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अगस्त 2020 ~ Lav Tiwari ( लव तिवारी )

Lav Tiwari On Mahuaa Chanel

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सोमवार, 31 अगस्त 2020

प्रेम जाल में फ़स के अपने घर को छोड़कर कर जानी वाली लड़की की अपने माँ बाप के घर लौटने की कहानी- लव तिवारी

ट्रैन के ए.सी. कम्पार्टमेंट में मेरे सामने की सीट पर बैठी लड़की ने मुझसे पूछा " हैलो, क्या आपके पास इस मोबाइल की सिम निकालने की पिन है??"

उसने अपने बैग से एक फोन निकाला था, और नया सिम कार्ड उसमें डालना चाहती थी। लेकिन सिम स्लॉट खोलने के लिए पिन की जरूरत पड़ती है जो उसके पास नहीं थी। मैंने हाँ में गर्दन हिलाई और अपने क्रॉस बेग से पिन निकालकर लड़की को दे दी। लड़की ने थैंक्स कहते हुए पिन ले ली और सिम डालकर पिन मुझे वापिस कर दी।

थोड़ी देर बाद वो फिर से इधर उधर ताकने लगी, मुझसे रहा नहीं गया.. मैंने पूछ लिया "कोई परेशानी??"

वो बोली सिम स्टार्ट नहीं हो रही है, मैंने मोबाइल मांगा, उसने दिया। मैंने उसे कहा कि सिम अभी एक्टिवेट नहीं हुई है, थोड़ी देर में हो जाएगी। और एक्टिव होने के बाद आईडी वेरिफिकेशन होगा उसके बाद आप इसे इस्तेमाल कर सकेंगी।

लड़की ने पूछा, आईडी वेरिफिकेशन क्यों??
मैंने कहा " आजकल सिम वेरिफिकेशन के बाद एक्टिव होती है, जिस नाम से ये सिम उठाई गई है उसका ब्यौरा पूछा जाएगा बता देना"

