बुधवार, 27 दिसंबर 2017

प्रतिभाओ को मत काटो आरक्षण की तलवार से - अज्ञात

करता हूं अनुरोध आज मैं , भारत की सरकार से
प्रतिभाओं को मत काटो , आरक्षण की तलवार से
वर्ना रेल पटरियों पर जो , फैला आज तमाशा है ,
जाट आन्दोलन से फैली , चारों ओर निराशा है.
अगला कदम पंजाबी बैठेंगे महाविकट हड़ताल पर
महाराष्ट्र में प्रबल मराठा , चढ़ जाएंगे भाल पर..
राजपूत भी मचल उठेंगे , भुजबल के हथियार से ,"
प्रतिभाओं को मत काटो , आरक्षण की तलवार से.
निर्धन ब्राम्हण वंश एक दिन परशुराम बन जाएगा ,
अपने ही घर के दीपक से ,अपना घर जल जाएगा.
भड़क उठा गृह युध्द अगर भूकम्प भयानक आएगा
आरक्षण वादी नेताओं का , सर्वस्व मिटाके जायेगा.,
अभी सम्भल जाओ मित्रों , इस स्वार्थ भरे व्यापार से ,
प्रतिभाओं को मत काटो , आरक्षण की तलवार से...
जातिवाद की नहीं , समस्या मात्र गरीबीवाद है ,"
जो सवर्ण है पर गरीब हैं , उनका क्या अपराध है..
कुचले दबे लोग जिनके , घर मे न चूल्हा जलता है ,"
भूखा बच्चा जिस कुटिया में , लोरी खाकर पलता है..
समय आ गया है उनका ,उत्थान कीजिये प्यार से ,
प्रतिभाओं को मत काटो , आरक्षण की तलवार से..
जाति गरीबी की कोई भी , नही मित्रवर होती है ,
वह अधिकारी है जिसके घर , भूखी मुनिया सोती है.
भूखे माता-पिता , दवाई बिना तड़पते रहते हैं ,
जातिवाद के कारण , कितने लोग वेदना सहते हैं.
"उन्हे न वंचित करो मित्र , संरक्षण के अधिकार से ,"
"प्रतिभाओं को मत काटो , आरक्षण की तलवार से...||


सोमवार, 25 दिसंबर 2017

दिखावे की रश्में- मंगला सिंह युवराजपुर गाज़ीपुर उत्तर प्रदेश

दिखावे की रश्में- 25-03-1999

ये जहरीली कैसी हवा चल रही है
घुटन में हर एक जिंदगी पल रही है

बारूदों की ढेर पर आज हम खड़े है
कहा थे चले हम कहा चल पड़े है
लिपटी कफन में ये जिंदी सी लाशें
जिधर देखिये बस चिता जल रही है

ममता का मंदिर सुहागन का आँगन
शहीदों की धरती बनी को अभागन
पावन धरा से विखेरें अमन को
वो रघुकुल की रीति कहा चल रही है

न सोये न जागे न लेते हुए हम
न यादो को उनके समेटे हुये हम
लगाने चले चिताओ के मेले
देखावे के रश्में हमे छल रही है

ओहदे की लालच वजुदों से नफरत
है सोने की लंका में रावण की सोहरत
आओ जरा फिर से सोचे विचारे
ये अपनी ही करनी हमे खल रही है

रचनाकार - मंगला सिंह
युवराजपुर ग़ाज़ीपुर
+91 9452756159




सोमवार, 11 दिसंबर 2017

जब भी रोना चरागो को बुझा कर रोना - ओसमान मीर

अपने साए से अश्को को छुपा कर रोना
जब भी रोना चरागो को बुझा कर रोना

हाथ भी जाते हुए वो तो मिलाकर न गया-3
मैने चाहा जिसे सिने से लगा कर रोना

जब भी रोना..................

लोग पढ़ लेते है चेहरे पर लिखी तहरीरे- 3
कितना दुश्वार है लोगो से छुपा कर रोना

जब भी रोना..................

तेरे दीवाने का क्या हाल किया है गम ने-5
मुस्कुराते हुए लोगो मे भी जाकर रोना

जब भी रोना..............

Link -https://www.youtube.com/watch?v=JDJZwOF3cws&list=RDJDJZwOF3cws



मंगलवार, 28 नवंबर 2017

अहसास- लव तिवारी

फिर तुम मुझे कैसे जिंदा पाते हो... जब मैं रूठ जाती हूँ , और तब तुम मुझे अपनी जान बताते हो , मैं तो मर ही जाती हूँ , तुम मुझे कैसे जिंदा पाते हो, जब मैं सोती हूँ तुम्हारे सीने पर सर रख कर , तुम पलकों पर मेरी फिर वही खवाब सजाते हो , मैं तो मर ही जाती हूँ , तुम मुझे कैसे जिंदा पाते हो, जब तुम मेरे गले मैं बाहे डाल देते हो,और मैं खो जाती हूँ तब तुम मेरी आँखों से उतर कर मेरे दिल मैं समां जाते हो , मैं तो मर ही जाती हूँ , तुम मुझे कैसे जिंदा पाते हो, जब तुम मेरी चोटी बनाते हो, और होंठों से मेरी गर्दन को सहलाते हो , मैं तो मर ही जाती हूँ, फिर तुम मुझे कैसे जिंदा पाते हो, रोज मुझे चाँद , और खुद को मेरा महबूब बतलाते हो, मैं तो मर ही जाती हूँ , फिर तुम मुझे कैसे जिंदा पाते हो, जब तुम अपने हाथों से बिंदिया , और मेरी मांग सजाते हो, मैं तो मर ही जाती हूँ, फिर तुम मुझे कैसे जिंदा पाते हो, कतरा कतरा बिखर जाती हूँ रात भर तुम्हारी बाहों मे , फिर भी तुम मुझे सुबह तक समेट लाते हो, मैं तो मर ही जाती हूँ, फिर तुम मुझे कैसे जिंदा पाते हो, रात भर मुझ पर बेशुमार प्यार लुटाते हो, सुबह होते ही खुद को मासूम और मुझको नीलम बताते हो, मैं तो मर ही जाती हूँ , फिर तुम मुझे कैसे जिंदा पाते हो


सोमवार, 30 अक्टूबर 2017

धूप दीप नैवेद्य अपनाये अगरबत्ती है घातक

हमारे शास्त्रो में बांस की लकड़ी को जलाना वर्जित है, किसी भी हवन अथवा पूजन विधि में बांस को नही जलाते हैं।
यहां तक कि चिता में भी बांस की लकड़ी का प्रयोग वर्जित है।
अर्थी के लिए बांस की लकड़ी का उपयोग होता है लेकिन उसे भी नही जलाते
शास्त्रों के अनुसार बांस जलाने से पित्र दोष लगता है। एवं जन्म के समय जो नाल माता और संतति को जोड़ के रखती है, उसे भी बांस के वृक्षो के बीच मे गाड़ते है ताकि वंस सदैव बढ़ता रहे।
क्या इसका कोई वैज्ञानिक कारण है?
बांस में लेड व हेवी मेटल प्रचुर मात्रा में होते है
लेड जलने पर लेड आक्साइड बनाता है जो कि एक खतरनाक नीरो टॉक्सिक है  हेवी मेटल भी जलने पर ऑक्साइड्स बनाते है
लेकिन जिस बांस की लकड़ी को जलाना शास्त्रों में वर्जित है यहां तक कि चिता मे भी नही जला सकते, उस बांस की लकड़ी को हमलोग रोज़ अगरबत्ती में जलाते हैं।
अगरबत्ती के जलने से उतपन्न हुई सुगन्ध के प्रसार के लिए फेथलेट नाम के विशिष्ट केमिकल का प्रयोग किया जाता है
यह एक फेथलिक एसिड का ईस्टर होता है
यह भी स्वांस के साथ शरीर मे प्रवेश करता है
इस प्रकार अगरबत्ती की तथाकथित सुगन्ध न्यूरोटॉक्सिक एवम हेप्टोटोक्सिक को भी स्वांस के साथ शरीर मे पहुचाती है
इसकी लेश मात्र उपस्थिति केन्सर अथवा मष्तिष्क आघात का कारण बन सकती है
हेप्टो टॉक्सिक की थोड़ी सी मात्रा लीवर को नष्ट करने के लिए पर्याप्त है।
शास्त्रो में पूजन विधान में कही भी अगरबत्ती का उल्लेख नही मिलता सब जगह धूप ही लिखा है
हर स्थान पर धूप, दीप , नैवेद्य का ही वर्णन है
अगरबत्ती का प्रयोग भारतवर्ष में इस्लाम के आगमन के साथ ही शुरू हुआ है।
इस्लाम मे ईस्वर की आराधना जीवंत स्वरूप में नही होती, परंतु हमारे यंहा होती है।
मुस्लिम लोग अगरबत्ती मज़ारों में जलाते है, उनके यंहा ईश्वर का मूर्त रूप नही पूजा जाता।
हम हमेशा अंधानुकरण ही करते है और अपने धर्म को कम आंकते है।
जब कि हमारे धर्म की हर एक बातें वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अनुसार मानवमात्र के कल्याण के लिए ही बनी है।
अतः कृपया सामर्थ्य अनुसार स्वच्छ धूप का ही उपयोग करें...
(यह मैसेज जैसा प्राप्त हुआ है आगे फारवर्ड किया गया है )


बहुत दूर से वो शख्श मुझे अपना लगा -लव तिवारी

बहुत दूर से वो शख्श मुझे अपना लगा
नज़दीक से गुजरा तो कुछ बदला लगा

कई ख्वाईश दफ्न हुए उसके रवैये से
आदमी इंसानियत का झूठा आईना निकला
कई खूबसूरत जिंदगी को देखकर
अपने दौर के भर्म का फासला निकला
फ़सल बो कर भी दाने से बेघर जो किसान
इस तरह के हालात का एक करवा निकला
लव तिवारी


गुरुवार, 26 अक्टूबर 2017

ब्राम्हणो की वंशावली - लव तिवारी

ब्राह्मण भाईयो के लिये विषेश         



सरयूपारीण ब्राह्मण या सरवरिया ब्राह्मण या सरयूपारी ब्राह्मण सरयू नदी के पूर्वी तरफ बसे हुए ब्राह्मणों को कहा जाता है। यह कान्यकुब्ज ब्राह्मणो कि शाखा है। श्रीराम ने लंका विजय के बाद कान्यकुब्ज ब्राह्मणों से यज्ञ करवाकर उन्हे सरयु पार स्थापित किया था। सरयु नदी को सरवार भी कहते थे। इसी से ये ब्राह्मण सरयुपारी ब्राह्मण कहलाते हैं। सरयुपारी ब्राह्मण पूर्वी उत्तरप्रदेश, उत्तरी मध्यप्रदेश, बिहार छत्तीसगढ़ और झारखण्ड में भी होते हैं। मुख्य सरवार क्षेत्र पश्चिम मे उत्तर प्रदेश राज्य के अयोध्या शहर से लेकर पुर्व मे बिहार के छपरा तक तथा उत्तर मे सौनौली से लेकर दक्षिण मे मध्यप्रदेश के रींवा शहर तक है। काशी, प्रयाग, रीवा, बस्ती, गोरखपुर, अयोध्या, छपरा इत्यादि नगर सरवार भूखण्ड में हैं।


एक अन्य मत के अनुसार श्री राम ने कान्यकुब्जो को सरयु पार नहीं बसाया था बल्कि रावण जो की ब्राह्मण थे उनकी हत्या करने पर ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त होने के लिए जब श्री राम ने भोजन और दान के लिए ब्राह्मणों को आमंत्रित किया तो जो ब्राह्मण स्नान करने के बहाने से सरयू नदी पार करके उस पार चले गए और भोजन तथा दान सामंग्री ग्रहण नहीं की वे ब्राह्मण सरयुपारीन ब्राह्मण कहे गए।

सरयूपारीण ब्राहमणों के मुख्य गाँव :

गर्ग (शुक्ल- वंश)
गर्ग ऋषि के तेरह लडके बताये जाते है जिन्हें गर्ग गोत्रीय, पंच प्रवरीय, शुक्ल बंशज  कहा जाता है जो तेरह गांवों में बिभक्त हों गये थे| गांवों के नाम कुछ इस प्रकार है|

(१) मामखोर (२) खखाइज खोर  (३) भेंडी  (४) बकरूआं  (५) अकोलियाँ  (६) भरवलियाँ  (७) कनइल (८) मोढीफेकरा (९) मल्हीयन (१०) महसों (११) महुलियार (१२) बुद्धहट (१३) इसमे चार  गाँव का नाम आता है लखनौरा, मुंजीयड, भांदी, और नौवागाँव| ये सारे गाँव लगभग गोरखपुर, देवरियां और बस्ती में आज भी पाए जाते हैं|

उपगर्ग (शुक्ल-वंश)
उपगर्ग के छ: गाँव जो गर्ग ऋषि के अनुकरणीय थे कुछ इस प्रकार से हैं|
बरवां (२) चांदां (३) पिछौरां (४) कड़जहीं (५) सेदापार (६) दिक्षापार
यही मूलत: गाँव है जहाँ से शुक्ल बंश का उदय माना जाता है यहीं से लोग अन्यत्र भी जाकर शुक्ल     बंश का उत्थान कर रहें हैं यें सभी सरयूपारीण ब्राह्मण हैं|

गौतम (मिश्र-वंश)
गौतम ऋषि के छ: पुत्र बताये जातें हैं जो इन छ: गांवों के वाशी थे|
(१) चंचाई (२) मधुबनी (३) चंपा (४) चंपारण (५) विडरा (६) भटीयारी
इन्ही छ: गांवों से गौतम गोत्रीय, त्रिप्रवरीय मिश्र वंश का उदय हुआ है, यहीं से अन्यत्र भी पलायन हुआ है ये सभी सरयूपारीण ब्राह्मण हैं|

उप गौतम (मिश्र-वंश)
उप गौतम यानि गौतम के अनुकारक छ: गाँव इस प्रकार से हैं|
(१)  कालीडीहा (२) बहुडीह (३) वालेडीहा (४) भभयां (५) पतनाड़े  (६) कपीसा
इन गांवों से उप गौतम की उत्पत्ति  मानी जाति है|

वत्स गोत्र  ( मिश्र- वंश)
वत्स ऋषि के नौ पुत्र माने जाते हैं जो इन नौ गांवों में निवास करते थे|
(१) गाना (२) पयासी (३) हरियैया (४) नगहरा (५) अघइला (६) सेखुई (७) पीडहरा (८) राढ़ी (९) मकहडा
बताया जाता है की इनके वहा पांति का प्रचलन था अतएव इनको तीन के समकक्ष माना जाता है|

कौशिक गोत्र  (मिश्र-वंश)
तीन गांवों से इनकी उत्पत्ति बताई जाती है जो निम्न है|
(१) धर्मपुरा (२) सोगावरी (३) देशी
बशिष्ट गोत्र (मिश्र-वंश)
इनका निवास भी इन तीन गांवों में बताई जाती है|
(१) बट्टूपुर  मार्जनी (२) बढ़निया (३) खउसी
शांडिल्य गोत्र ( तिवारी,त्रिपाठी वंश)
शांडिल्य ऋषि के बारह पुत्र बताये जाते हैं जो इन बाह गांवों से प्रभुत्व रखते हैं|
(१) सांडी (२) सोहगौरा (३) संरयाँ  (४) श्रीजन (५) धतूरा (६) भगराइच (७) बलूआ (८) हरदी (९) झूडीयाँ (१०) उनवलियाँ (११) लोनापार (१२) कटियारी, लोनापार में लोनाखार, कानापार, छपरा भी समाहित है 
इन्ही बारह गांवों से आज चारों तरफ इनका विकास हुआ है, यें सरयूपारीण ब्राह्मण हैं| इनका गोत्र श्री मुख शांडिल्य त्रि प्रवर है, श्री मुख शांडिल्य में घरानों का प्रचलन है जिसमे  राम घराना, कृष्ण घराना, नाथ घराना, मणी घराना है, इन चारों का उदय, सोहगौरा गोरखपुर से है जहाँ आज भी इन चारों का अस्तित्व कायम है|

उप शांडिल्य ( तिवारी- त्रिपाठी, वंश)
इनके छ: गाँव बताये जाते हैं जी निम्नवत हैं|
(१) शीशवाँ (२) चौरीहाँ (३) चनरवटा (४) जोजिया (५) ढकरा (६) क़जरवटा
भार्गव गोत्र (तिवारी  या त्रिपाठी वंश)

भार्गव ऋषि के चार पुत्र बताये जाते हैं जिसमें  चार गांवों का उल्लेख मिलता है जो इस प्रकार है|
(१) सिंघनजोड़ी (२) सोताचक  (३) चेतियाँ  (४) मदनपुर
भारद्वाज गोत्र (दुबे वंश)

