चमक चेहरे से आंखों के उजाले छीन लेते हैं
अमीरे शहर तो मुंह से निवाला छीन लेते हैं
हमें तो साक़ीए मैंख़ाना आंखों से पिलाता है
यह किसने कह दिया हम लोग प्याले छीन लेते हैं
हिफ़ाज़त अपने इमाँ की करो इस दौरे हाज़िर में
इसे भी तन के उजले मन के काले छीन लेते हैं
हवस में मालो ज़र की कुछ नज़र उनको नहीं आता
जो कानों से बहू बेटी के बाले छीन लेते हैं
मसल देते हैं गुलशन के हंसी फूलों को पैरों से
चमन का हुस्न ये नाज़ों के पाले छीन लेते हैं
पसीने की कमाई से हमें रोटी जो मिलती है
उसे भी तंग दिल ये खादी वाले छीन लेते हैं
ज़हानत के जो साए में चढ़े परवान हैं अहकम
वो अहल ए इल्म के सारे हवाले छीन लेते हैं
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