लड़की बुदबुदाई "ओह्ह "
मैंने दिलासा देते हुए कहा "इसमे कोई परेशानी की कोई बात नहीं"
वो अपने एक हाथ से दूसरा हाथ दबाती रही, मानो किसी परेशानी में हो। मैंने फिर विन्रमता से कहा "आपको कहीं कॉल करना हो तो मेरा मोबाइल इस्तेमाल कर लीजिए"
लड़की ने कहा "जी फिलहाल नहीं, थैंक्स, लेकिन ये सिम किस नाम से खरीदी गई है मुझे नहीं पता"
मैंने कहा "एक बार एक्टिव होने दीजिए, जिसने आपको सिम दी है उसी के नाम की होगी"
उसने कहा "ओके, कोशिश करते हैं"
मैंने पूछा "आपका स्टेशन कहाँ है??"
लड़की ने कहा "दिल्ली"
और आप?? लड़की ने मुझसे पूछा
मैंने कहा "दिल्ली ही जा रहा हूँ, एक दिन का काम है,
आप दिल्ली में रहती हैं या...?"
लड़की बोली "नहीं नहीं, दिल्ली में कोई काम नहीं , ना ही मेरा घर है वहाँ"
तो ???? मैंने उत्सुकता वश पूछा
वो बोली "दरअसल ये दूसरी ट्रेन है, जिसमे आज मैं हूँ, और दिल्ली से तीसरी गाड़ी पकड़नी है, फिर हमेशा के लिए आज़ाद"
आज़ाद??
लेकिन किस तरह की कैद से??
मुझे फिर जिज्ञासा हुई किस कैद में थी ये कमसिन अल्हड़ सी लड़की..
लड़की बोली, उसी कैद में थी जिसमें हर लड़की होती है। जहाँ घरवाले कहे शादी कर लो, जब जैसा कहे वैसा करो। मैं घर से भाग चुकी हुँ..
मुझे ताज्जुब हुआ मगर अपने ताज्जुब को छुपाते हुए मैंने हंसते हुए पूछा "अकेली भाग रही हैं आप? आपके साथ कोई नजर नहीं आ रहा? "
वो बोली "अकेली नहीं, साथ में है कोई"
कौन? मेरे प्रश्न खत्म नहीं हो रहे थे
दिल्ली से एक और ट्रेन पकड़ूँगी, फिर अगले स्टेशन पर वो जनाब मिलेंगे, और उसके बाद हम किसी को नहीं मिलेंगे..
ओह्ह, तो ये प्यार का मामला है।
उसने कहा "जी"
मैंने उसे बताया कि 'मैंने भी लव मैरिज की है।'
ये बात सुनकर वो खुश हुई, बोली "वाओ, कैसे कब?" लव मैरिज की बात सुनकर वो मुझसे बात करने में रुचि लेने लगी
मैंने कहा "कब कैसे कहाँ? वो मैं बाद में बताऊंगा पहले आप बताओ आपके घर में कौन कौन है?
उसने होशियारी बरतते हुए कहा " वो मैं आपको क्यों बताऊं? मेरे घर में कोई भी हो सकता है, मेरे पापा माँ भाई बहन, या हो सकता है भाई ना हो सिर्फ बहने हो, या ये भी हो सकता है कि बहने ना हो और 2-4 गुस्सा करने वाले बड़े भाई हो"
मतलब मैं आपका नाम भी नहीं पूछ सकता "मैंने काउंटर मारा"
वो बोली, 'कुछ भी नाम हो सकता है मेरा, टीना, मीना, रीना, कुछ भी'
बहुत बातूनी लड़की थी वो.. थोड़ी इधर उधर की बातें करने के बाद उसने मुझे टॉफी दी जैसे छोटे बच्चे देते हैं क्लास में,
बोली आज मेरा बर्थडे है।
मैंने उसकी हथेली से टॉफी उठाते बधाई दी और पूछा "कितने साल की हुई हो?"
वो बोली "18"
"मतलब भागकर शादी करने की कानूनी उम्र हो गई आपकी"
वो "हंसी"
कुछ ही देर में काफी फ्रैंक हो चुके थे हम दोनों। जैसे बहुत पहले से जानते हो एक दूसरे को..
मैंने उसे बताया कि "मेरी उम्र 35 साल है, यानि 17 साल बड़ा हुँ"
उसने चुटकी लेते हुए कहा "लग तो नही रहे हो"
मैं मुस्कुरा दिया
मैंने उसे पूछा "तुम घर से भागकर आई हो, तुम्हारे चेहरे पर चिंता के निशान जरा भी नहीं है, इतनी बेफिक्री मैंने पहली बार देखी"
खुद की तारीफ सूनकर वो खुश हुई, बोली "मुझे उन जनाब ने मेरे लवर ने पहले से ही समझा दिया था कि जब घर से निकलो तो बिल्कुल बिंदास रहना, घरवालों के बारे में बिल्कुल मत सोचना, बिल्कुल अपना मूड खराब मत करना, सिर्फ मेरे और हम दोनों के बारे में सोचना और मैं वही कर रही हूँ"
मैंने फिर चुटकी ली, कहा "उसने तुम्हे मुझ जैसे अनजान मुसाफिरों से दूर रहने की सलाह नहीं दी?"
उसने हंसकर जवाब दिया "नहीं, शायद वो भूल गया होगा ये बताना"
मैंने उसके प्रेमी की तारीफ करते हुए कहा " वैसे तुम्हारा बॉय फ्रेंड काफी टेलेंटेड है, उसने किस तरह से तुम्हे अकेले घर से रवाना किया, नई सिम और मोबाइल दिया, तीन ट्रेन बदलवाई.. ताकि कोई ट्रेक ना कर सके, वेरी टेलेंटेड पर्सन"
लड़की ने हामी भरी, " बोली बहुत टेलेंटेड है वो, उसके जैसा कोई नहीं"
मैंने उसे बताया कि "मेरी शादी को 10 साल हुए हैं, एक बेटी है 8 साल की और एक बेटा 1 साल का, ये देखो उनकी तस्वीर"
मेरे फोन पर बच्चों की तस्वीर देखकर उसके मुंह से निकल गया "सो क्यूट"
मैंने उसे बताया कि "ये जब पैदा हुई, तब मैं कुवैत में था, एक पेट्रो कम्पनी में बहुत अच्छी जॉब थी मेरी, बहुत अच्छी सेलेरी थी.. फिर कुछ महीनों बाद मैंने वो जॉब छोड़ दी, और अपने ही कस्बे में काम करने लगा।"
लड़की ने पूछा जॉब क्यों छोड़ी??
मैंने कहा "बच्ची को पहली बार गोद में उठाया तो ऐसा लगा जैसे मेरी दुनिया मेरे हाथों में है, 30 दिन की छुट्टी पर घर आया था, वापस जाना था लेकिन जा ना सका। इधर बच्ची का बचपन खर्च होता रहे उधर मैं पूरी दुनिया कमा लूं, तब भी घाटे का सौदा है। मेरी दो टके की नौकरी, बचपन उसका लाखों का.."
लड़की ने कहा "वेरी इम्प्रेसिव"
मैं मुस्कुराकर खिड़की की तरफ देखने लगा
लड़की ने पूछा "अच्छा आपने तो लव मैरिज की थी न,फिर आप भागकर कहाँ गए??
कैसे रहे और कैसे गुजरा वो वक्त??
उसके हर सवाल और हर बात में मुझे महसूस हो रहा था कि ये लड़की लकड़पन के शिखर पर है, बिल्कुल नासमझ और मासूम छोटी बहन सी।
मैंने उसे बताया कि हमने भागकर शादी नहीं की, और ये भी है कि उसके पापा ने मुझे पहली नजर में सख्ती से रिजेक्ट कर दिया था।"
उन्होंने आपको रिजेक्ट क्यों किया?? लड़की ने पूछा
मैंने कहा "रिजेक्ट करने का कुछ भी कारण हो सकता है, मेरी जाति, मेरा काम,,घर परिवार,
"बिल्कुल सही", लड़की ने सहमति दर्ज कराई और आगे पूछा "फिर आपने क्या किया?"
मैंने कहा "मैंने कुछ नहीं किया,उसके पिता ने रिजेक्ट कर दिया वहीं से मैंने अपने बारे में अलग से सोचना शुरू कर दिया था। खुशबू ने मुझे कहा कि भाग चलते हैं, मेरी वाइफ का नाम खुशबू है..मैंने दो टूक मना कर दिया। वो दो दिन तक लगातार जोर देती रही, कि भाग चलते हैं। मैं मना करता रहा.. मैंने उसे समझाया कि "भागने वाले जोड़े में लड़के की इज़्ज़त पर पर कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ता, जबकि लड़की के पूरे कुल की इज्ज़त धुल जाती है। भगाने वाला लड़का उसके दोस्तों में हीरो माना जाता है लेकिन इसके विपरीत जो लड़की प्रेमी संग भाग रही है वो कुल्टा कहलाती है, मुहल्ले के लड़के उसे चालू कहते है । बुराइयों के तमाम शब्दकोष लड़की के लिए इस्तेमाल किये जाते हैं। भागने वाली लड़की आगे चलकर 60 साल की वृद्धा भी हो जाएगी तब भी जवानी में किये उस कांड का कलंक उसके माथे पर से नहीं मिटता। मैं मानता हूँ कि लड़का लड़की को तौलने का ये दोहरा मापदंड गलत है, लेकिन हमारे समाज में है तो यही , ये नजरिया गलत है मगर सामाजिक नजरिया यही है,
वो अपने नीचे का होंठ दांतो तले पीसने लगी, उसने पानी की बोतल का ढक्कन खोलकर एक घूंट पिया।
मैंने कहा अगर मैं उस दिन उसे भगा ले जाता तो उसकी माँ तो शायद कई दिनों तक पानी भी ना पीती। इसलिए मेरी हिम्मत ना हुई कि ऐसा काम करूँ.. मैं जिससे प्रेम करूँ उसके माँ बाप मेरे माँ बाप के समान ही है। चाहे शादी ना हो, तो ना हो।
कुछ पल के लिए वो सोच में पड़ गई , लेकिन मेरे बारे में और अधिक जानना चाहती थी, उसने पूछा "फिर आपकी शादी कैसे हुई???
मैंने बताया कि " खुशबू की सगाई कहीं और कर दी गई थी। धीरे धीरे सबकुछ नॉर्मल होने लगा था। खुशबू और उसके मंगेतर की बातें भी होने लगी थी फोन पर, लेकिन जैसे जैसे शादी नजदीक आने लगी, उन लोगों की डिमांड बढ़ने लगी"
डिमांड मतलब 'लड़की ने पूछा'
डिमांड का एक ही मतलब होता है, दहेज की डिमांड। परिवार में सबको सोने से बने तोहफे दो, दूल्हे को लग्जरी कार चाहिए, सास और ननद को नेकलेस दो वगैरह वगैरह, बोले हमारे यहाँ रीत है। लड़का भी इस रीत की अदायगी का पक्षधर था। वो सगाई मैंने तुड़वा डाली..इसलिए नही की सिर्फ मेरी शादी उससे हो जाये बल्कि ऐसे लालची लोगों में खुशबू कभी खुश नही रह सकती थी ना उसका परिवार, फिर किसी तरह घरवालों को समझा बुझा कर मैं फ्रंट पर आ गया और हमारी शादी हो गई। ये सब किस्मत की बात थी..
लड़की बोली "चलो अच्छा हुआ आप मिल गए, वरना वो गलत लोगों में फंस जाती"
मैंने कहा "जरूरी नहीं कि माता पिता का फैसला हमेशा सही हो, और ये भी जरूरी नहीं कि प्रेमी जोड़े की पसन्द सही हो.. दोनों में से कोई भी गलत या सही हो सकता है..काम की बात यहाँ ये है कि कौन ज्यादा वफादार है।"
लड़की ने फिर से पानी का घूंट लिया और मैंने भी.. लड़की ने तर्क दिया कि "हमारा फैसला गलत हो जाए तो कोई बात नहीं, उन्हें ग्लानि नहीं होनी चाहिए"

मैंने कहा "फैसला ऐसा हो जो दोनों का हो,बच्चो और माता पिता दोनों की सहमति, वो सबसे सही है। बुरा मत मानना मैं कहना चाहूंगा कि तुम्हारा फैसला तुम दोनों का है, जिसमे तुम्हारे पेरेंट्स शामिल नहीं है, ना ही तुम्हे इश्क का असली मतलब पता है अभी"
उसने पूछा "क्या है इश्क़ का सही अर्थ?"
मैंने कहा "तुम इश्क में हो, तुम अपना सबकुछ छोड़कर चली आई ये सच्चा इश्क़ है, तुमने दिमाग पर जोर नहीं दिया ये इश्क है, फायदा नुकसान नहीं सोचा ये इश्क है...तुम्हारा दिमाग़ दुनियादारी के फितूर से बिल्कुल खाली था, उस खाली जगह में इश्क का फितूर भर दिया गया। जिन जनाब ने इश्क को भरा क्या वो इश्क में नहीं है.. यानि तुम जिसके साथ जा रही हो वो इश्क में नहीं, बल्कि होशियारी हीरोगिरी में है। जो इश्क में होता है वो इतनी प्लानिंग नहीं कर पाता है, तीन ट्रेनें नहीं बदलवा पाता है, उसका दिमाग इतना काम ही नहीं कर पाता.. कोई कहे मैं आशिक हुँ, और वो शातिर भी हो ये नामुमकिन है।

मजनू इश्क में पागल हो गया था, लोग पत्थर मारते थे उसे, इश्क में उसकी पहचान तक मिट गई। उसे दुनिया मजनू के नाम से जानती है जबकि उसका असली नाम कैस था जो नहीं इस्तेमाल किया जाता। वो शातिर होता तो कैस से मजनू ना बन पाता। फरहाद ने शीरीं के लिए पहाड़ों को खोदकर नहर निकाल डाली थी और उसी नहर में उसका लहू बहा था, वो इश्क़ था। इश्क़ में कोई फकीर हो गया, कोई जोगी हो गया, किसी मांझी ने पहाड़ तोड़कर रास्ता निकाल लिया..किसी ने अतिरिक्त दिमाग़ नहीं लगाया..चालाकी नही की
लालच ,हवस और हासिल करने का नाम इश्क़ नहीं है.. इश्क समर्पण करने को कहते हैं जिसमें इंसान सबसे पहले खुद का समर्पण करता है, जैसे तुमने किया, लेकिन तुम्हारा समर्पण हासिल करने के लिए था, यानि तुम्हारे इश्क में लालच की मिलावट हो गई ।

लकड़ी अचानक से खो सी गई.. उसकी खिलख़िलाहट और लपड़ापन एकदम से खमोशी में बदल गया.. मुझे लगा मैं कुछ ज्यादा बोल गया, फिर भी मैंने जारी रखा, मैंने कहा " प्यार तुम्हारे पापा तुमसे करते हैं, कुछ दिनों बाद उनका वजन आधा हो जाएगा, तुम्हारी माँ कई दिनों तक खाना नहीं खाएगी ना पानी पियेगी.. जबकि आपको अपने आशिक को आजमा कर देख लेना था, ना तो उसकी सेहत पर फर्क पड़ता, ना दिमाग़ पर, वो अक्लमंद है, अपने लिए अच्छा सोच लेता।
आजकल गली मोहल्ले के हर तीसरे लौंडे लपाटे को जो इश्क हो जाता है, वो इश्क नहीं है, वो सिनेमा जैसा कुछ है। एक तरह की स्टंटबाजी, डेरिंग, अलग कुछ करने का फितूर..और कुछ नहीं।

लड़की का चेहरे का रंग बदल गया, ऐसा लग रहा था वो अब यहाँ नहीं है, उसका दिमाग़ किसी अतीत में टहलने निकल गया है। मैं अपने फोन को स्क्रॉल करने लगा.. लेकिन मन की इंद्री उसकी तरफ थी।
थोड़ी ही देर में उसका और मेरा स्टेशन आ गया.. बात कहाँ से निकली थी और कहाँ पहुँच गई.. उसके मोबाइल पर मैसेज टोन बजी, देखा, सिम एक्टिवेट हो चुकी थी.. उसने चुपचाप बैग में से आगे का टिकट निकाला और फाड़ दिया.. मुझे कहा एक कॉल करना है, मैंने मोबाइल दिया.. उसने नम्बर डायल करके कहा "सोरी पापा, और सिसक सिसक कर रोने लगी, सामने से पिता भी फोन पर बेटी को संभालने की कोशिश करने लगे.. उसने कहा पिताजी आप बिल्कुल चिंता मत कीजिए मैं घर आ रही हूँ..दोनों तरफ से भावनाओ का सागर उमड़ पड़ा"

हम ट्रेन से उतरे, उसने फिर से पिन मांगी, मैंने पिन दी.. उसने मोबाइल से सिम निकालकर तोड़ दी और पिन मुझे वापस कर दिया
कहानी को अंत तक पढ़ने का धन्यवाद।
देश की सभी बेटियों को समर्पित-
ये मेरा दावा है माता पिता से ज्यादा तुम्हे दुनिया मे कोई प्यार नहीं करता।



शनिवार, 29 अगस्त 2020

हाय रे कोरोना हाथ पड़े धोना साबुन से नौकरी से भी- हरविंदर सिंह शिब्बू युवराजपुर ग़ाज़ीपुर

"कोरोना"
हाय रे कोरोना , हाथ पड़े धोना
साबुन से ,नौकरी से भी।
बेरोजगारी आयी ,भुखमरी भी छायी
सब्जी हुई गायब, टोकरी से भी ।।

शहरों में मकान खाली होने लगे
सारे रोजगार वाले रोने लगे,
अर्थव्यवस्था सबकी डांवाडोल हुई
सबके चेहरे से हँसी गोल हुई ,
दुनिया घबराई ,सबकी सामत आई
मात खाये चीन की चोरी से ही।
बेरोजगारी आयी भुखमरी भी छायी
सब्जी हुई गायब टोकरी से भी।।

अस्पतालों की हालत बिगड़ने लगी
प्राइवेट क्लीनिक वालों ने मचाई धांधली
रोगियों को दोनों हाथों लूटने लगे,
दूसरे भी रोग को कोरोना कह के
बात समझ ना आई ,जनता भरमाई ,
ऐसी चंडाल, चौकड़ी से भी।
बेरोजगारी आयी भुखमरी भी छायी
सब्जी हुई गायब टोकरी से भी।।

कुछ दयालु लोग भी दिखाई दिये,
दे सहारा लोगों की भलाई किये,
पुलिस वाले भाइयों ने मेहनत किये
ज्यादेतर डॉक्टर भी,अपनी जान पर खेले,
कोरोना को हराने में , सतर्कता अपनाने में
लोग जुट गये चौकसी से भी।
बेरोजगारी आयी भुखमरी भी छायी
सब्जी हुई गायब टोकरी से भी।।
हरबिंदर सिंह "शिब्बू"
राष्ट्रीय प्रचारक,
(ABKM-Y)
#युवराजपुर #ग़ाज़ीपुर #उत्तर_प्रदेश

#poetry #कोरोना #poem



रविवार, 23 अगस्त 2020

योगी आदित्यनाथ और सत्ता के खेल में ब्राह्मण व ठाकुर का संघर्ष - ■डॉ. अम्बरीष राय

एक है ब्रह्मांड की सबसे बड़ी पार्टी भारतीय जनता पार्टी. एक हैं योगी आदित्यनाथ. एक है उत्तर प्रदेश. एक हैं राम. एक हैं परशुराम. एक है उत्तर प्रदेश की सत्ता. और सत्ता के खेल में ब्राह्मण और ठाकुर का संघर्ष है. इसके इर्द गिर्द घूम रही है उत्तर प्रदेश की सियासत. तो अगर मौजूदा सियासी तस्वीर देखें तो उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है. और मुख्यमंत्री के पद पर गोरक्ष पीठ के महंत योगी आदित्यनाथ काबिज़ हैं.

नाथ परम्परा में सन्यास लेने के पहले योगी आदित्यनाथ अजय सिंह बिष्ट के तौर पर अपनी अनजान सी पहचान रखते थे. और अपने पिता आनंद सिंह बिष्ट के ट्रांसपोर्ट बिजनेस को सम्हालते थे. उनके पिता के ममेरे भाई कृपाल सिंह बिष्ट थे. जिन्होंने एक दिन नाथ परम्परा में सन्यास ले लिया था. नया नाम मिला था योगी अवैद्यनाथ. जो कालांतर में गोरक्षपीठ के मुखिया बन गए. महंत अवैद्यनाथ के रूप में ख़ासे चर्चित हुए. देश की संसद तक पहुंचे. अपने उत्तराधिकारी के तौर पर जब इनको नाथ परम्परा में कोई योग्य नहीं मिला तो इन्होंने अपने परिवार से योग्यता आयात की. महंत अवैद्यनाथ ने अपने भतीजे अजय सिंह बिष्ट को सन्यास दिलाया. नाम दिया योगी आदित्यनाथ. यही योगी आदित्यनाथ आज उनके राजनीतिक और धार्मिक उत्तराधिकारी हैं.

2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा की प्रचण्ड जीत के बाद योगी आदित्यनाथ ने अपनी ताक़त दिखाई और भाजपा को उन्हें उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाना पड़ा. जीत बड़ी थी तो सत्ता और जाति का संतुलन साधना भी बड़ी मुश्किल का काम था. अपने पिछड़ा वोटबैंक को सहेजने की कोशिश में भाजपा ने अपने प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार केशव प्रसाद मौर्या को उप मुख्यमंत्री बना दिया. साथ ही ब्राह्मण वर्ग को साधने के लिए लखनऊ के मेयर दिनेश शर्मा को भी उप मुख्यमंत्री बनाया. 2017 से संतुलन बना रही भाजपा के लिए अब मुश्किलें बढ़ने लगी हैं. 2022 के विधानसभा चुनावों के ठीक डेढ़ साल पहले यह संतुलन भरभरा गया है. ब्राह्मण नेतृत्व और समर्थन दोनों स्तर पर भाजपा से असन्तुष्ट हो गया है. इमेज के तमाम मेकओवर के बावजूद योगी आदित्यनाथ का अतीत उन्हें ब्राह्मणों में स्वीकार्यता नहीं दिला पाया है. ब्राह्मण उन्हें सन्यासी नहीं बल्कि ठाकुर धार्मिक नेता ही मानता है. ऐसा जातिवादी धार्मिक नेता जो अपनी जातीयता से उबर नहीं पाया है.

