गुरुवार, 14 सितंबर 2023

मेरे ख्वाबों में था तू ही तू रात भर तुझसे होती रही गुफ्तगू रात भर - अहकम ग़ाज़ीपुरी

मेरे ख्वाबों में था तू ही तू रात भर
तुझ से होती रही गुफ्तगू रात भर

सज्दा ए इश्क़ करता रहा मैं अदा
अपने अश्कों से करके वज़ू रात भर

मस्त आंखों से तेरी ए जाने वफ़ा
पी रहा था मैं जामो सबू रात भर

डंस रही थी हमें शब की तन्हाईयाँ
बस तुम्हारी रही जुस्तजू रात भर

ज़ख़्म का तूने मुझको जो तोहफ़ा दिया
उसको करता रहा मैं रफ़ू रात भर

चांद पर जैसे काली घटा छा गई
ज़ुल्फ़ बिखरी रही चार सू रात भर

पेशे हक़ होगी मकबूल अहकम दुआ
रखके सज्दे में सर मांग तू रात भर




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें