फिर तुम मुझे कैसे जिंदा पाते हो... जब मैं रूठ जाती हूँ , और तब तुम मुझे अपनी जान बताते हो , मैं तो मर ही जाती हूँ , तुम मुझे कैसे जिंदा पाते हो, जब मैं सोती हूँ तुम्हारे सीने पर सर रख कर , तुम पलकों पर मेरी फिर वही खवाब सजाते हो , मैं तो मर ही जाती हूँ , तुम मुझे कैसे जिंदा पाते हो, जब तुम मेरे गले मैं बाहे डाल देते हो,और मैं खो जाती हूँ तब तुम मेरी आँखों से उतर कर मेरे दिल मैं समां जाते हो , मैं तो मर ही जाती हूँ , तुम मुझे कैसे जिंदा पाते हो, जब तुम मेरी चोटी बनाते हो, और होंठों से मेरी गर्दन को सहलाते हो , मैं तो मर ही जाती हूँ, फिर तुम मुझे कैसे जिंदा पाते हो, रोज मुझे चाँद , और खुद को मेरा महबूब बतलाते हो, मैं तो मर ही जाती हूँ , फिर तुम मुझे कैसे जिंदा पाते हो, जब तुम अपने हाथों से बिंदिया , और मेरी मांग सजाते हो, मैं तो मर ही जाती हूँ, फिर तुम मुझे कैसे जिंदा पाते हो, कतरा कतरा बिखर जाती हूँ रात भर तुम्हारी बाहों मे , फिर भी तुम मुझे सुबह तक समेट लाते हो, मैं तो मर ही जाती हूँ, फिर तुम मुझे कैसे जिंदा पाते हो, रात भर मुझ पर बेशुमार प्यार लुटाते हो, सुबह होते ही खुद को मासूम और मुझको नीलम बताते हो, मैं तो मर ही जाती हूँ , फिर तुम मुझे कैसे जिंदा पाते हो
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