उत्तर प्रदेश पुलिस के एनकाउंटरों में कई ब्राह्मण चेहरों का मारा जाना, और अपराध के ठाकुर चेहरों पर कोई कार्रवाई ना करने के भाव के साथ ब्राह्मण देवता कुपित हैं. नाराज़गी का आलम इस कदर है कि जिन मुद्दों पर ब्राह्मण योगी सरकार से खुश रहते थे, ब्राह्मणों ने उनका भी विरोध करना शुरू कर दिया है. नाराज़ ब्राह्मणों को अपने पाले में लाने के लिए सियासत ने अपना खेल खेलने शुरू कर दिया है. समाजवादी पार्टी ने ब्राह्मणों को समाजवादी साइकिल पर बिठाने के लिए 108 फुट की भगवान परशुराम की मूर्ति बनाने का ऐलान कर दिया है. लखनऊ में बनने वाली परशुराम की मूर्ति के लिए जरूरी प्रक्रियाएं पूरी की जा रही हैं. भगवान परशुराम के साथ एक विवाद ये भी जुड़ा है कि उन्होंने एकाधिक बार क्षत्रियों का नाश किया था. इसलिए भगवानों की दुनिया में परशुराम को लेकर ठाकुरों का मन खिन्न ही रहता है. तो परशुराम की मूर्ति को लेकर परोक्ष और अपरोक्ष विरोध भी शुरू ही चुका है. बहुजन समाज पार्टी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भी ब्राह्मणों को लुभाने की चालें चलनी शुरू कर दी हैं.

भाजपा और उसकी सरकार ने पहले तो ब्राह्मण नाराज़गी को विरोधियों का शिगूफ़ा बताया, फिर डैमेज कंट्रोल में लग गई. भाजपा के कई ब्राह्मण विधायक भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का विरोध करने में जुट गए हैं. विपक्षी दलों को परशुराम का स्वाभाविक दुश्मन बताया गया. सरकार ने पहली बार एनकाउंटर में मारे गए अपराधियों की जाति का डेटा उपलब्ध कराया. इस डेटा से ये साबित करने की कोशिश की गई कि सिर्फ ब्राह्मण ही नहीं, अन्य जाति के लोगों का भी एनकाउंटर किया गया है. जिनकी संख्या मारे गए ब्राह्मणों से ज्यादा है. अखबारों की ख़बर के साथ अपने सिपाहियों को चौकस किया गया. सोशल मीडिया के हर प्लेटफॉर्म पर ट्रेंड भाजपाईयों ने इस ख़बर को जमकर जगह दिलाई. लेकिन कुछ अनट्रेंड लोगों ने इस डेटा को ब्राह्मणों के खिलाफ़ इस्तेमाल किया. ब्राह्मणों की नाराज़गी को चिढ़ाया गया.

हालात हाथ से रेत की तरह फिसलते रहे. आज विधानसभा में जिस तरह योगी आदित्यनाथ ने राम और परशुराम को एक बताया. विपक्षियों पर जातिवादी राजनीति करने का आरोप लगाया, वो साफ़ तौर पर बताता है कि ब्राह्मण भाजपा की मुठ्ठी से फिसल गए हैं. सरकार समर्थक लेखक पत्रकार ब्राह्मणों की नाराज़गी को भले कुछ मुट्ठी भर लोगों षड्यंत्र बताएं लेकिन जब मुख्यमंत्री को विधानसभा में इस मुद्दे पर बोलना पड़ जाए तो समझ लेना मुश्किल नहीं कि ब्राह्मण नाराज़ है और इस सरकार को बदल देने की क्षमता भी रखता है.
■डॉ. अम्बरीष राय



मंगलवार, 18 अगस्त 2020

गंगा के पावन तट पर बसा एक प्यारा सा गांव हमारा- रचना हरविंदर सिंह शिब्बू युवराजपुर ग़ाज़ीपुर

"गाँव हमारा "

गंगा के पावन तट से कुछ ही दूरी पर बसा हुआ है।
जनपद मुख्यालय के हमीद सेतु से रस्ता निकला है।।
वीरशहीद विश्वम्भर सिंहजी"मार्ग पकड़कर चलते जाओ।
हनुमानजी का मंदिर और शहीद की जब प्रतिमा पाओ ।।

थोड़ा ही आगे है यह सब सैय्यद बाबा की मजार से ।
जहाँ डीह बाबा स्थल पर, बैठे मनई दिखें प्यार से ।।
वही हमारी मातृभूमि है , वही हमारा गाँव है ।
युवराज पुर नाम क्षेत्र में जिसका बड़ा प्रभाव है ।।

आधात्मिकता में रुचि रखते लोग यहाँ पुरषार्थी हैं।
शिक्षित और उदार प्रकृति वाले हैं और परमार्थी हैं।।
प्रशासनिक सेवा में है, कुछ पुलिस और सैनिक भी हैं।
अन्नदाता खेतीबाड़ी वाले पूज्य कृषक भी हैं ।।

ट्रैक्टर जब से खेत जोतने लगे ,कुछ ही हैं हलवाहे ।
लेकिन गाय चराते मिल जायेंगे आपको चरवाहे ।।
सुबह सुबह लोगों का जत्था, गंगा नदी निकल जाता है।
सूर्योदय होते होते यह , हर हर गंगे कर आता है ।।

गाँव के पूरब काली माता और पश्चिम में सैय्यद बाबा।
गाँव के उत्तर गंगा जी है, और दक्षिण में बगहुत बाबा ।।
मुश्लिम भाई थोड़े से हैं, हिन्दू बहुल्य गाँव हमारा ।
प्रेम भाव से सब रहते हैं , बना हुआ है भाईचारा।।

टीबी जब से लगा , गाँव की रामलीला बन्द हुई ।
दशहरे पर दंगल आयोजन आज भी होता खुशी खुशी।।
हरिकीर्तन और रामचरितमानस अखण्ड प्रायः होते हैं।
होली, छठ, दिवाली सारे पर्व भी आयोजित होते हैं ।।

गाँव हमारा प्रतिभाशाली लोगों से भी भरा हुआ है।
राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर की ख्याति पर खड़ा हुआ है।।
खेलप्रेमियों की धरती है , बालीबाल के यहाँ खिलाड़ी।
कुश्ती के भी लोग रहे हैं,कला जगत में भी है अगाड़ी ।।

