ससुरा में दारू पीके घूमेला सजनवा रे भउजी
हम त जाइब ना गवनवा रे भउजी
सुनिला कि संइया मोरा बने रंगबजवा
दिन भर मस्त रहे पीके दारू गंजवा
बेरिया कुबेर आके मांगे घरे खनवां रे भउजी
हम त जाइब ना गवनवा रे भउजी
सुनिला जेठानी से लड़ावेला नजरिया
ओकरा के लेके घूमें हाट औ बजरिया
चोरी चोरी किने साड़ी, साया गहनवा रे भउजी
हम त जाइब ना गवनवा रे भउजी
कुछु नाही कहब भले आधा पेट खाइब
लुगरी पहिर हम जिनगी बिताइब
चौका,चुल्ह करब हम धोइब बरतनवा रे भउजी
हम त जाइब ना गवनवा रे भउजी
जबरी जो भेजबू तबो नाहीं जाइब
कुलवा में तोहरी हम दगिया लगाइब
सागर सनेही मान हमरो कहनवा रे भउजी
हम त जाइब ना गवनवा रे भउजी
रचना विद्या सागर स्नेही जी
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