भारद्वाज ऋषि के चार पुत्र बताये जाते हैं जिनकी उत्पत्ति इन चार गांवों से बताई जाती है|
(१) बड़गईयाँ (२) सरार (३) परहूँआ (४) गरयापार

कन्चनियाँ और लाठीयारी इन दो गांवों में दुबे घराना बताया जाता है जो वास्तव में गौतम मिश्र हैं लेकिन  इनके पिता क्रमश: उठातमनी और शंखमनी गौतम मिश्र थे परन्तु वासी (बस्ती) के राजा  बोधमल ने एक पोखरा खुदवाया जिसमे लट्ठा न चल पाया, राजा के कहने पर दोनों भाई मिल कर लट्ठे को चलाया जिसमे एक ने लट्ठे सोने वाला भाग पकड़ा तो दुसरें ने लाठी वाला भाग पकड़ा जिसमे कन्चनियाँ व लाठियारी का नाम पड़ा, दुबे की गददी होने से ये लोग दुबे कहलाने लगें|

सरार के दुबे के वहां पांति का प्रचलन रहा है अतएव इनको तीन के समकक्ष माना जाता है|
सावरण गोत्र ( पाण्डेय वंश)

सावरण ऋषि के तीन पुत्र बताये जाते हैं इनके वहां भी पांति का प्रचलन रहा है जिन्हें तीन के समकक्ष माना जाता है जिनके तीन गाँव निम्न हैं|

(१) इन्द्रपुर (२) दिलीपपुर (३) रकहट (चमरूपट्टी)
सांकेत गोत्र (मलांव के पाण्डेय वंश)
सांकेत ऋषि के तीन पुत्र इन तीन गांवों से सम्बन्धित बताये जाते हैं|
(१) मलांव (२) नचइयाँ (३) चकसनियाँ
कश्यप गोत्र (त्रिफला के पाण्डेय वंश)
इन तीन गांवों से बताये जाते हैं|
(१) त्रिफला (२) मढ़रियाँ  (३) ढडमढीयाँ


ओझा वंश
इन तीन गांवों से बताये जाते हैं|
(१) करइली (२) खैरी (३) निपनियां
चौबे -चतुर्वेदी, वंश (कश्यप गोत्र)
इनके लिए तीन गांवों का उल्लेख मिलता है|
(१) वंदनडीह (२) बलूआ (३) बेलउजां
एक गाँव कुसहाँ का उल्लेख बताते है जो शायद उपाध्याय वंश का मालूम पड़ता है|
ब्राह्मणों की वंशावली
भविष्य पुराण के अनुसार ब्राह्मणों का इतिहास है की प्राचीन काल में महर्षि कश्यप के पुत्र कण्वय की आर्यावनी नाम की देव कन्या पत्नी हुई। ब्रम्हा की आज्ञा से
दोनों कुरुक्षेत्र वासनी
सरस्वती नदी के तट
पर गये और कण् व चतुर्वेदमय
सूक्तों में सरस्वती देवी की स्तुति करने लगे
एक वर्ष बीत जाने पर वह देवी प्रसन्न हो वहां आयीं और ब्राम्हणो की समृद्धि के लिये उन्हें
वरदान दिया ।
वर के प्रभाव कण्वय के आर्य बुद्धिवाले दस पुत्र हुए जिनका
क्रमानुसार नाम था -
उपाध्याय,
दीक्षित,
पाठक,
शुक्ला,
मिश्रा,
अग्निहोत्री,
दुबे,
तिवारी,
पाण्डेय,
और
चतुर्वेदी ।



इन लोगो का जैसा नाम था वैसा ही गुण। इन लोगो ने नत मस्तक हो सरस्वती देवी को प्रसन्न किया। बारह वर्ष की अवस्था वाले उन लोगो को भक्तवत्सला शारदा देवी ने

अपनी कन्याए प्रदान की।
वे क्रमशः
उपाध्यायी,
दीक्षिता,
पाठकी,
शुक्लिका,
मिश्राणी,
अग्निहोत्रिधी,
द्विवेदिनी,
तिवेदिनी
पाण्ड्यायनी,
और
चतुर्वेदिनी कहलायीं।
फिर उन कन्याआं के भी अपने-अपने पति से सोलह-सोलह पुत्र हुए हैं
वे सब गोत्रकार हुए जिनका नाम -
कष्यप,
भरद्वाज,
विश्वामित्र,
गौतम,
जमदग्रि,
वसिष्ठ,
वत्स,
गौतम,
पराशर,
गर्ग,
अत्रि,
भृगडत्र,
अंगिरा,
श्रंगी,
कात्याय,
और
याज्ञवल्क्य।



इन नामो से सोलह-सोलह पुत्र जाने जाते हैं।

मुख्य 10 प्रकार ब्राम्हणों ये हैं-
(1) तैलंगा,
(2) महार्राष्ट्रा,
(3) गुर्जर,
(4) द्रविड,
(5) कर्णटिका,


यह पांच "द्रविण" कहे जाते हैं, ये विन्ध्यांचल के दक्षिण में पाये जाते हैं|

तथा
विंध्यांचल के उत्तर में पाये जाने वाले या वास करने वाले ब्राम्हण
(1) सारस्वत,
(2) कान्यकुब्ज,
(3) गौड़,
(4) मैथिल,
(5) उत्कलये,


उत्तर के पंच गौड़ कहे जाते हैं।

वैसे ब्राम्हण अनेक हैं जिनका वर्णन आगे लिखा है।
ऐसी संख्या मुख्य 115 की है।
शाखा भेद अनेक हैं । इनके अलावा संकर जाति ब्राम्हण अनेक है ।
यहां मिली जुली उत्तर व दक्षिण के ब्राम्हणों की नामावली 115 की दे रहा हूं।
जो एक से दो और 2 से 5 और 5 से 10 और 10 से 84 भेद हुए हैं,
फिर उत्तर व दक्षिण के ब्राम्हण की संख्या शाखा भेद से 230 के
लगभग है |



तथा और भी शाखा भेद हुए हैं, जो लगभग 300 के करीब ब्राम्हण भेदों की संख्या का लेखा पाया गया है।

उत्तर व दक्षिणी ब्राम्हणां के भेद इस प्रकार है


81 ब्राम्हाणां की 31 शाखा कुल 115 ब्राम्हण संख्या, मुख्य है -

(1) गौड़ ब्राम्हण,
(2)गुजरगौड़ ब्राम्हण (मारवाड,मालवा)
(3) श्री गौड़ ब्राम्हण,
(4) गंगापुत्र गौडत्र ब्राम्हण,
(5) हरियाणा गौड़ ब्राम्हण,
(6) वशिष्ठ गौड़ ब्राम्हण,
(7) शोरथ गौड ब्राम्हण,
(8) दालभ्य गौड़ ब्राम्हण,
(9) सुखसेन गौड़ ब्राम्हण,
(10) भटनागर गौड़ ब्राम्हण,
(11) सूरजध्वज गौड ब्राम्हण(षोभर),
(12) मथुरा के चौबे ब्राम्हण,
(13) वाल्मीकि ब्राम्हण,
(14) रायकवाल ब्राम्हण,
(15) गोमित्र ब्राम्हण,
(16) दायमा ब्राम्हण,
(17) सारस्वत ब्राम्हण,
(18) मैथल ब्राम्हण,
(19) कान्यकुब्ज ब्राम्हण,
(20) उत्कल ब्राम्हण,
(21) सरवरिया ब्राम्हण,
(22) पराशर ब्राम्हण,
(23) सनोडिया या सनाड्य,
(24)मित्र गौड़ ब्राम्हण,
(25) कपिल ब्राम्हण,
(26) तलाजिये ब्राम्हण,
(27) खेटुवे ब्राम्हण,
(28) नारदी ब्राम्हण,
(29) चन्द्रसर ब्राम्हण,
(30)वलादरे ब्राम्हण,
(31) गयावाल ब्राम्हण,
(32) ओडये ब्राम्हण,
(33) आभीर ब्राम्हण,
(34) पल्लीवास ब्राम्हण,
(35) लेटवास ब्राम्हण,
(36) सोमपुरा ब्राम्हण,
(37) काबोद सिद्धि ब्राम्हण,
(38) नदोर्या ब्राम्हण,
(39) भारती ब्राम्हण,
(40) पुश्करर्णी ब्राम्हण,
(41) गरुड़ गलिया ब्राम्हण,
(42) भार्गव ब्राम्हण,
(43) नार्मदीय ब्राम्हण,
(44) नन्दवाण ब्राम्हण,
(45) मैत्रयणी ब्राम्हण,
(46) अभिल्ल ब्राम्हण,
(47) मध्यान्दिनीय ब्राम्हण,
(48) टोलक ब्राम्हण,
(49) श्रीमाली ब्राम्हण,
(50) पोरवाल बनिये ब्राम्हण,
(51) श्रीमाली वैष्य ब्राम्हण
(52) तांगड़ ब्राम्हण,
(53) सिंध ब्राम्हण,
(54) त्रिवेदी म्होड ब्राम्हण,
(55) इग्यर्शण ब्राम्हण,
(56) धनोजा म्होड ब्राम्हण,
(57) गौभुज ब्राम्हण,
(58) अट्टालजर ब्राम्हण,
(59) मधुकर ब्राम्हण,
(60) मंडलपुरवासी ब्राम्हण,
(61) खड़ायते ब्राम्हण,
(62) बाजरखेड़ा वाल ब्राम्हण,
(63) भीतरखेड़ा वाल ब्राम्हण,
(64) लाढवनिये ब्राम्हण,
(65) झारोला ब्राम्हण,
(66) अंतरदेवी ब्राम्हण,
(67) गालव ब्राम्हण,
(68) गिरनारे ब्राम्हण