मुख्य सड़क से लिंक रोड जो भी हैं बहुत खराब हैं।
बाकी सब कुछ ठीक ठाक है गाँव को बहुत रुआब है।।
गाँव हमारा यूपी के गाजीपुर जिले में आता है।
भोजपुरी भाषाभाषी हैं पूर्वांचल कहलाता है ।।

लोग यहाँ के मिलनसार हैं,अतिथि यहाँ जो आते हैं।
लौट के जब वह जाते हैं, इस गाँव को नहीं भुलाते हैं।।
हरबिंदर सिंह "शिब्बू"


बैल , किसान, के साथ अपना देश अतुल्य भारत था - लव तिवारी

हल खींचते समय यदि कोई बैल गोबर या मूत्र करने की स्थिति में होता था तो किसान कुछ देर के लिए हल चलाना बन्द करके बैल के मल-मूत्र त्यागने तक खड़ा रहता था ताकि बैल आराम से यह नित्यकर्म कर सके,

यह आम चलन था। हमनें (ईश्वर वैदिक) यह सारी बातें बचपन में स्वयं अपनी आंखों से देख हुई हैं। जीवों के प्रति यह गहरी संवेदना उन महान पुरखों में जन्मजात होती थी जिन्हें आजकल हम अशिक्षित कहते हैं । यह सब अभी 25-30 वर्ष पूर्व तक होता रहा ।

उस जमाने का देसी घी यदि आजकल के हिसाब से मूल्य लगाएं तो इतना शुद्ध होता था कि 2 हजार रुपये किलो तक बिक सकता है । उस देसी घी को किसान विशेष कार्य के दिनों में हर दो दिन बाद आधा-आधा किलो घी अपने बैलों को पिलाता था ।

टटीरी नामक पक्षी अपने अंडे खुले खेत की मिट्टी पर देती है और उनको सेती है। हल चलाते समय यदि सामने कहीं कोई टटीरी चिल्लाती मिलती थी तो किसान इशारा समझ जाता था और उस अंडे वाली जगह को बिना हल जोते खाली छोड़ देता था । उस जमाने में आधुनिक शिक्षा नहीं थी ।

सब आस्तिक थे । दोपहर को किसान जब आराम करने का समय होता तो सबसे पहले बैलों को पानी पिलाकर चारा डालता और फिर खुद भोजन करता था । यह एक सामान्य नियम था ।

बैल जब बूढ़ा हो जाता था तो उसे कसाइयों को बेचना शर्मनाक सामाजिक अपराध की श्रेणी में आता था । बूढा बैल कई सालों तक खाली बैठा चारा खाता रहता था, मरने तक उसकी सेवा होती थी । उस जमाने के तथाकथित अशिक्षित किसान का मानवीय तर्क था कि इतने सालों तक इसकी माँ का दूध पिया और इसकी कमाई खाई है , अब बुढापे में इसे कैसे छोड़ दें , कैसे कसाइयों को दे दें काट खाने के लिए ??? जब बैल मर जाता तो किसान फफक-फफक कर रोता था और उन भरी दुपहरियों को याद करता था जब उसका यह वफादार मित्र हर कष्ट में उसके साथ होता था । माता-पिता को रोता देख किसान के बच्चे भी अपने बुड्ढे बैल की मौत पर रोने लगते थे । पूरा जीवन काल तक बैल अपने स्वामी किसान की मूक भाषा को समझता था कि वह क्या कहना चाह रहा है ।

वह पुराना भारत इतना शिक्षित और धनाढ्य था कि अपने जीवन व्यवहार में ही जीवन रस खोज लेता था । वह करोड़ों वर्ष पुरानी संस्कृति वाला वैभवशाली भारत था ,

#वह_अतुल्य_भारत_था_!

मंगलवार, 11 अगस्त 2020

सुप्रीम कोर्ट में रामलला के पक्ष में वेद पुराण के उद्धारण के साथ गवाही दी थी पूजनीय सन्त श्री रामभद्राचार्य जी

ये वही रामभद्राचार्य जी है जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट में रामलला के पक्ष में वेद पुराण के उद्धारण के साथ गवाही दी थी।

दृश्य था उच्चतम न्यायलय का श्रीराम जन्मभूमि के पक्ष में वादी के रूप में उपस्थित थे धर्मचक्रवर्ती, तुलसीपीठ के संस्थापक, पद्मविभूषण, जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी ... जो विवादित स्थल पर श्रीराम जन्मभूमि होने के पक्ष में शास्त्रों से प्रमाण पर प्रमाण दिये जा रहे थे ...

न्यायाधीश की कुर्सी पर बैठा व्यक्ति मुसलमान था ...
उसने छूटते ही चुभता सा सवाल किया, "आप लोग हर बात में वेदों से प्रमाण मांगते हैं ... तो क्या वेदों से ही प्रमाण दे सकते हैं कि श्रीराम का जन्म अयोध्या में उस स्थल पर ही हुआ था?"

जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी (जो प्रज्ञाचक्षु हैं) ने बिना एक पल भी गँवाए कहा , " दे सकता हूँ महोदय", .और उन्होंने ऋग्वेद की जैमिनीय संहिता से उद्धरण देना शुरू किया जिसमें सरयू नदी के स्थान विशेष से दिशा और दूरी का बिल्कुल सटीक ब्यौरा देते हुए श्रीराम जन्मभूमि की स्थिति बताई गई है ।

कोर्ट के आदेश से जैमिनीय संहिता मंगाई गई ... और उसमें जगद्गुरु जी द्वारा निर्दिष्ट संख्या को खोलकर देखा गया और समस्त विवरण सही पाए गए ... जिस स्थान पर श्रीराम जन्मभूमि की स्थिति बताई गई है ... विवादित स्थल ठीक उसी स्थान पर है ...

और जगद्गुरु जी के वक्तव्य ने फैसले का रुख हिन्दुओं की तरफ मोड़ दिया ...

मुसलमान जज ने स्वीकार किया , " आज मैंने भारतीय प्रज्ञा का चमत्कार देखा ... एक व्यक्ति जो भौतिक आँखों से रहित है, कैसे वेदों और शास्त्रों के विशाल वाङ्मय से उद्धरण दिये जा रहा था ? यह ईश्वरीय शक्ति नहीं तो और क्या है ?"

