी लेगे खुद चाक ग़रीबा सी लेगे..

इन प्यार की सब तस्वीरी को और लिखी सब तहरीरओ को
एक राख का ढेर बना देना सब खवाबो की तबीरो को..

बर्बाद ना अपना वक़्त करो हम राहे अपनी नयी लेगे
हम ज़हर गमो का पी लेगे खुद चाक ग़रीबा सी लेगे...

गिरती हुई हम है दीवारे जो देखे हमे वो दुतकारे
तक़दीर के हाथो बेबस है हर जीती हुई बाज़ी हारे...

देखेगे तुझे जब "इशरत" हम आँखो मे गम की नमी लेगे
हम ज़हर गमो का पी लेगे खुद चाक ग़रीबा सी लेगे..


शुक्रवार, 15 सितंबर 2023

निज भाषा के अभिलाषी हैं हम सब तो हिन्दी भाषी है इरशाद जनाब खलीली

निज भाषा के अभिलाषी हैं
हम सब तो हिन्दी भाषी है

बचपन से हिन्दी बोले हैं
शब्दों से शरबत घोले हैं

बड़ी सरलता से आती है
बोलचाल में मन भाती है

सर्वप्रथम ग्यारह स्वर आते
भाषा का प्रारम्भ बताते

अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ
ओ औ के संग ऋषि को लेले

अयोगवाह अं अः अक्षर हैं
हालांकि ये दोनो स्वर हैं

तत्पश्चात व्यंजन छत्तीस
अन्य तीन अतिरिक्त हैं मिश्रित

कुल उनतालिस व्यंजन सुन्दर
महायोग में बावन अक्षर

क ख ग घ ङ बोलो
कंठ तनिक कंठव्य के खोलो

च छ ज झ ञ लिख ले
ध्वनि यदि तालव्य से निकले

ट ठ ड ढ ण का वर्णन
देख ज़रा मूर्धन्य का दर्पण

त थ द ध न दंतव्य
जीभ का दांतों तक गंतव्य

प फ ब भ म का उदगम
ओष्ठय वर्ण होंठों का संगम

य र ल व अंतः स्थल
कहलाते हैं व्यंजन दुर्बल

श ष स और ह बस निकले
उष्म वर्ण घर्षण से पिघले

क्ष त्र ज्ञ और श्र का दर्शन
ये सब हैं संयुक्त व्यंजन

ड़ और ढ़ यूं तो बाहर हैं
मिश्रित ये अतिरिक्त अक्षर हैं

अक्षर से अक्षर उच्चारित
बावन वर्णों पर आधारित

हिन्दी है पहचान हमारी
हिन्दी हमको जान से प्यारी

देश की मिट्टी पर सो लेंगे
हम तो बस हिन्दी बोलेंगे

यही मातृभाषा हम सबकी
यही क्षेत्रभाषा हम सबकी

यही राजभाषा हम सबकी
यही राष्ट्रभाषा हम सबकी

*इरशाद जनाब खलीली*


किसी से कुछ ना कहना सीखो- बीना राय गाज़ीपुर उत्तर प्रदेश

सबके साथ रहना सीखो।
किसी से कुछ ना कहना सीखो।।

हाले दिल जो सबको बताओगे
तनहा महफ़िल में रह जाओगे

दर्द आपना सहना सीखो ।
कीसी से कुछ ना कहना सीखो।।

चाहत में खुद के ही संवरा करो
खुशियों की गली से गुज़रा करो

मुकद्दर से लड़ना सीखो।
किसी से कुछ ना कहना सीखो।।

गुनगुनाते रहो मुसकुराते रहो
हंसी ख्वाबों से आंख मिलाते रहो

मौजों में बहना सीखो ।
किसी से कुछ ना कहना सीखो।।

घबराओ नहीं रब साथ है।
तुम उसी से कहो जो भी बात है ।।

रब के कदमों में ढहना सीखो।
किसी से कुछ ना कहना सीखो।।

स्वलिखित नज़्म
बीना राय
गाज़ीपुर, उत्तर प्रदेश



हिंदी है हमारी भाषा गर्व से बताइए जी - लेखिका मधुलिका राय ग़ाज़ीपुर उत्तर प्रदेश

हिन्दी को बढ़ाइए जी,
हिन्दी को बचाइए जी,
हिंदी है हमारी भाषा ,
गर्व से बताइए जी।

सहज सरल भाषा,
जीवन की अभिलाषा,
मिश्री सी मीठी है ये ,
इसे अपनाइए जी।

इसका ना ओर-छोर,
बधे सब एक डोर,
एकजुटता का पाठ,
सबको पढ़ाइए जी।

हिन्दी है हमारी शान,
इस पर है अभिमान,
हिन्दी को शिखर तक ,
अब पहुंचाइए जी।

मधुलिका ,,,,,,‌✍️


गुरुवार, 14 सितंबर 2023

परे है अक़्ल से परवाज़ आरजू ए क़लम हद ए कमाल से आगे है जुस्तजू ए क़लम- अहकम ग़ाज़ीपुरी

