गुरुवार, 14 सितंबर 2023

नज़र के एक इशारे पे तूर जल जाए क़दम क़दम पे मोहब्बत का नूर जल जाए - अहकम ग़ाज़ीपुरी

नज़र के एक इशारे पे तूर जल जाए
क़दम क़दम पे मोहब्बत का नूर जल जाए

लगा दे आग मगर सोच हश्र क्या होगा
अगर वतन में कोई बेक़सूर जल जाए

फ़साना ए ग़में जाना न सुन सका वॉइज़
वही मैं दार पे कह दूं तो हूर जल जाए

चमक उठे जो सितारों में नक़्शे पा तेरे
खुदा गवाह फ़लक का ग़रूर जल जाए

हर शुक्र अब कोई मूसा नहीं ज़माने में
दिखाओ जलवा की खुद कोहे तूर जल जाए

हमारे पास है अजदाद का सिला मुज़मीर
उसे जो तर्क करूँ तो शऊर जल जाए

वो हमको तोड़ के मंदिर बनाने वाले हैं
खुदा करे कि ये बएते फ़तूर जल जाए

मैं चाहता हूं कि सब फ़ायज़ुल माराम रहे
दिलों का बुग़्ज़ तबीयत का ज़ूर जल जाए

रहे ना बाकी शरारों की शोला सामानी
करो कुछ ऐसा कि संगे ज़हूर जल जाए

तुम्हारे साथ सरे बज़्म मुस्कुराते हुए
अगर वह देख ले मुझको ज़रूर जल जाए

हज़ार कोशिशें की अहले गुलसिताँ ऐ दोस्त
ख़िज़ाँ की निकहतें गुल का सरूर जल जाए

ये उनको फ़िक्र है दुश्मन का घर जले ना जले
मगर इस आग में अहकम ज़रूर जल जाए



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