जगा-जगा रे जगा सिपाही
भर रोम-रोम आक्रोश प्रचण्ड
लिए धमनियों में स्पंदन अखण्ड
विध्वंस को आंदोलित मन से
करने को आतुर अरिदंभ खण्ड
निकला आलस्य त्याग सिपाही
जगा-जगा रे जगा सिपाही
रण बिगुल बजा दुष्ट थर्राया
कंपित सागर, निलय भहराया
कर धू-धू जल उठा विरोधी
हुई सकल छिन्न-भिन्न काया
भरता चहुंदिस आग सिपाही
जगा-जगा रे जगा सिपाही
मृत्यु सारथी युग दर्शक है
स्वाभिमान यूं बलवर्धक है
वायु रुके और पर्वत डोले
गर्जना ऐसी लोमहर्षक है
रचता विप्लव राग सिपाही
जगा-जगा रे जगा सिपाही
शिव तांडव साक्षात कर रहा
नरसिंह सा आघात कर रहा
कंटकों की जड़ दही डालता
वह चाणक्य सी बात कर रहा
रहा अमोघ अब दाग सिपाही
जगा- जगा रे जगा सिपाही
डॉ एम डी सिंह
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