परे है अक़्ल से परवाज़ आरजू ए क़लम
हद ए कमाल से आगे है जुस्तजू ए क़लम

मेरे ख़याल में मज़्मून लेके आते हैं
सरोशे इल्म से होती है गुफ़्तगू ए क़लम

यही दुआ है कि इल्म ओ अदब के गुलशन में
गुलों के ख़ामा से उट्ठे फ़ज़ा में बू ए क़लम

अदब की क़द्र जो हैं ना बलद वो क्या जाने
कि अहले इल्म ही होते हैं रूबरू ए क़लम

ये इल्म एक क़लमकार की एबादत है
नमाज़ हर्फ़ है स्याही अगर वज़ू ए क़लम

मैं आज क़ौम की तारीख़ लिखने बैठा हूं
ये इम्तिहान है रह जाये आबरू ए क़लम

अमीरे शहर हो अहकम अदब की दुनिया के
उठो के दस्ते सुख़नवर बढ़ाओ सू ए क़लम


कलियों की जो अस्मत लूटे फूलों की तज़लील करे ऐसा वहशी क़ौम का मेरी रहबर होने वाला है -अहकम ग़ाज़ीपुरी

पेश जहां में ऐसा भी इक मंज़र होने वाला है
मोम का पैकर रोते रोते पत्थर होने वाला है

कलियों की जो अस्मत लूटे फूलों की तज़लील करे
ऐसा वहशी क़ौम का मेरी रहबर होने वाला है

शर्म ओ हया के साथ ही अपनी क़दरें भी नीलाम हुई
आंख का पानी बहकर सर से ऊपर होने वाला है

जिसके परे परवाज़ में जुर्रत भी है अर्श को छूने की
वक्त के तेवर यह कहते हैं बे पर होने वाला है

सारी दुनिया मेरी मुख़ालिफ़ हो जाए अफसोस नहीं
सारा जमाना इक दिन मेरा लश्कर होने वाला है

शहरे सकूँ में फिर कोई नमरूद की आमद है शायद
हश्र से पहले इस दुनिया में महशर होने वाला है

सब को साथ में लेकर चलने का एजाज़ है अहकम
झरना दरियाओं से मिलकर सागर होने वाला है




मेरे ख्वाबों में था तू ही तू रात भर तुझसे होती रही गुफ्तगू रात भर - अहकम ग़ाज़ीपुरी

मेरे ख्वाबों में था तू ही तू रात भर
तुझ से होती रही गुफ्तगू रात भर

सज्दा ए इश्क़ करता रहा मैं अदा
अपने अश्कों से करके वज़ू रात भर

मस्त आंखों से तेरी ए जाने वफ़ा
पी रहा था मैं जामो सबू रात भर

डंस रही थी हमें शब की तन्हाईयाँ
बस तुम्हारी रही जुस्तजू रात भर

ज़ख़्म का तूने मुझको जो तोहफ़ा दिया
उसको करता रहा मैं रफ़ू रात भर

चांद पर जैसे काली घटा छा गई
ज़ुल्फ़ बिखरी रही चार सू रात भर

पेशे हक़ होगी मकबूल अहकम दुआ
रखके सज्दे में सर मांग तू रात भर




परेशां चांदनी क्यों हो रही है उदासी बाल खोले सो रही है- अहकम ग़ाज़ीपुरी


परेशां चांदनी क्यों हो रही है
उदासी बाल खोले सो रही है

बहा कर अश्के ग़म चश्मे तमन्ना
बड़े अनमोल मोती खो रही है

है मेरी चश्मे गिरियां का यह अहसां
लहू दामन का तेरे धो रही है

महोअंजुम हो या खुर्शीदे ताबाँ
ज़रूरत आपकी सबको रही है

खुले सर बेटियां निकली हैं घर से
हया पर्दे के पीछे रो रही है

चिराग़ ए दिल जलाया है किसी ने
रिदाये शब मुनव्वर हो रही है

मैं शाख़े गुल लगाने में हूं अहकम
मगर दुनिया तो कांटे बो रही है


वह कोई चाल चल नहीं सकता मेरा मोहरा बदल नहीं सकता - अहकम ग़ाज़ीपुरी

वह कोई चाल चल नहीं सकता
मेरा मोहरा बदल नहीं सकता

साथ देगा भला वह क्या मेरा
दो क़दम भी जो चल नहीं सकता

कोई ऐसा नहीं जो दुनिया में
ग़म के सांचे में ढल नहीं सकता

ख़ुद पे जिसको नहीं भरोसा वो
अपने पैरों पे चल नहीं सकता

लाख रोके मेरे क़दम कोई
मैं इरादा बदल नहीं सकता

तिनका तिनका बिखर गया तो क्या
मैं चमन से निकल नहीं सकता

शायरे ख़ुश बयां हूं मैं अहकम
कौन सुनकर मचल नहीं सकता


नज़र के एक इशारे पे तूर जल जाए क़दम क़दम पे मोहब्बत का नूर जल जाए - अहकम ग़ाज़ीपुरी