सभी ब्राह्मण बंधुओ को मेरा नमस्कार बहुत दुर्लभ जानकारी है जरूर पढ़े। और समाज में शेयर करे हम क्या है

इस तरह ब्राह्मणों की उत्पत्ति और इतिहास के साथ इनका विस्तार अलग अलग राज्यो में हुआ और ये उस राज्य के ब्राह्मण कहलाये।


ब्राह्मण बिना धरती की कल्पना ही नहीं की जा सकती इसलिए ब्राह्मण होने पर गर्व करो और अपने कर्म और धर्म का पालन कर सनातन संस्कृति की रक्षा करें।


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नोट:आप सभी बंधुओं से अनुरोध है कि सभी ब्राह्मणों को भेजें और यथासम्भव अपनी वंशावली का प्रसार करने में सहयोग करें।


गुरुवार, 28 सितंबर 2017

ये जमी चाँद से बेहतर नजर आती है हमें- उमराव जान

जिंदगी जब भी तेरी बज्म में लाती है हमें
ये जमी चाँद से बेहतर नजर आती है हमें
ये जमी चाँद ...............

सुर्ख फूलो से महक उठती है दिल की राहें
दिन ढले यू तेरी आवाज़ बुलाती है हमें
ये जमी चाँद ...............

याद तेरी कभी दस्तक कभी सर्गोसी से
रात के पिछले पहर रोज जगाती है हमें
ये जमी .........

हर मुलाक़ात का अंजाम जुदाई क्यो है
अब तो हर वक़्त यही बात सताती है हमें
ये जमी चांद से बेहतर........


बुधवार, 27 सितंबर 2017

इधर जिंदगी का जनाजा उठेगा - ग़ज़ल चंदनदास

आईना देख के बोले ये सवारने वाले
अब तो बे मौत मरेगे तेरे मेरे वाले
कह गए मेरी मैय्यत से गुजरने वाले
रास आयी न जवानी तुझे मरने वाले
 
इधर जिंदगी का जनाजा उठेगा
उधर जिंदगी उनकी दुल्हन बनेगी
कयामत से पहले कयामत है यारो
मेरे सामने मेरी दुनिया लूटेगी
जवानी पे मेरी सितम ढाने वालो
जरा सोच लो क्या कहेगा जमाना-2
इधर मेरे अरमा कफन ओड़ लगे
उधर उनकी हाथो में मेहदी लगेगी
इधर जिंदगी का....
 
 
वो पर्दे के पीछे में पर्दे के आगे
न वो आगे न में जाऊ पीछे- 2
वो आगे बढ़ेगा कुछ भी न होगा
में पीछे हटूँगा तो दुनिया हँसेगी
इधर जिंदगी......
 
अजल से मोहब्बत की दुश्मन है दुनिया
कहि दो दिलो को ये मिलने न देगी
इधर मेरी गर्दन पर ख़ंजर चलेगा
उधर उनकी माथे पर बिंदिया सजेगी
इधर जिंदगी......
 
अभी उनके हँसने के दिन है वो हस ले
अभी मेरे रोने के दिन है में रो लू
मगर उनको एक दिन रोना पड़ेगा
की जिस रोज  मेरी मैय्यत उठेगी
इधर जिंदगी का जनाजा



बुधवार, 20 सितंबर 2017

चेहरे से पर्दा हटा दीजिए चाँद कहने को जी चाहता है- अज्ञात


चेहरे से पर्दा हटा दीजिए चाँद कहने को जी चाहता है
शायर हूँ मैं ग़ज़ल कहने को जी चाहता है

नज़र से नज़र क्या मिली की मदहोश हो गये
आपके आँखो को जाम कहने को जी चाहता है

हथेली पे लगाये है जो मेहदी उसका रंग फिका है
आपके प्यार के रंग मे ही रंग जाने को जी चाहता है

फिजाओ मे लहराये जब आप की रेशमी जुल्फे
बिखरे हुए केसुओ को सवारने को जी चाहता है

कब से सुनी पड़ी है मेरे दिल की ज़मीन
बन के घटा प्यार का बरस दीजिए भीग जाने को जी चाहता है


आँखों में रहा दिल में उतरकर नहीं देखा,/ बशीर बद्र

आँखों में रहा दिल में उतरकर नहीं देखा,
कश्ती के मुसाफ़िर ने समन्दर नहीं देखा

बेवक़्त अगर जाऊँगा, सब चौंक पड़ेंगे
इक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा

जिस दिन से चला हूँ मेरी मंज़िल पे नज़र है
आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा

ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं,
तुमने मेरा काँटों-भरा बिस्तर नहीं देखा

पत्थर मुझे कहता है मेरा चाहने वाला
मैं मोम हूँ उसने मुझे छूकर नहीं देखा



मंगलवार, 19 सितंबर 2017

गौत्र- गोत्र शब्द का अर्थ होता है वंश । कुल l


गौत्र
यह लेख उन लोगों के लिये है । जो गोत्र प्रणाली को बकवास कहते है । गोत्र शब्द का अर्थ होता है वंश । कुल lineage
गोत्र प्रणाली का मुख्य उद्देश्य किसी व्यक्ति को उसके मूल प्राचीनतम व्यक्ति से जोड़ना है । उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति कहे कि उसका गोत्र भारद्वाज है । तो इसका अभिप्राय यह है कि उसकी पीडी वैदिक ऋषि भारद्वाज से प्रारंभ होती है । या ऐसा समझ लीजिये कि वह व्यक्ति ऋषि भारद्वाज की पीढ़ी में जन्मा है । इस प्रकार गोत्र 1 व्यक्ति के पुरुष वंश में मूल प्राचीनतम व्यक्ति को दर्शाता है ।
ब्राह्मण स्वयं को निम्न
8 ऋषियों ( सप्त ऋषि + अगस्त्य ) का वंशज मानते हैं जमदग्नि । अत्रि । गौतम । कश्यप । वशिष्ठ । विश्वामित्र । भारद्वाज । अगस्त्य ।
उपरोक्त 8 ऋषि मुख्य गोत्रदायक ऋषि कहलाते है । तथा इसके पश्चात जितने भी अन्य गोत्र अस्तित्व में आये हैं
। वो इन्ही 8 में से 1 से फलित हुए हैं । और स्वयं के नाम से गौत्र स्थापित किया । उदाहरण माने कि अंगिरा की 8वीं पीडी में कोई ऋषि क हुए । तो परिस्थितियों के अनुसार उनके नाम से गोत्र चल पड़ा । और इनके वंशज क गौत्र कहलाये । किन्तु क गौत्र स्वयं अंगिरा से उत्पन्न हुआ है ।
इस प्रकार अब तक कई गोत्र अस्तित्व में है । किन्तु सभी का मुख्य गोत्र 8 मुख्य गोत्रदायक ऋषियों में से ही है ।
गोत्र प्रणाली में पुत्र का महत्व जैसा कि हम देख चुके हैं । गोत्र द्वारा पुत्र व उस वंश की पहचान होती है । यह गोत्र पिता से स्वतः ही पुत्र को प्राप्त होता है । परन्तु पिता का गोत्र पुत्री को प्राप्त नही होता । उदाहरण माने कि 1 व्यक्ति का गोत्र अंगिरा है । और उसका 1 पुत्र है । और यह पुत्र 1 कन्या से विवाह करता है । जिसका पिता कश्यप गोत्र से है । तब लड़की का गोत्र स्वतः ही गोत्र अंगिरा में परिवर्तित हो जायेगा । जबकि कन्या का पिता कश्यप गोत्र से था ।
इस प्रकार पुरुष का गोत्र अपने पिता का ही रहता है । और स्त्री का पति के अनुसार होता है । न कि पिता के अनुसार । यह हम अपने दैनिक जीवन में देखते ही हैं । कोई नई बात नहीं !
परन्तु ऐसा क्यों ? पुत्र का गोत्र महत्वपूर्ण । और पुत्री का नहीं । क्या ये कोई अन्याय है ? बिलकुल नहीं ।
देखें । कैसे गुण सूत्र और जीन Chromosomes and Genes
गुण सूत्र का अर्थ है वह सूत्र जैसी संरचना । जो सन्तति में माता पिता के गुण पहुँचाने का कार्य करती है ।
हमने 10वीं कक्षा में भी पढ़ा था कि मनुष्य में 2 3 जोड़े गुण सूत्र होते हैं । प्रत्येक जोड़े में 1 गुण सूत्र माता से । तथा 1 गुण सूत्र पिता से आता है । इस प्रकार प्रत्येक कोशिका में कुल 4 6 गुण सूत्र होते हैं । जिसमें 2 3 माता से व 2 3 पिता से आते हैं ।
जैसा कि कुल जोड़े 2 3 हैं । इन 2 3 में से 1 जोड़ा लिंग गुण सूत्र कहलाता है । यह होने वाली संतान का लिंग निर्धारण करता है । अर्थात पुत्र होगा । अथवा पुत्री ?
यदि इस 1 जोड़े में गुण सूत्र xx हो । तो सन्तति पुत्री होगी । और यदि xy हो । तो पुत्र होगा । परन्तु दोनों में x समान है । जो माता द्वारा मिलता है । और शेष रहा । वो पिता से मिलता है । अब यदि पिता से प्राप्त गुणसूत्र x हो । तो xx मिलकर स्त्री लिंग निर्धारित करेंगे । और यदि पिता से प्राप्त y हो । तो पुल्लिंग निर्धारित करेंगे । इस प्रकार x पुत्री के लिए । व y पुत्र के लिए होता है । इस प्रकार पुत्र व पुत्री का उत्पन्न होना पूर्णतया पिता से प्राप्त होने वाले x अथवा y गुण सूत्र पर निर्भर होता है । माता पर नहीं ।
अब यहाँ में मुद्दे से हटकर 1 बात और बता दूँ कि जैसा कि हम जानते हैं कि पुत्र की चाह रखने वाले परिवार पुत्री उत्पन्न हो जाये । तो दोष बेचारी स्त्री को देते हैं । जबकि अनुवांशिक विज्ञान के अनुसार पुत्र व पुत्री का उत्पन्न होना पूर्णतया पिता से प्राप्त होने वाले x अथवा y गुण सूत्र पर निर्भर होता है । न कि माता पर । फिर भी दोष का ठीकरा स्त्री के माथे मढ दिया जाता है । ये है मूर्खता ।
अब 1 बात ध्यान दें कि स्त्री में गुण सूत्र xx होते हैं । और पुरुष में xy होते हैं । इनकी सन्तति में माना कि पुत्र हुआ ( xy गुण सूत्र ) इस पुत्र में y गुण सूत्र पिता से ही आया । यह तो निश्चित ही है । क्योंकि माता में तो y गुण सूत्र होता ही नहीं । और यदि पुत्री हुई । तो ( xx गुण सूत्र ) यह गुण सूत्र पुत्री में माता व पिता दोनों से आते हैं ।
1. xx गुण सूत्र xx गुण सूत्र अर्थात पुत्री । xx गुण सूत्र के जोड़े में 1 x गुण सूत्र पिता से । तथा दूसरा x गुण सूत्रमाता से आता है । तथा इन दोनों गुण सूत्रों का संयोग 1 गांठ सी रचना बना लेता है । जिसे Cross over कहा जाता है ।
2 .xy गुण सूत्र xy गुण सूत्र अर्थात पुत्र । पुत्र में y गुण सूत्र केवल पिता से ही आना संभव है । क्योंकि माता में y गुण सूत्र है ही नहीं । और दोनों गुण सूत्र असमान होने के कारण पूर्ण Crossover नहीं होता । केवल 5% तक ही होता है । और 95% y गुण सूत्र ज्यों का त्यों intact ही रहता है ।
तो महत्त्वपूर्ण y गुण सूत्र हुआ । क्योंकि y गुण सूत्र के विषय में हम निश्चित हैं कि यह पुत्र में केवल पिता से ही आया है ।
बस इसी y गुण सूत्र का पता लगाना ही गोत्र प्रणाली का एकमात्र उदेश्य है । जो हजारों लाखों वर्षों पूर्व हमारे ऋषियों ने जान लिया था ।
अब तक हम यह समझ चुके हैं कि वैदिक गोत्र प्रणाली य गुण सूत्र पर आधारित है । अथवा y गुण सूत्र को ट्रेस करने का 1 माध्यम है ।
उदाहरण के लिए यदि किसी व्यक्ति का गोत्र कश्यप है । तो उस व्यक्ति में विद्यमान y गुण सूत्र कश्यप ऋषि से आया है । या कश्यप ऋषि उस y गुण सूत्र के मूल हैं ।
चूँकि y गुण सूत्र स्त्रियों में नहीं होता । यही कारण है कि विवाह के पश्चात स्त्रियों को उसके पति के गोत्र से जोड़ दिया जाता है वैदिक हिन्दू संस्कृति में 1 ही गोत्र में विवाह वर्जित होने का मुख्य कारण यह है कि 1 ही गोत्र से होने के कारण वह पुरुष व स्त्री भाई बहिन कहलाये । क्योंकि उनका पूर्वज 1 ही है ।
परन्तु ये थोड़ी अजीब बात नहीं कि जिन स्त्री व पुरुष ने एक दूसरे को कभी देखा तक नहीं । और दोनों अलग अलग देशों में परन्तु 1 ही गोत्र में जन्में । तो वे भाई बहिन हो गये ?
इसका 1 मुख्य कारण 1 ही गोत्र होने के कारण गुण सूत्रों में समानता का भी है । आज की आनुवंशिक विज्ञान के अनुसार यदि समान गुण सूत्रों वाले 2 व्यक्तियों में विवाह हो । तो उनकी सन्तति आनुवंशिक विकारों का साथ उत्पन्न होगी ।
ऐसे दंपत्तियों की संतान में 1 सी विचारधारा, पसंद, व्यवहार आदि में कोई नयापन नहीं होता । ऐसे बच्चों में रचनात्मकता का अभाव होता है । विज्ञान द्वारा भी इस संबंध में यही बात कही गई है कि सगौत्र शादी करने पर अधिकांश ऐसे दंपत्ति की संतानों में अनुवांशिक दोष अर्थात मानसिक विकलांगता, अपंगता, गंभीर रोग आदि जन्मजात ही पाए जाते हैं । शास्त्रों के अनुसार इन्हीं कारणों से सगौत्र विवाह पर प्रतिबंध लगाया था ।अब यदि हम ये जानना चाहें कि यदि चचेरी, ममेरी, मौसेरी, फुफेरी आदि बहनों से विवाह किया जाये । तो क्या क्या नुकसान हो सकता है । इसे जानने के लिए आप उन समुदाय के लोगों के जीवन पर गौर करें । जो अपनी चचेरी, ममेरी, मौसेरी, फुफेरी बहनों से विवाह करने में 1 सेकंड भी नही लगाते । फलस्वरूप उनकी संताने बुद्धिहीन, मूर्ख, प्रत्येक उच्च आदर्श व धर्म ( जो धारण करने योग्य है ) से नफरत, मनुष्य पशु पक्षी आदि से प्रेम भाव का अभाव आदि जैसी मानसिक विकलांगता अपनी चरम सीमा पर होती है ।
या यूँ कहा जाये कि इनकी सोच जीवन के हर पहलू में विनाशकारी destructive व निम्नतम होती है । तथा न ही कोई रचनात्मक constructive सृजनात्मक, कोई वैज्ञानिक गुण, देश समाज के सेवा व निष्ठा आदि के भाव होते है । यही इनके पिछड़ेपन का प्रमुख कारण होता है । उपरोक्त सभी अवगुण गुण सूत्र, जीन व DNA आदि में विकार के फलस्वरूप ही उत्पन्न होते हैं । इन्हें वर्ण संकर genetic mutations भी कह सकते हैं । ऐसे लोग अक्ल के पीछे लठ लेकर दौड़ते हैं । वैदिक ऋषियों के अनुसार कई परिस्थतियाँ ऐसी भी हैं । जिनमें गोत्र भिन्न होने पर भी विवाह नहीं होना चाहिए ।
देखें कैसे - असपिंडा च या मातुरसगोत्रा च या पितु: ।
सा प्रशस्ता द्विजातिनां दारकर्मणि मैथुने । मनु स्मृति 3-5
जो कन्या माता के कुल की 6 पीढ़ियों में न हो । और पिता के गोत्र की न हो । उस कन्या से विवाह करना उचित है ।
उपरोक्त मंत्र भी पूर्णतया वैज्ञानिक तथ्य पर आधारित है । देखें कैसे
वह कन्या पिता के गोत्र की न हो । अर्थात लड़के के पिता के गोत्र की न हो । लड़के का गोत्र = पिता का गोत्र । अर्थात लड़की और लड़के का गोत्र भिन्न हो । माता के कुल की 6 पीढ़ियों में न हो । अर्थात पुत्र का अपनी माता की बहिन के पुत्री की पुत्री की पुत्री 6 पीढ़ियों तक विवाह वर्जित है । हिनक्रियं निष्पुरुषम निश्छन्दों रोम शार्शसम ।
क्षय्यामयाव्यपस्मारिश्वित्रिकुष्ठीकुलानिच । मनु स्मृति 3-7
जो कुल सत क्रिया से हीन । सत पुरुषों से रहित । वेद अध्ययन से विमुख । शरीर पर बड़े बड़े लोम । अथवा बवासीर । क्षयरोग । दमा । खांसी । आमाशय । मिरगी । श्वेत कुष्ठ । और गलित कुष्ठ युक्त कुलों की कन्या या वर के साथ विवाह न होना चाहिए । क्योंकि ये सब दुर्गुण और रोग विवाह करने वाले के कुल में प्रविष्ट हो जाते हैं ।
आधुनिक आनुवंशिक विज्ञान से भी ये बात सिद्ध है कि उपरोक्त बताये गये रोग आदि आनुवंशिक होते हैं । इससे ये भी स्पष्ट है कि हमारे ऋषियों को गुण सूत्र संयोजन आदि के साथ साथ आनुवंशिकता आदि का भी पूर्ण ज्ञान था ।