"सिर्फ दो माह की उम्र में आंख की रोशनी चली गई, आज 22 भाषाएं आती हैं, 80 ग्रंथों की रचना कर चुके हैं

सनातन धर्म को दुनिया का सबसे पुराना धर्म कहा जाता है. वेदों और पुराणों के मुताबिक सनातन धर्म तब से है जब ये सृष्टि ईश्वर ने बनाई. जिसे बाद में साधू और संन्यासियों ने आगे बढ़ाया. ऐसे ही आठवीं सदी में शंकराचार्य आए, जिन्होंने सनातन धर्म को आगे बढ़ाने में मदद की.

पद्मविभूषण रामभद्राचार्यजी एक ऐसे संन्यासी के हैं जो अपनी दिव्यांगता को हराकर जगद्गुरू बने.

1. जगद्गुरु रामभद्राचार्य चित्रकूट में रहते हैं. उनका वास्तविक नाम गिरधर मिश्रा है, उनका जन्म उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में हुआ था.

2. रामभद्राचार्य एक प्रख्यात विद्वान्, शिक्षाविद्, बहुभाषाविद्, रचनाकार, प्रवचनकार, दार्शनिक और हिन्दू धर्मगुरु हैं.

3. वे रामानन्द सम्प्रदाय के वर्तमान चार जगद्गुरु रामानन्दाचार्यों में से एक हैं और इस पद पर साल 1988 से प्रतिष्ठित हैं.

4. रामभद्राचार्य चित्रकूट में स्थित संत तुलसीदास के नाम पर स्थापित तुलसी पीठ नामक धार्मिक और सामाजिक सेवा स्थित जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय के संस्थापक हैं और आजीवन कुलाधिपति हैं.

5. जगद्गुरु रामभद्राचार्य जब सिर्फ दो माह के थे तभी उनके आंखों की रोशनी चली गई थी.

6. वे बहुभाषाविद् हैं और 22 भाषाएं जैसे संस्कृत, हिन्दी, अवधी, मैथिली सहित कई भाषाओं में कवि और रचनाकार हैं.

7. उन्होंने 80 से अधिक पुस्तकों और ग्रंथों की रचना की है, जिनमें चार महाकाव्य (दो संस्कृत और दो हिन्दी में ) हैं. उन्हें तुलसीदास पर भारत के सर्वश्रेष्ठ विशेषज्ञों में गिना जाता है.

8. चिकित्सक ने गिरिधर की आँखों में रोहे के दानों को फोड़ने के लिए गरम द्रव्य डाला, परन्तु रक्तस्राव के कारण गिरिधर के दोनों नेत्रों की रोशनी चली गयी.

9. वे न तो पढ़ सकते हैं और न लिख सकते हैं और न ही ब्रेल लिपि का प्रयोग करते हैं. वे केवल सुनकर सीखते हैं और बोलकर अपनी रचनाएं लिखवाते हैं.

10. साल 2015 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित किया."

जय सियाराम जी



गुरुवार, 6 अगस्त 2020

माँगा इस ब्राह्मण ने श्री राम जन्मभूमि पूजन दक्षिणा में- जय विप्र देव पंडित गंगाधर पाठक वेदाचार्य

ब्राह्मण को लालची और पाखंडी बताने वाले देखें क्या माँगा इस ब्राह्मण ने श्रीं राम जन्मभूमि पूजन दक्षिणा में

देश प्रदेश की सबसे बडी महान विभूतियों एंव शक्तियों से ब्राह्मणों ने कभी किसी से अपने लिये कुछ माँगा नही बल्कि सदैव देश के लिये ही माँगा और किया हैै इतिहास गवाह हैै सम्मान ऐसे ही नही मिलता त्याग करना पड़ता हैै जो केवल ब्राह्मणों ने ही किया हैै।

यजमानी ब्राह्मणों से सब ऐसे ही नहीं डरते हैं। ये बहुत चतुर होते हैं लेकिन आज के भूमिपूजन कार्यक्रम के आचार्य आदरणीय गंगाधर पाठक वेदाचार्य जी को देख कर ह्रदय गौरवांवित हो गया। ये आज पूजन तो संस्कृत में करा रहे थे लेकिन उसका संदेश हिन्दी में सभी को देते हुए खिंचाई भी करते जा रहे थे। सबसे महत्वपूर्ण कार्य तो उन्होंने दक्षिणा मांग कर दिया।

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, राज्यपाल, संघ प्रमुख इत्यादि सभी यजमान हों ऐसा अवसर कहां मिलता है।सब कुछ तो आपने दे ही दिया है बस जो बचा है वो भी पूरा कर दीजिए, यही दक्षिणा है। ऐसा कह कर काशी मथुरा का भी संकल्प करवा लिया।

एक धन्यवाद तो इनको भी रहेगा जय विप्र देव

बुधवार, 5 अगस्त 2020

श्री रामजन्म भूमि एवं भारत माँ के तीन धरोहर अटल आडवाणी मुरली मनोहर - लव तिवारी ग़ाज़ीपुर

जहां हुआ है जन्म प्रभु का मंदिर वहीं बनाएंगे - पंडित लालकृष्ण आडवाणी साल 1990 संघर्ष आडवाणी जी का 60 दिनों तक स्वर्ण जयंती रथ लेकर जो घूमे थे।श्री राम लला के पत्थर पूजे थे उनके पत्थर चूमे थे।

तीन धरोहर में एक तो स्वर्गवासी हो गए स्वर्गीय श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी, लेकिन इन दो जीवित ऱामन्दिर के धरोहरआडवाणी जी और जोशी जी को मंच पर जरूर स्थान देना चाहिए था। अगर इस वैश्विक महामारी में आना सम्भव नही था तो आदरणीय प्रधानमंत्री जी के कई मिनटों के भाषण में न कही नाम लिया न कही जिक्र किया । अगर किसी शख्स ने जिक्र किया तो वो थे आदरणीय श्री मोहन राव भागवत जी