नज़र के एक इशारे पे तूर जल जाए
क़दम क़दम पे मोहब्बत का नूर जल जाए

लगा दे आग मगर सोच हश्र क्या होगा
अगर वतन में कोई बेक़सूर जल जाए

फ़साना ए ग़में जाना न सुन सका वॉइज़
वही मैं दार पे कह दूं तो हूर जल जाए

चमक उठे जो सितारों में नक़्शे पा तेरे
खुदा गवाह फ़लक का ग़रूर जल जाए

हर शुक्र अब कोई मूसा नहीं ज़माने में
दिखाओ जलवा की खुद कोहे तूर जल जाए

हमारे पास है अजदाद का सिला मुज़मीर
उसे जो तर्क करूँ तो शऊर जल जाए

वो हमको तोड़ के मंदिर बनाने वाले हैं
खुदा करे कि ये बएते फ़तूर जल जाए

मैं चाहता हूं कि सब फ़ायज़ुल माराम रहे
दिलों का बुग़्ज़ तबीयत का ज़ूर जल जाए

रहे ना बाकी शरारों की शोला सामानी
करो कुछ ऐसा कि संगे ज़हूर जल जाए

तुम्हारे साथ सरे बज़्म मुस्कुराते हुए
अगर वह देख ले मुझको ज़रूर जल जाए

हज़ार कोशिशें की अहले गुलसिताँ ऐ दोस्त
ख़िज़ाँ की निकहतें गुल का सरूर जल जाए

ये उनको फ़िक्र है दुश्मन का घर जले ना जले
मगर इस आग में अहकम ज़रूर जल जाए



आप हैं क्यों लबों रुख़सार में उल्झे उल्झे लोग हैं गर्मी ए बाज़ार में उल्झे उल्झे- अहकम ग़ाज़ीपुरी

आप हैं क्यों लबों रुख़सार में उल्झे उल्झे
लोग हैं गर्मी ए बाज़ार में उल्झे उल्झे

उम्र भर हम रहे नाकामी ए पेहम के शिकार
मिट गए गैसू ए ख़मदार में उल्झे उल्झे

ढूंढते कैसे गुलिस्तां की तबाही का सबब
रह गए सुर्खीए अख़बार में उल्झे उल्झे

गेसूए ज़ीस्त को सुलझाने की फ़ुर्सत न मिली
जिंदगी हम रहे मझधार में उल्झे उल्झे

कारवां मंज़िले मक़सूद पे पहुंचे कैसे
हैं सभी वक्त की रफ़्तार में उल्झे उल्झे

हाय अफ़सोस किसी को नहीं फ़िक्र ए ऊक़बा
सब सियासत के हैं बाज़ार में उल्झे उल्झे

जिनसे इंसाफ़ की उम्मीद हमें थी अहकम
वह भी है दिरहमो है दीनार में उल्झे उल्झे




उनसे बिछड़े तो मेरी तकदीर आधी रह गई- अहकम ग़ाज़ीपुरी

दास्तान ए इश्क़ की तहरीर आधी रह गई
ख़्वाब आधा रह गया ताबीर आधी रह गई

मुझसे मिलने का कहाँ वह वलवाला बाकी रहा
प्यार का वह जोश वह तनवीर आधी रह गई

ऐ मुसाफ़िर ये तो उनका चेहराए ज़ेबा नहीं
दिलकशी जाती रही तस्वीर आधी रह गई

पहने पहले मुद्दतों से पाव ज़ख्मी हो गए
घिसते घिसते पांव की ज़न्जीर आधी रह गई

अब कहां वह ख्वाहिशें आराईशें आसाइसें
उनसे बिछड़े तो मेरी तकदीर आधी रह गई

इश्क़ की नाकामियों से दिल का ये आलम हुआ
अब तलाशे यार की तदबीर आधी रह गई

अब तो अहकम की दुआएं भी नहीं होती क़बूल
ऐसा लगता है कि अब तासीर आधी रह गई


हैरत से अपनी आंख खुली की खुली रही जन्नत से भी हसीन तुम्हारी गली रही- अहकम ग़ाज़ीपुरी

