गुरुवार, 14 सितंबर 2023

कलियों की जो अस्मत लूटे फूलों की तज़लील करे ऐसा वहशी क़ौम का मेरी रहबर होने वाला है -अहकम ग़ाज़ीपुरी

पेश जहां में ऐसा भी इक मंज़र होने वाला है
मोम का पैकर रोते रोते पत्थर होने वाला है

कलियों की जो अस्मत लूटे फूलों की तज़लील करे
ऐसा वहशी क़ौम का मेरी रहबर होने वाला है

शर्म ओ हया के साथ ही अपनी क़दरें भी नीलाम हुई
आंख का पानी बहकर सर से ऊपर होने वाला है

जिसके परे परवाज़ में जुर्रत भी है अर्श को छूने की
वक्त के तेवर यह कहते हैं बे पर होने वाला है

सारी दुनिया मेरी मुख़ालिफ़ हो जाए अफसोस नहीं
सारा जमाना इक दिन मेरा लश्कर होने वाला है

शहरे सकूँ में फिर कोई नमरूद की आमद है शायद
हश्र से पहले इस दुनिया में महशर होने वाला है

सब को साथ में लेकर चलने का एजाज़ है अहकम
झरना दरियाओं से मिलकर सागर होने वाला है




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