1990 श्री राम मंदिर निर्माण का संकल्प लेकर लाल कृष्ण आडवाणी जी ने सोमनाथ से अयोध्या तक रथयात्रा शुरू की थी. हालांकि बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने समस्तीपुर ज़िले में उन्हें गिरफ्तार कर लिया था. चार्जशीट के अनुसार, आडवाणी ने छह दिसंबर 1990 को कहा था, ''आज कारसेवा का आखिरी दिन है.'' आडवाणी जी के ख़िलाफ़ मस्जिद गिराने की साज़िश का आपराधिक मुकदमा अब भी चल रहा है राम मंदिर निर्माण के मुख्य सूत्रधार स्वर्गीय पंडित अटल बिहारी बाजपेई जी और पंडित आडवाणी जी मुरली मनोहर जोशी उमा भारती रितंभरा देवी हैं आज पंडित आडवाणी जी को नजरअंदाज करना ठीक नहीं है। सरकार से अपील है की अब उनका मुकदमा बंद कर दिया जाए। आज उन्हें निमंत्रण ना मिलने पर सब चुप हैं सब के मुंह पर ताले हैं। उनके लिए आप आवाज भी नहीं उठा सकते क्या आप सिर्फ इतनी हिम्मत वाले हैं।

🌹जय श्री राम 🌹











श्री रामजन्म भूमि पूजन नरेंद्र मोदी , योगी आदित्यनाथ अयोध्या उत्तर प्रदेश

श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन हरण भवभय दारुणं ।
नव कंज लोचन कंज मुख कर कंज पद कंजारुणं ॥१॥

कन्दर्प अगणित अमित छवि नव नील नीरद सुन्दरं ।
पटपीत मानहुँ तडित रुचि शुचि नोमि जनक सुतावरं ॥२॥

भजु दीनबन्धु दिनेश दानव दैत्य वंश निकन्दनं ।
रघुनन्द आनन्द कन्द कोशल चन्द दशरथ नन्दनं ॥३॥

शिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदारु अङ्ग विभूषणं ।
आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खरदूषणं ॥४॥

इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनं ।
मम् हृदय कंज निवास कुरु कामादि खलदल गंजनं ॥५॥

मन जाहि राच्यो मिलहि सो वर सहज सुन्दर सांवरो ।
करुणा निधान सुजान शील स्नेह जानत रावरो ॥६॥

एहि भांति गौरी असीस सुन सिय सहित हिय हरषित अली।
तुलसी भवानिहि पूजी पुनि-पुनि मुदित मन मन्दिर चली ॥७॥
#रामजन्मभूमि #अयोध्या #भूमिपूजन #शिलान्यास #जयश्रीराम












शनिवार, 1 अगस्त 2020

रेवतीपुर में स्थित मां भगवती का मंदिर रेवतीपुर ग़ाज़ीपुर उत्तर प्रदेश

गाजीपुर तहसील जमानिया के रेवतीपुर गांव में स्थित माँ भगवती से शायद ही जनपद का कोई व्यक्ति अनजान हो।। ऐसा भी माना जाता है कि लोगों की मुरादें पूरी हो जाती हैं जो भी यहाँ सच्चे मन से जाते हैं।

वही गांव से कुछ दूर पूर्वी छोर पर माँ कमाख्या का मंदिर है जिसकी विशेष मान्यता है । मन्दिर करहिया ग्राम में स्थित है और उसी गांव के समीप एशिया का सबसे बड़ा गांव गहमर स्थित है जहाँ पर हर घर मे एक या एक अधिक फौजी जरूर है यानी कि हर घर से एक या एक से अधिक व्यक्ति भारतीय थल सेना में कार्यरत है। और उन जबाज जवानों की किसी भी लड़ाई में मौत नही हुई चाहे वो चीन के साथ का युद्ध हो या पाकिस्तान के साथ का इसी संदर्भ में रेवतीपुर ग्राम के इस भव्य देवी माता मंदिर भी है यहां भी मान्यता है कि ब्रिटिश हुकूमत में अकाल पड़ जाने के कारण लोगों को भूखे मरने की नौबत आ गयी थी परंतु इस दशा में भी तत्कालीन प्रशासन ने लोगों से लगान वसूलने का फरमान जारी कर दिया। इससे लोगों में हड़कंप मच गया था। तभी मां ने एक वृद्धा का रूप धारण करके पूरे गांव का लगान अंग्रेजों के पास ले जाकर चुकाया और लोगों को इस मुसीबत से छुटकारा दिलाई।

माँ भगवती इस महामारी से भी सम्पूर्ण सृष्टि की रक्षा करें।




आदर्श ईंटर कालेज महुआबाग ग़ाज़ीपुर उत्तर प्रदेश

जिले के अग्रणी विद्यालयों में से एक आदर्श इंटर कॉलेज। प्रवेश का समय आते ही सिफारिशों का तांता लग जाता है। जब हमारे प्रधानाचार्य श्री विजय शंकर राय जी थें तब इस स्कूल में अनुशासन अपने चरम पर था। उनके समय मे जो लोग यहाँ से उत्तीर्ण हुए होंगे उन्हें इस बात का अच्छे से एहसास होगा कि अगर गुरुजी फील्ड में खड़े हों तो चाहे कितनी भी इमरजेंसी हो प्यास और पेशाब दुनो रुक जाती थी। भाई हिम्मत नहीं होती थी उनसे कुछ कहने की। हालांकि बच्चों के प्रति उनका स्नेह भी कम नहीं था। अगर उनके यहाँ कोई कंप्लेन लेकर जाओ तो बड़ा धैर्य पूर्वक सुनते थें और समझते भी थें। उनके बाद जो नए प्रधानाचार्य जी आएं तो वक्त ने करवट लिया और अनुशासन तो वो वाला नहीं रहा पर उन्होंने एक्स्ट्रा करिकुलम एक्टिविटी पर ज्यादा ध्यान दिया जो कि वक्त के हिसाब से लाभदायक सिद्ध हुआ। और वहाँ के पुराने शिक्षकगण का तो भाई जिले में तोड़ नहीं और नए लोगों के बारे में ज्यादा आईडिया नहीं। इन सब लोगों के मेहनत का ही फल है कि ये स्कूल आज भी अंग्रेजी माध्यम वाले तमाम स्कूलों के बीच भी हर साल अच्छे प्रोडक्ट दे रहा है। अगर आप भी पढ़े हो यहाँ से इसको शेयर करते हुए कुछ यादें जरूर लिखिए।।

मेरी यादे-
पाण्डेय सर जी कहते थे- पढ़ल_पढ़ल_बेटा_ना_तफेल_होजईबा।

संजय सर जी- तीन_बूंद_जिंदगी_क__देतेथे।