हैरत से अपनी आंख खुली की खुली रही
जन्नत से भी हसीन तुम्हारी गली रही

माहौल खुशगवार था रक़्सो सरूर से
हर चीज अपनी अपनी जगह नाचती रही

जाने के बाद सारे मनाज़िर चले गए
जब तक थे आप चांद रहा चांदनी रही

गुलशन के नाम सारा लहू अपना कर दिया
फिर भी मुख़ालिफ़त में मेरी हर कली रही

बच्चों को एक बूंद भी पानी न मिल सका
हालांकि घर के पास ही मेरे नदी रही

आने को आप आए मगर हाय रे नसीब
जब जिंदगी न अपनी किसी काम की रही

पाबंद था कुछ ऐसा मैं अहकम नमाज़ का
मरने के बाद भी मेरी नीयत बन्धी रही



खिलता कहां है रात में सूरजमुखी का फूल मैं गम नसीब लाऊं कहां से खुशी का फूल- अहकम ग़ाज़ीपुरी

खिलता कहां है रात में सूरजमुखी का फूल
मैं गम नसीब लाऊं कहां से खुशी का फूल

बस्ती है आग आग तो सेहरा धुआं धुआं
नज़रे शरर हुआ है यहां बेबसी का फूल

वह खुशबूओं को ढूंढते गुलशन में रह गए
महका गया वजूद मेरा दिलकशी का फूल

खुशबू ख़लूस की न लचक प्यार में रही
शाख़े वफ़ा पे कैसे खिले दोस्ती का फूल

अहले क़लम ही शहर में गुमनाम रह गए
अब नाबलद के पास है दानिशवरी का फूल

गर आदमी शजर है तो बच्चा गुले मुराद
बच्चे को आप क्यों ना कहें आदमी का फूल

अहकम हरीमे नाज़ के आदाब सीखिये
यूँ फेंकिए न हुस्न पे दीवानगी का फूल


मैं तसव्वुर में उनसे मिल लूंगा कितनी पाबंदियां लगाओगे - अहकम ग़ाज़ीपुरी

धूप को हमसफ़र बना ओगे
छांव का सुख कहां से पाओगे

मैं तसव्वुर में उनसे मिल लूंगा
कितनी पाबंदियां लगाओगे

तुम तो सूरज हो साथ क्या दोगे
शाम होते ही डूब जाओगे

ऐसे बे चेहरगी के मौसम में
कब तलक आईना दिखाओगे

मौजे तूफां से मैं निपट लूंगा
तुम तो साहिल पे डूब जाओगे

उनसे नजरें मिला के ऐ नादाँ
नूर आंखों का भी गंवाओगे

सारी दुनिया टटोल कर अहकम
क्या खुदा को भी आज़माओ


मेरी वफा मेरी हसरत सलाम करती है चले भी आओ मोहब्बत सलाम करती है- अहकम ग़ाज़ीपुरी

मेरी वफा मेरी हसरत सलाम करती है
चले भी आओ मोहब्बत सलाम करती है

लुटाओ शौक से तुम राहे हक में आए लोगों
लुटाने वालों को बरकत सलाम करती है

जिस आईने में नजर आऐं दीन के ग़ाज़ी
उस आईने को शुजाअत सलाम करती है

अब आदमी को सलाम आदमी नहीं करता
अब आदमी को ज़रूरत सलाम करती है

दुआ की करते हैं उम्मीद उन फ़क़ीरों से
कि जिन फ़क़ीरों को गुरबत सलाम करती है

वो और होंगे जो मोहताज हैं तआरुफ के
हमें जमाने की शुहरत सलाम करती है

जरूर आप में कुछ खूबियां हैं ऐ अहकम
जो क़ौम आपको हज़रत सलाम करती है



मेरे जीने का यही एक सहारा है फ़क़त मेरे मेहबूब वह पहली सी मुहब्बत दे दे- अहकम ग़ाज़ीपुरी

देख लूं मैं उन्हें जी भर के इजाज़त दे दे
ऐ अजल सिर्फ मुझे इतनी सी मोहलत दे दे

मेरे जीने का यही एक सहारा है फ़क़त
मेरे मेहबूब वह पहली सी मुहब्बत दे दे

वह परेशान रहे यह मुझे मंजूर नहीं
उसके हिस्से की मुझे सारी मुसीबत दे दे

मैं तो फुटपाथ पे भी चैन से सो जाऊंगा
उसको साए की ज़रूरत है उसे छत दे दे

तख़्ते शाही न ख़ज़ाने की तलब है मुझको
ऐ खुदा बस मुझे ईमान की दौलत दे दे

मेरी तहरीर को देखे तो जहां रश्क करे
ए खुदा मेरे क़लम को तू वह ताक़त दे दे

देखने वाला यह कह दे कि यही अहकम है
आईना मुझको मेरी पहली सी सूरत दे दे



ग़ैर काम आए ना आए ग़ैर फिर ग़ैर है तुम तो अपने थे बताओ क्या किया मेरे लिए- अहकम ग़ाज़ीपुरी