शनिवार, 16 सितंबर 2017

मुझे देख मेरी कहानी पर रोई ये जिंदगी मेरी जिंदगानी पर रोई - लव तिवारी

मुझे देख मेरी कहानी पर रोई
ये जिंदगी मेरी जिंदगानी पर रोई

क्या था कहाँ था अब  क्या हो गया
जुल्मो को सहती जवानी पर रोईं

खायी थी कस्में निभाने को रिश्ता
मेरे प्यार की इस नादानी पर रोई

जहाँ मेरी बसती थी ख्वाबों की बस्ती
देख उजड़े चमन की निशानी पर रोई

रचना- लव तिवारी
संसोधनकर्ता- नृपजीत सिंह पप्पू


बुधवार, 13 सितंबर 2017

जमाना आज भी कहता है बेघर मुझको - लव तिवारी

गुजर कर देख तू मेरी राहों को इस कदर अब तो
जमाना आज भी कहता है बेघर मुझको

सब कहते है किसी के प्यार में पागल है ये तो
आदमी मुझसा बनकर तो महसूस कर मुझको

उम्मीद होती है हर आशिक को अपने वफ़ा पर
जफ़ा भी की तुमने और तोहमत भी दिये मुझको

कल तलक मैं भी था मोहब्बत को मानने वाला
मिली जो आज अपने खूबसूरत फर्ज की सजा मुझको

ख्वाब के मंजर में अब  भी आता है ख़्याल तेरा
ख्वाइशें दफन है  जमाने की रंजिश में अब तो

लव तिवारी
रचना - 13-09-2019
www.lavtiwari.blogspot.in


शनिवार, 9 सितंबर 2017

देखो पापा मे तुमसे बड़ा हो गया -अज्ञात

मेरे कंधे पर बैठा मेरा बेटा जब
मेरे कंधे पे खड़ा हो गया
मुझी से कहने लगा,
देखो पापा में तुमसे बड़ा हो गया
मैंने कहा, बेटा इस खूबसूरत
ग़लतफहमी में भले ही जकडे रहना
मगर मेरा हाथ पकडे रखना,
जिस दिन यह हाथ छूट जाएगा
बेटा तेरा रंगीन सपना भी टूट जाएगा,
दुनिया वास्तव में उतनी हसीन नही है
देख तेरे पांव तले अभी जमीं नही है,
में तो बाप हूँ बेटा बहुत खुश हो जाऊंगा
जिस दिन तू वास्तव में मुझसे बड़ा हो जाएगा
मगर बेटे कंधे पे नही...
जब तू जमीन पे खड़ा हो जाएगा!!
ये बाप तुझे अपना सब कुछ दे जाएगा!
और तेरे कंधे पर दुनिया से चला जाएगा!!.


शुक्रवार, 8 सितंबर 2017

मातृ देवो भवः महर्षि वेदव्यास

।।मातृ देवो भव।।
पितुरप्यधिका माता  
गर्भधारणपोषणात्  ।
अतो हि त्रिषु लोकेषु
नास्ति मातृसमो गुरुः॥
गर्भ को धारण करने और पालनपोषण करने के कारण माता का स्थान पिता से भी बढकर है। इसलिए तीनों लोकों में माता के समान कोई गुरु नहीं अर्थात् माता परमगुरु है।
नास्ति गङ्गासमं तीर्थं
नास्ति विष्णुसमः प्रभुः।
नास्ति शम्भुसमः पूज्यो
नास्ति मातृसमो गुरुः॥
गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं, विष्णु के समान प्रभु नहीं और शिव के समान कोई पूज्य नहीं और माता के समान कोई गुरु नहीं।
नास्ति चैकादशीतुल्यं
व्रतं त्रैलोक्यविश्रुतम्।
तपो नाशनात् तुल्यं
नास्ति मातृसमो गुरुः॥
एकादशी के समान त्रिलोक में प्रसिद्ध कोई व्रत नहीं,  अनशन से बढकर कोई तप नहीं और माता के समान गुरु नहीं।
नास्ति भार्यासमं मित्रं
नास्ति पुत्रसमः प्रियः।
नास्ति भगिनीसमा मान्या
नास्ति मातृसमो गुरुः॥
पत्नी के समान कोई मित्र नहीं, पुत्र के समान कोई प्रिय नहीं,  बहन के समान कोई माननीय नहीं और माता के समान गुरु नही।
न   जामातृसमं   पात्रं
न दानं कन्यया समम्।
न भ्रातृसदृशो बन्धुः
न च मातृसमो गुरुः ॥
दामाद के समान कोई दान का पात्र नहीं,  कन्यादान के समान कोई दान नहीं, भाई के जैसा कोई बन्धु नहीं और माता जैसा गुरु नहीं।
देशो गङ्गान्तिकः श्रेष्ठो
दलेषु       तुलसीदलम्।
वर्णेषु   ब्राह्मणः   श्रेष्ठो
गुरुर्माता      गुरुष्वपि ॥
गंगा के किनारे का प्रदेश अत्यन्त श्रेष्ठ होता है, पत्रों में तुलसीपत्र, वर्णों में ब्राह्मण और माता तो गुरुओं की भी गुरु है।
पुरुषः       पुत्ररूपेण
भार्यामाश्रित्य जायते।
पूर्वभावाश्रया   माता
तेन  सैव  गुरुः  परः ॥
पत्नी का आश्रय लेकर पुरुष ही पुत्र रूप में उत्पन्न होता है, इस दृष्टि से अपने पूर्वज पिता का भी आश्रय माता होती है और इसीलिए वह परमगुरु है।
मातरं   पितरं   चोभौ
दृष्ट्वा पुत्रस्तु धर्मवित्।
प्रणम्य  मातरं  पश्चात्
प्रणमेत्   पितरं  गुरुम् ॥
धर्म को जानने वाला पुत्र माता पिता को साथ देखकर पहले माता को प्रणाम करे फिर पिता और गुरु को।
माता  धरित्री जननी
दयार्द्रहृदया  शिवा ।
देवी    त्रिभुवनश्रेष्ठा
निर्दोषा सर्वदुःखहा॥
माता, धरित्री , जननी , दयार्द्रहृदया,  शिवा, देवी , त्रिभुवनश्रेष्ठा, निर्दोषा,  सभी दुःखों का नाश करने वाली है।
आराधनीया         परमा
दया शान्तिः क्षमा धृतिः ।
स्वाहा  स्वधा च गौरी च
पद्मा  च  विजया   जया ॥
आराधनीया,  परमा, दया ,  शान्ति , क्षमा,  धृति, स्वाहा , स्वधा, गौरी , पद्मा, विजया , जया,
दुःखहन्त्रीति नामानि
मातुरेवैकविंशतिम्   ।
शृणुयाच्छ्रावयेन्मर्त्यः
सर्वदुःखाद् विमुच्यते ॥
और दुःखहन्त्री -ये माता के इक्कीस नाम हैं। इन्हें सुनने सुनाने से मनुष्य सभी दुखों से मुक्त हो जाता है।
दुःखैर्महद्भिः दूनोऽपि
दृष्ट्वा मातरमीश्वरीम्।
यमानन्दं लभेन्मर्त्यः
स  किं  वाचोपपद्यते ॥
बड़े बड़े दुःखों से पीडित होने पर भी भगवती माता को देखकर मनुष्य जो आनन्द प्राप्त करता है उसे वाणी द्वारा नहीं कहा जा सकता।
इति ते  कथितं  विप्र
मातृस्तोत्रं महागुणम्।
पराशरमुखात् पूर्वम्
अश्रौषं मातृसंस्तवम्॥
हे ब्रह्मन् ! इस प्रकार मैंने तुमसे महान् गुण वाले मातृस्तोत्र को कहा , इसे मैंने अपने पिता पराशर के मुख से पहले सुना था।
सेवित्वा पितरौ कश्चित्
व्याधः     परमधर्मवित्।
लेभे   सर्वज्ञतां  या  तु
साध्यते  न तपस्विभिः॥
अपने माता पिता की सेवा करके ही किसी परम धर्मज्ञ व्याध ने उस सर्वज्ञता को पा लिया था जो बडे बडे तपस्वी भी नहीं पाते।
तस्मात्    सर्वप्रयत्नेन
भक्तिः कार्या तु मातरि।
पितर्यपीति   चोक्तं   वै
पित्रा   शक्तिसुतेन  मे ॥
इसलिए सब प्रयत्न करके माता और पिता की भक्ति करनी चाहिए,  मेरे पिता शक्तिपुत्र पराशर जी ने भी मुझसे यही कहा था।
                                 -वेदव्यास



