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योगी आदित्यनाथ और सत्ता के खेल में ब्राह्मण व ठाकुर का संघर्ष - ■डॉ. अम्बरीष राय ~ Lav Tiwari ( लव तिवारी )

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रविवार, 23 अगस्त 2020

योगी आदित्यनाथ और सत्ता के खेल में ब्राह्मण व ठाकुर का संघर्ष - ■डॉ. अम्बरीष राय

एक है ब्रह्मांड की सबसे बड़ी पार्टी भारतीय जनता पार्टी. एक हैं योगी आदित्यनाथ. एक है उत्तर प्रदेश. एक हैं राम. एक हैं परशुराम. एक है उत्तर प्रदेश की सत्ता. और सत्ता के खेल में ब्राह्मण और ठाकुर का संघर्ष है. इसके इर्द गिर्द घूम रही है उत्तर प्रदेश की सियासत. तो अगर मौजूदा सियासी तस्वीर देखें तो उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है. और मुख्यमंत्री के पद पर गोरक्ष पीठ के महंत योगी आदित्यनाथ काबिज़ हैं.

नाथ परम्परा में सन्यास लेने के पहले योगी आदित्यनाथ अजय सिंह बिष्ट के तौर पर अपनी अनजान सी पहचान रखते थे. और अपने पिता आनंद सिंह बिष्ट के ट्रांसपोर्ट बिजनेस को सम्हालते थे. उनके पिता के ममेरे भाई कृपाल सिंह बिष्ट थे. जिन्होंने एक दिन नाथ परम्परा में सन्यास ले लिया था. नया नाम मिला था योगी अवैद्यनाथ. जो कालांतर में गोरक्षपीठ के मुखिया बन गए. महंत अवैद्यनाथ के रूप में ख़ासे चर्चित हुए. देश की संसद तक पहुंचे. अपने उत्तराधिकारी के तौर पर जब इनको नाथ परम्परा में कोई योग्य नहीं मिला तो इन्होंने अपने परिवार से योग्यता आयात की. महंत अवैद्यनाथ ने अपने भतीजे अजय सिंह बिष्ट को सन्यास दिलाया. नाम दिया योगी आदित्यनाथ. यही योगी आदित्यनाथ आज उनके राजनीतिक और धार्मिक उत्तराधिकारी हैं.

2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा की प्रचण्ड जीत के बाद योगी आदित्यनाथ ने अपनी ताक़त दिखाई और भाजपा को उन्हें उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाना पड़ा. जीत बड़ी थी तो सत्ता और जाति का संतुलन साधना भी बड़ी मुश्किल का काम था. अपने पिछड़ा वोटबैंक को सहेजने की कोशिश में भाजपा ने अपने प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार केशव प्रसाद मौर्या को उप मुख्यमंत्री बना दिया. साथ ही ब्राह्मण वर्ग को साधने के लिए लखनऊ के मेयर दिनेश शर्मा को भी उप मुख्यमंत्री बनाया. 2017 से संतुलन बना रही भाजपा के लिए अब मुश्किलें बढ़ने लगी हैं. 2022 के विधानसभा चुनावों के ठीक डेढ़ साल पहले यह संतुलन भरभरा गया है. ब्राह्मण नेतृत्व और समर्थन दोनों स्तर पर भाजपा से असन्तुष्ट हो गया है. इमेज के तमाम मेकओवर के बावजूद योगी आदित्यनाथ का अतीत उन्हें ब्राह्मणों में स्वीकार्यता नहीं दिला पाया है. ब्राह्मण उन्हें सन्यासी नहीं बल्कि ठाकुर धार्मिक नेता ही मानता है. ऐसा जातिवादी धार्मिक नेता जो अपनी जातीयता से उबर नहीं पाया है.

उत्तर प्रदेश पुलिस के एनकाउंटरों में कई ब्राह्मण चेहरों का मारा जाना, और अपराध के ठाकुर चेहरों पर कोई कार्रवाई ना करने के भाव के साथ ब्राह्मण देवता कुपित हैं. नाराज़गी का आलम इस कदर है कि जिन मुद्दों पर ब्राह्मण योगी सरकार से खुश रहते थे, ब्राह्मणों ने उनका भी विरोध करना शुरू कर दिया है. नाराज़ ब्राह्मणों को अपने पाले में लाने के लिए सियासत ने अपना खेल खेलने शुरू कर दिया है. समाजवादी पार्टी ने ब्राह्मणों को समाजवादी साइकिल पर बिठाने के लिए 108 फुट की भगवान परशुराम की मूर्ति बनाने का ऐलान कर दिया है. लखनऊ में बनने वाली परशुराम की मूर्ति के लिए जरूरी प्रक्रियाएं पूरी की जा रही हैं. भगवान परशुराम के साथ एक विवाद ये भी जुड़ा है कि उन्होंने एकाधिक बार क्षत्रियों का नाश किया था. इसलिए भगवानों की दुनिया में परशुराम को लेकर ठाकुरों का मन खिन्न ही रहता है. तो परशुराम की मूर्ति को लेकर परोक्ष और अपरोक्ष विरोध भी शुरू ही चुका है. बहुजन समाज पार्टी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भी ब्राह्मणों को लुभाने की चालें चलनी शुरू कर दी हैं.

भाजपा और उसकी सरकार ने पहले तो ब्राह्मण नाराज़गी को विरोधियों का शिगूफ़ा बताया, फिर डैमेज कंट्रोल में लग गई. भाजपा के कई ब्राह्मण विधायक भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का विरोध करने में जुट गए हैं. विपक्षी दलों को परशुराम का स्वाभाविक दुश्मन बताया गया. सरकार ने पहली बार एनकाउंटर में मारे गए अपराधियों की जाति का डेटा उपलब्ध कराया. इस डेटा से ये साबित करने की कोशिश की गई कि सिर्फ ब्राह्मण ही नहीं, अन्य जाति के लोगों का भी एनकाउंटर किया गया है. जिनकी संख्या मारे गए ब्राह्मणों से ज्यादा है. अखबारों की ख़बर के साथ अपने सिपाहियों को चौकस किया गया. सोशल मीडिया के हर प्लेटफॉर्म पर ट्रेंड भाजपाईयों ने इस ख़बर को जमकर जगह दिलाई. लेकिन कुछ अनट्रेंड लोगों ने इस डेटा को ब्राह्मणों के खिलाफ़ इस्तेमाल किया. ब्राह्मणों की नाराज़गी को चिढ़ाया गया.

हालात हाथ से रेत की तरह फिसलते रहे. आज विधानसभा में जिस तरह योगी आदित्यनाथ ने राम और परशुराम को एक बताया. विपक्षियों पर जातिवादी राजनीति करने का आरोप लगाया, वो साफ़ तौर पर बताता है कि ब्राह्मण भाजपा की मुठ्ठी से फिसल गए हैं. सरकार समर्थक लेखक पत्रकार ब्राह्मणों की नाराज़गी को भले कुछ मुट्ठी भर लोगों षड्यंत्र बताएं लेकिन जब मुख्यमंत्री को विधानसभा में इस मुद्दे पर बोलना पड़ जाए तो समझ लेना मुश्किल नहीं कि ब्राह्मण नाराज़ है और इस सरकार को बदल देने की क्षमता भी रखता है.
■डॉ. अम्बरीष राय