कम नहीं है यह वफ़ाओं का सिला मेरे लिए
मांगते हैं आज तो वह भी दुआ मेरे लिए

उनकी आंखों की क़सम खाई थी बस इस जुर्म में
हो गया है बंद बाबे मयकदा मेरे लिए

दैरो काबा से अलग हूं सारे ग़म से बे नियाज़
कम नहीं जन्नत से मेरा मयकदा मेरे लिए

वक्त का मन्सूर हूं मैं वक्त का सुक़रात हूं
आपने क्या-क्या लक़ब फ़रमा दिया मेरे लिए

चारागर महरूम मत कर लज़्ज़ते ग़म से मुझे
बाइसे तस्की है दर्दे ला दवा मेरे लिए

ग़ैर काम आए ना आए ग़ैर फिर ग़ैर है
तुम तो अपने थे बताओ क्या किया मेरे लिए

जो अज़ल ही से है अपनी शक्ल से नाआशना
लेके वह आए हैं अहकम आईना मेरे लिए



सुना है चांद पे दुनिया बसाने जाते हो वहां जमीं पे समुंदर उतार लोगे क्या - अहकम ग़ाज़ीपुरी

हया का क़ीमती ज़ेवर उतार लोगे क्या
वफ़ा के जिस्म में नश्तर उतार लोगे क्या

किसी को शौक़ कभी मौत का नहीं होता
तुम अपने सीने में ख़न्जर उतार लोगे क्या

सुना है चांद पे दुनिया बसाने जाते हो
वहां जमीं पे समुंदर उतार लोगे क्या

यही निशाने तक़द्दुस है एक औरत का
हया की आज ये चादर उतार लोगे क्या

किसी की चाहे जनख़दाँ में डूबने के लिए
नज़र में फिर कोई पैकर उतार लोगे क्या

जो रुए हुस्न मिटा दे बस एक ठोकर से
तुम आईने में वह पत्थर उतार लोगे क्या

ख़ला में आज भी करते हो जुस्तजू किसकी
फ़लक से चाँद ज़मीं पर उतार लोगे क्या

जवां लबों के तबस्सुम तो तुमने छीन लिये
बदन का रंग खुरुचकर उतार लोगे क्या

तुम अपनी आंखों से अब देख भी नहीं सकते
फिर अपनी रूह में मंज़र उतार लोगे क्या

अमीरे क़ौम अगर तुम हो रहबर में भी
ज़रा सी बात पे लश्कर उतार लोगे क्या

मैं अपनी जान हथेली पे लेके चलता हूं
तुम अपने जिस्म से ये सर उतार लोगे क्या

बवक़्ते शाम चढ़े हो दरख़्त पर अहकम
किसी परिंदे का तुम घर उतार लोगे क्या



चमक चेहरे से आंखों के उजाले छीन लेते हैं अमीरे शहर तो मुंह से निवाला छीन लेते हैं- अहकम ग़ाज़ीपुरी

चमक चेहरे से आंखों के उजाले छीन लेते हैं
अमीरे शहर तो मुंह से निवाला छीन लेते हैं

हमें तो साक़ीए मैंख़ाना आंखों से पिलाता है
यह किसने कह दिया हम लोग प्याले छीन लेते हैं

हिफ़ाज़त अपने इमाँ की करो इस दौरे हाज़िर में
इसे भी तन के उजले मन के काले छीन लेते हैं

हवस में मालो ज़र की कुछ नज़र उनको नहीं आता
जो कानों से बहू बेटी के बाले छीन लेते हैं

मसल देते हैं गुलशन के हंसी फूलों को पैरों से
चमन का हुस्न ये नाज़ों के पाले छीन लेते हैं

पसीने की कमाई से हमें रोटी जो मिलती है
उसे भी तंग दिल ये खादी वाले छीन लेते हैं

ज़हानत के जो साए में चढ़े परवान हैं अहकम
वो अहल ए इल्म के सारे हवाले छीन लेते हैं



तेरी तस्वीर रूबरू करके चैन पाता हूँ गुफ़्तगू करके- अहकम ग़ाज़ीपुरी

तेरी तस्वीर रूबरू करके
चैन पाता हूँ गुफ़्तगू करके

गुल उम्मीदों के खिल नहीं पाये
रह गया दिल को बस नमू करके

तुझको पाकीज़गी से पढ़ता हूँ
आंसुओं से सदा वज़ू करके

गिर गया ख़ुद जहां की नज़रों से
वो मेरा शिकवा चार सू करके

सिर्फ़ रुस्वाइयां हुईं हासिल
बेवफ़ा तेरी आरज़ू करके

मुतमइन सब हुसैन वाले हैं
ज़ेरे खंजर रगे गुलू करके

रूठ कर वो चले गए अहकम
दिल की हसरत लहू लहू करके



दिल में मेरे जवान है मंजिल की आरज़ू आता नहीं है चलना बड़ी तेज़ धूप है - अहकम ग़ाज़ीपुरी