बुधवार, 6 सितंबर 2017

ब्राम्हण क्या है और कौन है -अज्ञात

" ब्राह्मण " क्या है,,,,? कौन है,,,,,?
भगवान कृष्ण ने क्या कहा है
बनिया धन का भूखा होता है।
क्षत्रिय दुश्मन के खून का प्यासा होता है ।
गरीब अन्न का भूखा होता है।
पर ब्राम्हण?
ब्राम्हण केवल प्रेम और सम्मान का भूखा होता है।
ब्राम्हण को सम्मान दे दो वो तुम्हारे लिऐ
जान देने को तैयार हो जाऐगा।
अरे दुनिया वालो आजमाकर
तो देखो हमारी दोस्ती को।
मुसलमान अशफाक उल्ला खान बनकर हाथ बढ़ाता है,हम बिस्मिल बनकर गले लगा लेते है।
क्षत्रिय चंद्रगुप्त बनकर पैर छू लेता है,हम चाणक्य बनकर पूरा भारत जितवा देते है।
सिख भगत सिह बनकर हमारे पास आता है। हम चंद्रशेखर आजाद बनकर उसे बेखौफ जीना सिखा देते है।
कोई वैश्य गाधी बनकर हमे गुरु मान लेता है हम गोपाल कृष्ण गोखले बनकर उसे महात्मा बना देते है।
और
कोई शूद्र शबरी बनकर हमसे वर मागती है, तो हम उसे भगवान से मिलवा देते है।
अरे एक बार सम्मान तो देकर देखो हमें...........
........ फर्ज न अदा करे तो कहना
जय जय राम!!जय जय परशुराम!!
--  पुराणों में कहा गया है -
     विप्राणां यत्र पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता ।
  जिस स्थान पर ब्राह्मणों का पूजन हो वंहा देवता भी निवास करते हैं अन्यथा ब्राह्मणों के सम्मान के बिना देवालय भी शून्य हो जाते हैं ।
इसलिए
   ब्राह्मणातिक्रमो नास्ति विप्रा वेद विवर्जिताः ।।
  श्री कृष्ण ने कहा - ब्राह्मण यदि वेद से हीन भी तब पर भी उसका अपमान नही करना चाहिए ।
क्योंकि तुलसी का पत्ता क्या छोटा क्या बड़ा वह हर अवस्था में कल्याण ही करता है ।

  ब्राह्मणोंस्य मुखमासिद्......
   वेदों ने कहा है की ब्राह्मण विराट पुरुष भगवान के मुख में निवास करते हैं इनके मुख से निकले हर शब्द भगवान का ही शब्द है, जैसा की स्वयं भगवान् ने कहा है की

   विप्र प्रसादात् धरणी धरोहम
   विप्र प्रसादात् कमला वरोहम
   विप्र प्रसादात्अजिता$जितोहम
   विप्र प्रसादात् मम् राम नामम् ।।
   ब्राह्मणों के आशीर्वाद से ही मैंने धरती को धारण कर रखा है अन्यथा इतना भार कोई अन्य पुरुष कैसे उठा सकता है, इन्ही के आशीर्वाद से नारायण हो कर मैंने लक्ष्मी को वरदान में प्राप्त किया है, इन्ही के आशीर्वाद सेढ मैं हर युद्ध भी जीत गया और ब्राह्मणों के आशीर्वाद से ही मेरा नाम "राम" अमर हुआ है, अतः ब्राह्मण सर्व पूज्यनीय है । और ब्राह्मणों का अपमान ही कलियुग में पाप की वृद्धि का मुख्य कारण है ।
  - किसी में कमी निकालने की अपेक्षा किसी में से कमी निकालना ही ब्राह्मण का धर्म है,            
समस्त ब्राह्मण सम्प्रदाय को समर्पित्


