शनिवार, 26 अगस्त 2017

जिन्हें अपने घरों में बच्चियां अच्छी नहीं लगती -अज्ञात

दरवाज़ों पे खाली तख्तियां अच्छी नहीं लगती
मुझे उजड़ी हुई ये बस्तियां अच्छी नहीं लगती.

उन्हें कैसे मिलेगी माँ के पैरों के तले जन्नत
जिन्हें अपने घरों में बच्चियां अच्छी नहीं लगती

चलती तो समंदर का भी सीना चीर सकती थीं
यूँ साहिल पे ठहरी कश्तियां अच्छी नहीं लगती...

खुदा भी याद आता है ज़रूरत पे यहां सबको
दुनिया की यही खुदगर्ज़ियां अच्छी नहीं लगती



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