तपने लगा है सहरा बड़ी तेज़ धूप है
अब ढूंढो कोई साया बड़ी तेज़ धूप है

दिल में मेरे जवान है मंजिल की आरज़ू
आता नहीं है चलना बड़ी तेज़ धूप है

घबरा के पी ना जाए कहीं लालची नज़र
बादल का एक टुकड़ा बड़ी तेज़ धूप है

अहसास में है रात की ठंडक छुपी हुई
उभरेगा क्या अंधेरा बड़ी तेज़ धूप है

हमको बचा लो धूप से अब तो किसी तरह
जलता है जिस्म सारा बड़ी तेज़ धूप है

किसकी बुझाऊँ प्यास किसे सायेबान दूँ
हर आदमी है प्यासा बड़ी तेज़ धूप है

अहकम में हौसले की कमी तो नहीं मगर
साथी न कोई साया बड़ी तेज़ धूप है




हिन्दी से ही तो हिन्दुस्तान है लेखिका- अंजली अन्जान प्रतापपुर करंडा गाजीपुर

हिन्दी से सिखा पढ़ना हमने
गाने भी हिन्दी में गाते हैं,
फिर अपनी हिन्दी को अपनाने में
हम इतना क्यों शरमाते हैं?

संचारों के माध्यम का एक यही मात्र जंजाल है
हिन्दी से ही तो हिन्दुस्तान है।।

दुल्हन के माथे कि बिन्दी,
सरल भाषा है यह हिन्दी
यही हमारी वेदना,
यही हमारा स्वाभिमान है
हिन्दी से ही तो हिन्दुस्तान है।।

भाषा जन- जन की हिन्दी,
आशा भारत की है यह हिन्दी
हिन्दी हमारा ईमान, यही हमारा पहचान है
हिन्दी से ही तो हिन्दुस्तान है।।

मां कि ममता जैसे हिन्दी
छाया पिता का है यह हिन्दी,
हिन्दी हमारा मान, यही हमारी शान है,
हिन्दी से ही तो हिन्दुस्तान है।
हिन्दी से ही तो हिन्दुस्तान है।।


अंजली अन्जान
प्रतापपुर -करंडा, गाजीपुर ( उत्तर प्रदेश)


विश्व में भारत के संबंधों को प्रगाढ़ करती हिंदी लेखिका- साधना शाही वाराणसी

विश्व में भारत के संबंधों को प्रगाढ़ करती हिंदी

विविध कला शिक्षा अमित,
ज्ञान अनेक प्रकार ।
सब देसन से ले करहूँ,
भाषा माहि प्रचार।
हिंदी भाषा है ऐसी,
पावै लाभ सब कोय ।
इस भाषा की गुन महता,
जाने जगत में सब कोय

आज हिंदी की भागीदारी केवल देश में ही नहीं वरन् पूरे विश्व में लाभकारी है। इस बात का प्रमाण आज के नवीनतम शोध दे रहे हैं। हालाँकि सदियों से हिंदी को अप्रामाणिक और अवैज्ञानिक भाषा कहकर इसकी क्षमताओं को सीमित करने का हर संभव प्रयास किया गया। इसके बावजूद जब इसे विश्व मंच पर अपना साम्राज्य फैलाने का मौका दिया गया तब इसने स्वयं को प्रमाणित कर दिखाया । आज हिंदी विश्व में भारत के संबंधों को प्रगाढ़ करने में अग्रणी भूमिका निभा रही है। इसीलिए आज आवश्यकता है इंटरनेट, वेबसाइट, ब्लॉगिंग नए पोर्टल विभिन्न प्रकार के विमर्शो में हिंदी की भागीदारी बढ़ाने की और विश्व के अन्य भाषाओं के निकट लाने की।

रूपर्ट स्नेल के शब्दों में - हिंदी एक वर्ग, जाति, धर्म, संप्रदाय, देश अथवा संस्कृति की नहीं यह भारत की भाषा है। यह मॉरीशस की, इंग्लैंड की सारी दुनिया की भाषा है। हिंदी आपकी है, मेरी है, हम सबकी है।

मातृभाषा के अमर गायक भारतेंदु हरिश्चंद्र ने भी हिंदी की महत्ता को प्रतिपादित करते हुए कहा है-

प्रचलित करहुँ जहान में,
निज भाषा करि जत्न ।
राज-काज दरबार में,
फैलावहु यह रत्न।

आज टेलीविजन, मीडिया, प्रिंट मीडिया, इंटरनेट आदि का प्रयोग यदि उच्च स्तर पर हिंदी के माध्यम से करने से विश्व की विभिन्न संस्कृतियों से भारत के संबंधों की प्रगाढ़ता बढ़ रही है। आज भारतवर्ष की भाषा एवं संस्कृति से पूरा विश्व प्रभावित हुआ है।