शुक्रवार, 1 सितंबर 2017

एक दिन अउरु उमर के जिआन हो गइल - अज्ञात

रतिया सुतते हीं झट से बिहान हो गईल।
अखिया भरमल की घडिया तुफान हो गईल।

कईसे भागत बा सरपट समय के पहर।
एक दिन अउरू उमर के जिआन हो गइल ।।

कब ती ती ती ती, लुका छुपी छुटल।
कब बचपन के पटरी आ भाठा टुटल।

काहवां गउआं गोनसारी के भूजा गईल।
अब त सापना उ मडई- पालान हो गईल।

एक दिन अउरू उमर के जिआन हो गइल।।

केतना धधकल ऊ कउडा, ऊ जाडा रहे।
केतना नीमन पनरह के पहाडा रहे।

चिउरा-मीठा के चासका भूलाला नाही।
जाने कांहवा नापाता बाथान हो गईल।

एक दिन अउरू उमर के जिआन हो गइल।।
कईसे माई उ लोरिया सुनावत रहे।

गोइठा, पूवरा पे खानवा बानावत रहे ।
बाबूजी से बेहाया के डंटा पडल।

काहवा गायब गोजहरा, निशान हो गईल।
एक दिन अउरू उमर के जिआन हो गइल।।

अब ना दिनवा उ रतिया दोबारा मिली।
अब ना समय उ गीने के तारा मिली।

अब ना छुअम-छुआई के फुर्ती रहल।
दिलवा टूटल, बदन में थाकान हो गईल।

एक दिन अउरू उमर के जिआन हो गइल।।
साँचि पूछीं त एक दिन बडा दुख भईल।

फेसबुकवा पे बचपन के यार मिल गईल।
सगरी बचपन के बतिया भुला गउवे तब।

जब देखुवी की उ त जवान हो गईल।
एक दिन अउरू उमर के जिआन हो गइल।।


गुरुवार, 31 अगस्त 2017

ब्राह्मणों की वंशावली- जय श्रीपरशुराम

ब्राह्मणों की वंशावली
भविष्य पुराण के अनुसार ब्राह्मणों का इतिहास है की प्राचीन काल में महर्षि कश्यप के पुत्र कण्वय की आर्यावनी नाम की देव कन्या पत्नी हुई।
 ब्रम्हा की आज्ञा से
दोनों कुरुक्षेत्र वासनी
सरस्वती नदी के तट
पर गये और कण् व चतुर्वेदमय सूक्तों में सरस्वती देवी की स्तुति करने लगे
एक वर्ष बीत जाने पर वह देवी प्रसन्न हो वहां आयीं और ब्राम्हणो की समृद्धि के लिये उन्हें
वरदान दिया ।
वरदान के प्रभाव से कण्वय के आर्य बुद्धिवाले दस पुत्र हुए जिनका
क्रमानुसार नाम था_
उपाध्याय,
दीक्षित,
पाठक,
शुक्ला,
मिश्रा,
अग्निहोत्री,
दुबे,
तिवारी,
पाण्डेय,और
चतुर्वेदी ।
इन लोगो का जैसा नाम था वैसा ही गुण।
 इन लोगो ने नत मस्तक हो सरस्वती देवी को प्रसन्न किया।
बारह वर्ष की अवस्था वाले उन लोगो को भक्तवत्सला शारदा देवी ने अपनी कन्याए प्रदान की।
उनके क्रमशःनाम हुए
उपाध्यायी,
दीक्षिता,
पाठकी,
शुक्लिका,
मिश्राणी,
अग्निहोत्रिधी,
द्विवेदिनी,
तिवेदिनी
पाण्ड्यायनी,और
चतुर्वेदिनी कहलायीं।
फिर उन कन्याओं के भी अपने-अपने पति से सोलह-सोलह पुत्र हुए हैं
वे सब गोत्रकार हुए जिनका नाम -
कष्यप,
भरद्वाज,
विश्वामित्र,
गौतम,
जमदग्रि,
वसिष्ठ,
वत्स,
गौतम,
पराशर,
गर्ग,
अत्रि,
भृगडत्र,
अंगिरा,
श्रंगी,
कात्याय,और
याज्ञवल्क्य।
इन नामो से सोलह-सोलह पुत्र जाने जाते हैं।
मुख्य 10 प्रकार ब्राम्हणों ये हैं-
(1) तैलंगा,
(2) महार्राष्ट्रा,
(3) गुर्जर,
(4) द्रविड,
(5) कर्णटिका,
यह पांच "द्रविण" कहे जाते हैं, ये विन्ध्यांचल के दक्षिण में पाय जाते हैं|तथा
विंध्यांचल के उत्तर मं पाये जाने वाले या वास करने वाले ब्राम्हण
(1) सारस्वत,
(2) कान्यकुब्ज,
(3) गौड़,
(4) मैथिल,
(5) उत्कलये,
उत्तर के पंच गौड़ कहे जाते हैं।
वैसे ब्राम्हण अनेक हैं जिनका वर्णन आगे लिखा है।
ऐसी संख्या मुख्य 115 की है।
शाखा भेद अनेक हैं । इनके अलावा संकर जाति ब्राम्हण अनेक है ।
यहां मिली जुली उत्तर व दक्षिण के ब्राम्हणों की नामावली 115 की दे रहा हूं।
जो एक से दो और 2 से 5 और 5 से 10 और 10 से 84 भेद हुए हैं,
फिर उत्तर व दक्षिण के ब्राम्हण की संख्या शाखा भेद से 230 के
लगभग है |
तथा और भी शाखा भेद हुए हैं, जो लगभग 300 के करीब ब्राम्हण भेदों की संख्या का लेखा पाया गया है।
उत्तर व दक्षिणी ब्राम्हणां के भेद इस प्रकार है
81 ब्राम्हाणां की 31 शाखा कुल 115 ब्राम्हण संख्या
(1) गौड़ ब्राम्हण,
(2)मालवी गौड़ ब्राम्हण,
(3) श्री गौड़ ब्राम्हण,
(4) गंगापुत्र गौडत्र ब्राम्हण,
(5) हरियाणा गौड़ ब्राम्हण,
(6) वशिष्ठ गौड़ ब्राम्हण,
(7) शोरथ गौड ब्राम्हण,
(8) दालभ्य गौड़ ब्राम्हण,
(9) सुखसेन गौड़ ब्राम्हण,
(10) भटनागर गौड़ ब्राम्हण,
(11) सूरजध्वज गौड ब्राम्हण(षोभर),
(12) मथुरा के चौबे ब्राम्हण,
(13) वाल्मीकि ब्राम्हण,
(14) रायकवाल ब्राम्हण,
(15) गोमित्र ब्राम्हण,
(16) दायमा ब्राम्हण,
(17) सारस्वत ब्राम्हण,
(18) मैथल ब्राम्हण,
(19) कान्यकुब्ज ब्राम्हण,
(20) उत्कल ब्राम्हण,
(21) सरवरिया ब्राम्हण,
(22) पराशर ब्राम्हण,
(23) सनोडिया या सनाड्य,
(24)मित्र गौड़ ब्राम्हण,
(25) कपिल ब्राम्हण,
(26) तलाजिये ब्राम्हण,
(27) खेटुवे ब्राम्हण,
(28) नारदी ब्राम्हण,
(29) चन्द्रसर ब्राम्हण,
(30)वलादरे ब्राम्हण,
(31) गयावाल ब्राम्हण,
(32) ओडये ब्राम्हण,
(33) आभीर ब्राम्हण,
(34) पल्लीवास ब्राम्हण,
(35) लेटवास ब्राम्हण,
(36) सोमपुरा ब्राम्हण,
(37) काबोद सिद्धि ब्राम्हण,
(38) नदोर्या ब्राम्हण,
(39) भारती ब्राम्हण,
(40) पुश्करर्णी ब्राम्हण,
(41) गरुड़ गलिया ब्राम्हण,
(42) भार्गव ब्राम्हण,
(43) नार्मदीय ब्राम्हण,
(44) नन्दवाण ब्राम्हण,
(45) मैत्रयणी ब्राम्हण,
(46) अभिल्ल ब्राम्हण,
(47) मध्यान्दिनीय ब्राम्हण,
(48) टोलक ब्राम्हण,
(49) श्रीमाली ब्राम्हण,
(50) पोरवाल बनिये ब्राम्हण,
(51) श्रीमाली वैष्य ब्राम्हण
(52) तांगड़ ब्राम्हण,
(53) सिंध ब्राम्हण,
(54) त्रिवेदी म्होड ब्राम्हण,
(55) इग्यर्शण ब्राम्हण,
(56) धनोजा म्होड ब्राम्हण,
(57) गौभुज ब्राम्हण,
(58) अट्टालजर ब्राम्हण,
(59) मधुकर ब्राम्हण,
(60) मंडलपुरवासी ब्राम्हण,
(61) खड़ायते ब्राम्हण,
(62) बाजरखेड़ा वाल ब्राम्हण,
(63) भीतरखेड़ा वाल ब्राम्हण,
(64) लाढवनिये ब्राम्हण,
(65) झारोला ब्राम्हण,
(66) अंतरदेवी ब्राम्हण,
(67) गालव ब्राम्हण,
(68) गिरनारे ब्राम्हण
सभी ब्राह्मण बंधुओ को मेरा नमस्कार बहुत दुर्लभ जानकारी है जरूर पढ़े। और समाज में सेयर करे हम क्या है
इस तरह ब्राह्मणों की उत्पत्ति और इतिहास के साथ इनका विस्तार अलग अलग राज्यो में हुआ और ये उस राज्य के ब्राह्मण कहलाये।
ब्राह्मण बिना धरती की कल्पना ही नहीं की जा सकती
 इसलिए ब्राह्मण होने पर गर्व करो और  अपने कर्म और धर्म का पालन कर सनातन संस्कृति की रक्षा करे।
             
           जयश्रीपरशुराम      
  





             

शनिवार, 26 अगस्त 2017

जिन्हें अपने घरों में बच्चियां अच्छी नहीं लगती -अज्ञात

दरवाज़ों पे खाली तख्तियां अच्छी नहीं लगती
मुझे उजड़ी हुई ये बस्तियां अच्छी नहीं लगती.

उन्हें कैसे मिलेगी माँ के पैरों के तले जन्नत
जिन्हें अपने घरों में बच्चियां अच्छी नहीं लगती

चलती तो समंदर का भी सीना चीर सकती थीं
यूँ साहिल पे ठहरी कश्तियां अच्छी नहीं लगती...

खुदा भी याद आता है ज़रूरत पे यहां सबको
दुनिया की यही खुदगर्ज़ियां अच्छी नहीं लगती