इस प्रकार वैश्वीकरण के इस दौर में जो 10 भाषाएंँ जीवंत हैं उनमें से एक भाषा हिंदी है। हिंदी हमारे देश की पूर्णतः राष्ट्रभाषा भले ही न बन पाई हो, किंतु यह एक विश्व भाषा है। ऐसा इसलिए क्योंकि पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, इंडोनेशिया, सिंगापुर, थाईलैंड, चीन, जापान, ब्रिटेन जर्मनी, न्यूजीलैंड, अफ्रीका, यमन, युगांडा, त्रिनीडाड, कनाडा आदि देशों में बड़ी संख्या में हिंदी भाषी हैं। इसके अतिरिक्त इंग्लैंड, अमेरिका, मध्य एशिया में इसे बोलने वालों की अच्छी तादात है।

विश्व में भारत के संबंधों को प्रगाढ़ता प्रदान करती हिंदी की सकारात्मक प्रवृत्तियाँ हमें निम्न रूप में दृष्टिगत हो रही हैं-
1- भौगोलिक रूप से हिंदी किसी एक महाद्वीप में नहीं वरन् हर महाद्वीप में बोली और समझी जाती है।
2- यदि हम जनतांत्रिक आधार की बात करें तो इसे बोलने और समझने वालों की संख्या विश्व में तीसरे स्थान पर है।
3- 132 देशों में लगभग दो करोड़ भारतवासी रोज़गार आदि की वज़ह से देश छोड़कर भले ही विदेश चले गए, किंतु वो वहाँ भी हिंदी में ही अपना कार्य संपादित करते हैं।
4- हिंदी एक ऐसी उच्च कोटि की भाषा है जो एशियाई संस्कृति में अपनी अलग पहचान प्रस्तुत करती है, इस प्रकार यह एशियाई भाषा मात्र न होकर एशिया की एक प्रतिनिधि भाषा जो भारत तथा विश्व के अन्य देशों के मध्य संबंधों में प्रगाढ़ता लाने में महती भूमिका अदा करती है।
5- यह इतनी लचीली एवं सर्वग्राह्य है कि अनेकानेक भाषाओं के शब्द इसमें इस प्रकार घुल-मिल जाते हैं कि वो विदेशी न दिखकर हिंदीमय ही दिखते हैं।

इस प्रकार हिंदी का विश्व में प्रचार-प्रसार देखते हुए हम कह सकते हैं कि हिंदी अपने अंदर पूरे विश्व को स्थापित कर रखी है। आर्य, द्रविड़, आदिवासी, स्पेनी, पुर्तगाली, फ़ारसी, चीनी, जापानी आदि भाषाओं के शब्द इसमें एक अच्छे मित्र की भाँति समाविष्ट हो विश्व में भारत के संबंधों की प्रगाढ़ता की प्रवृत्ति को उजागर करते हैं। इंटरनेट पर हिंदी की स्वीकार्यता भारत और विश्व के संबंधों को प्रगाढ़ करने में सोने पर सुहागा का कार्य करती है। हिंदी के माध्यम से विश्व के संबंधों में प्रगाढ़ता के कारण ही विश्व के 180 से 85 विश्वविद्यालयों में हिंदी का शिक्षण एवं प्रशिक्षण कार्य चल रहा है। मात्र अमेरिका में 100 से अधिक विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जा रही है।

ऐनाकाटीर एनसाइक्लोपीडिया के अनुसार- चीनी भाषा के बाद संसार में सबसे अधिक प्रयुक्त होने वाली भाषा हिंदी ही है।
यदि हम व्यापक रूप में विश्व में हिंदी की सहभागिता पर विचार करें तो पाएंँगे कि हिंदी उन सभी प्रक्रियाओं को व्यक्त करती है जिसमें विभिन्न देशों में उपस्थित व्यक्तियों या संगठनों की गतिविधियाँ एक से दूसरे देश में पहुँचती हैं। यदि हम साफ़ शब्दों में कहें तो हिंदी दो देशों के बीच व्यवसाय, पूँजी, निवेश व मानव संसाधन के उन्मुक्त प्रवाह को व्यक्त करती है।

इस तरह पर विश्व के अनेकानेक देशों की अर्थव्यवस्था, शिक्षा, सामाजिक व्यवस्था एवं संस्कृति को प्रभावित करती है, और उसका परिणाम प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में विश्व के अन्य देशों के साथ भारत के संबंधों को प्रगाढ़ता प्रदान करती है।

दरअसल हमारी भाषा हिंदी का मूलमंत्र ही है *वसुधैव कुटुंबकम* जो संपूर्ण विश्व को एक परिवार की तरह मिलजुल कर रहने और विकास करने की प्रेरणा देती है। जिससे हम सभी एक साथ प्रगति के पथ पर अग्रसर हों, और एक दूसरे के सुख-दुख में परस्पर सहयोग करें। इसमें सीधे-सीधे अपने स्वाभाविक स्वरूप के कारण सहजता से बाकी दुनिया के अनेकानेक देशों से जुड़ने का संदेश निहित है और व्यापक दृष्टिकोण से देखा जाए तो इसमें वैश्वीकरण, भूमंडलीकरण का अर्थ छुपा हुआ है।

हिंदी का महत्व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किसी भी दृष्टिकोण से जापान, चीन, फ्रांस, रूस, अमेरिका युगांडा, फ़िजी आदि देशों से कम नहीं है, और विश्व के अनेक क्षेत्रों में योगदान करने की भरपूर क्षमता हिंदी रखती है। सूचना, तकनीक एवं उच्च शिक्षा विज्ञान, चिकित्सा, अध्यात्म, योग आदि ऐसे क्षेत्र हैं, जिनमें हिंदी ने प्रशंसनीय योगदान किया है और आगे भी अनवरत करती रहेगी। यदि इतिहास के पन्नों को पलट कर देखें तो पाएंगे कि हिंदी किस प्रकार विश्व के अनेकानेक देशों से अपने संबंध को प्रगाढ़ता प्रदान कर उन्नति के शिखर पर अग्रसर हुई है।

हिंदी भाषा है ऐसी, विज्ञान तकनीकी सभी में रच-बस जाए।
तभी तो यह प्रमाणिक वैज्ञानिक भाषा कहलाए।
सबंधों को प्रगाढ़ करे, रिश्ते मजबूत बनाए।
सौम्य, सरस और रुचिकर भाषा, उन्नति के शिखर पर जाए।

विश्व की राजनीति में भी हिंदी का अपना प्रमुख स्थान है। भारत वर्ष में हिंदी राजभाषा के रूप में जानी जाती है और यह संचार का एक सशक्त माध्यम है। आज पूरा विश्व वैश्वीकरण को स्थापित करना चाहता है। हिंदी इसे सफल बनाने में अपना अमूल्य योगदान देती है और आने वाले वर्षों में भी वैश्वीकरण को और भी अधिक प्रभावशाली बनाने में भी हिंदी अहम भूमिका निभाती रहेगी। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, रेडियो, टीवी के विभिन्न चैनलों, बहुराष्ट्रीय कंपनियों के विभिन्न कार्यक्रमों में चाहे वो सांस्कृतिक, मनोरंजन के हों, समाचार के हों या धर्म के आध्यात्मिक, खेलकूद अथवा विज्ञान की जानकारी इत्यादि से संबंधित हर क्षेत्र में आज हिंदी की सकारात्मक सहभागिता उपलब्ध है।

इत-उत चारिहुँ ओर मैं देखी, हिंदी रही विराज।
देश- समाज विकास करेगा, हिंदी में करो काज।

विश्व में हिंदी की महत्ता विश्वास रखती है। हिंदी भाषा और इसमें संगीत भारतीय सांस्कृतिक धरोहर इतना सुंदर और समृद्ध है कि इस ओर अधिक प्रयत्न किए बिना ही इसका विकास परिलक्षित हो रहा है। ध्यान, योग, आसन, आयुर्वेद के शब्दों का स्वतः दूसरी भाषा में विलय बड़ी ही आसानी से हो जाता है। आज विदेशों में हिंदी के प्रभाव में अनवरत वृद्धि हो रही है। आज कई विदेशी फ़िल्म निर्माता अपनी फ़िल्म को हिंदी में डब करके प्रस्तुत कर रहे हैं। जुरासिक पार्क जैसी अति प्रसिद्ध फ़िल्म हिंदी के व्यापक प्रभाव को देखते हुए ही हिंदी भाषा में रूपांतरित की गई और इसके हिंदी संस्करण ने अंग्रेजी संस्करण की तुलना में तनिक मात्र भी कम ख्याति अर्जित नहीं की। इस प्रकार हिंदी के माध्यम से भारत वर्ष के संबंध विश्व के अन्य देशों से प्रगाढ़ होते जा रहे हैं। इसीलिए तो कहा जाता है-

यूनान - मिस्र-रोमांँ,
सब मिट गए जहाँ से।
अब तक मगर है बाक़ी,
नामो-निशान हमारा।।
कुछ बात है कि हस्ती,
मिटती नहीं हमारी।
सदियों रहा है दुश्मन,
दौरे जहाँहमारा।

सब कुछ छोड़ दें,पर अपनी भाषा कैसे छोड़ेंगे।
यह तो हमारी माता है, इससे रिश्ता कैसे तोड़ेंगे।

जय हिंदी,🙏🙏 जय हिंदुस्तान

साधना शाही, वाराणसी